Jago Grahak Jago

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Pramod Kumar Agrawal
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Prabhat Prakashan
Author:
Pramod Kumar Agrawal
Language:
Hindi
Format:
Hardback

188

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128

‘जागो ग्राहक, जागो’ पुस्तक में सामान्य उपभोक्ताओं को उपभोक्ता सक अधिनियम, 1986 में प्रदत्त उपभोक्ता के अधिकारों के विषय में सरल एवं स्पष्ट भाषा में जानकारी दी गई है। जहाँ एक ओर लेखक ने उपभोक्ता की समस्याओं का विवरण दिया है, वहीं दूसरी ओर उसकी अधिकांश समस्याओं का सहज समाधान भी दिया है। विभिन्न दोषयुक्त सेवाओं/वस्तुओं को उदाहरणों द्वारा दरशाया गया है और उनके समाधान संबंधी कुछ प्रमुख निर्णयों को भी पुस्तक में जगह दी गई है। चूँकि लेखक स्वयं पश्चिम बंगाल सरकार में उपभोक्ता विषयक विभाग के प्रधान सचिव रह चुके हैं, उन्होंने पुस्तक में उपभोक्ता के हितार्थ सरकार द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों, जागरूकता संबंधी प्रयासों एवं उपभोक्ता संबंधी विधिक पेचीदगियों का सुंदर समन्वय किया है। जागरूक उपभोक्ता ही उपभोक्ता आंदोलन का सजग प्रहरी है। पुस्तक की सहज और सरल भाषा तथा चित्रांकन सामान्य उपभोक्ताओं को अपनी ओर आकर्षित करनेवाला है। इसका अनुसरण करके सामान्य उपभोक्ता भी अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सजग होकर अपने अधिकारों के लिए लड़ सकता है। उपभोक्ता के कल्याण में कार्यरत न्यायिक संगठनों, सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों, स्वयंसेवी संगठनों, उपभोक्ताओं एवं विद्यार्थियों में ही नहीं, आम पाठकों के लिए समान रूप से उपयोगी पुस्तक।.

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Description

‘जागो ग्राहक, जागो’ पुस्तक में सामान्य उपभोक्ताओं को उपभोक्ता सक अधिनियम, 1986 में प्रदत्त उपभोक्ता के अधिकारों के विषय में सरल एवं स्पष्ट भाषा में जानकारी दी गई है। जहाँ एक ओर लेखक ने उपभोक्ता की समस्याओं का विवरण दिया है, वहीं दूसरी ओर उसकी अधिकांश समस्याओं का सहज समाधान भी दिया है। विभिन्न दोषयुक्त सेवाओं/वस्तुओं को उदाहरणों द्वारा दरशाया गया है और उनके समाधान संबंधी कुछ प्रमुख निर्णयों को भी पुस्तक में जगह दी गई है। चूँकि लेखक स्वयं पश्चिम बंगाल सरकार में उपभोक्ता विषयक विभाग के प्रधान सचिव रह चुके हैं, उन्होंने पुस्तक में उपभोक्ता के हितार्थ सरकार द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों, जागरूकता संबंधी प्रयासों एवं उपभोक्ता संबंधी विधिक पेचीदगियों का सुंदर समन्वय किया है। जागरूक उपभोक्ता ही उपभोक्ता आंदोलन का सजग प्रहरी है। पुस्तक की सहज और सरल भाषा तथा चित्रांकन सामान्य उपभोक्ताओं को अपनी ओर आकर्षित करनेवाला है। इसका अनुसरण करके सामान्य उपभोक्ता भी अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सजग होकर अपने अधिकारों के लिए लड़ सकता है। उपभोक्ता के कल्याण में कार्यरत न्यायिक संगठनों, सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों, स्वयंसेवी संगठनों, उपभोक्ताओं एवं विद्यार्थियों में ही नहीं, आम पाठकों के लिए समान रूप से उपयोगी पुस्तक।.

About Author

जन्म: 15 अक्‍तूबर, 1950 को बरुआ सागर, झाँसी (उ.प्र.)। शिक्षा: बी.एस-सी., एल-एल.एम., डी.फिल. (विधि), एम.बी.ए.। प्रकाशन: ‘मीरजाफर’, ‘साहिबगंज की बहू’, ‘माफिया’, ‘सतलज से टेम्स तक’, ‘पृथी की पीड़ा’ तथा आठ अन्य उपन्यास; ‘यूकेलिप्टस’ (कहानी-संग्रह); ‘भारत और इस्लाम के लिए’ (अनुवाद); ‘निबंध सागर’, ‘भारत के विकास की समस्याएँ और समाधान’, ‘पर्यावरण एवं नदी प्रदूषण’, ‘गाँव की सफाई’, ‘जल प्रदूषण’, ‘वायु प्रदूषण’, ‘साइबर विधि’, ‘भारतीय सोच’ (निबंध)। अंग्रेजी में ‘लैंड रिफॉर्म्स इन इंडिया’, ‘ब्यूरोक्रेसी टु ब्यूरोक्रेजी’ तथा दस अन्य कृतियाँ। भारतीय प्रशासनिक सेवा से अवकाश के बाद अब उपभोक्‍ता विषयक विभाग, भारत सरकार की जर्मन योजना में राष्‍ट्रीय विशेषज्ञ। संप्रति: भारत की प्रतिष्‍ठ‌ित लॉ फर्म, खेतान एंड कंपनी, दिल्ली में पार्टनर।.

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