Jab Prashnchinh Bokhla Uthe (HB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Gajanan Madhav Muktibodh
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Rajkamal
Author:
Gajanan Madhav Muktibodh
Language:
Hindi
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Hardback

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गजानन माधव मुक्तिबोध का कवि हमारी साझा साहित्यिक स्मृति में एक अविकल रूप से सजग और जाग्रत उपस्थिति है। उनकी कविताएँ उस कवि की अभिव्यक्तियाँ हैं जो अपने एक भी शब्द, एक भी भाव के प्रति कामचलाऊ रवैया नहीं अपनाता। यही दृष्टि व्यक्ति और विचारक मुक्तिबोध की अपने समाज और संसार के प्रति भी है।
इस पुस्तक में संकलित उनके राजनीतिक निबन्ध यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं कि सच्ची कविता अपने समय-संसार के साथ सच्चे और ईमानदार सरोकारों के बिना सम्भव नहीं है। अपने समय की राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्थितियों पर मुक्तिबोध न सिर्फ़ पैनी निगाह रखते थे, बल्कि बराबर उन पर लिखते भी थे।
वे ‘सारथी’ में लगभग हर सप्ताह ‘यौगन्धरायण’, ‘अवन्तीलाल गुप्त’ और ‘विंध्येश्वरी प्रसाद’ आदि छद्म नामों से लिखा करते थे। इस संग्रह में ‘मुक्तिबोध रचनावली’ के प्रकाशन के बाद प्राप्त उनके राजनीतिक निबन्धों को संकलित किया गया है। कहने की ज़रूरत नहीं कि इस सामग्री से पाठकों को मुक्तिबोध की विश्वदृष्टि, चिन्तन की व्यापकता और सरोकारों की गहराई के नए आयाम देखने को मिलेंगे।
 

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Description

गजानन माधव मुक्तिबोध का कवि हमारी साझा साहित्यिक स्मृति में एक अविकल रूप से सजग और जाग्रत उपस्थिति है। उनकी कविताएँ उस कवि की अभिव्यक्तियाँ हैं जो अपने एक भी शब्द, एक भी भाव के प्रति कामचलाऊ रवैया नहीं अपनाता। यही दृष्टि व्यक्ति और विचारक मुक्तिबोध की अपने समाज और संसार के प्रति भी है।
इस पुस्तक में संकलित उनके राजनीतिक निबन्ध यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं कि सच्ची कविता अपने समय-संसार के साथ सच्चे और ईमानदार सरोकारों के बिना सम्भव नहीं है। अपने समय की राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्थितियों पर मुक्तिबोध न सिर्फ़ पैनी निगाह रखते थे, बल्कि बराबर उन पर लिखते भी थे।
वे ‘सारथी’ में लगभग हर सप्ताह ‘यौगन्धरायण’, ‘अवन्तीलाल गुप्त’ और ‘विंध्येश्वरी प्रसाद’ आदि छद्म नामों से लिखा करते थे। इस संग्रह में ‘मुक्तिबोध रचनावली’ के प्रकाशन के बाद प्राप्त उनके राजनीतिक निबन्धों को संकलित किया गया है। कहने की ज़रूरत नहीं कि इस सामग्री से पाठकों को मुक्तिबोध की विश्वदृष्टि, चिन्तन की व्यापकता और सरोकारों की गहराई के नए आयाम देखने को मिलेंगे।
 

About Author

गजानन माधव मुक्तिबोध

आपका जन्म 13 नवम्बर, 1917 को श्योपुर, ग्वालियर, मध्य प्रदेश में हुआ। आपने नागपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी से एम.ए. तक की पढ़ाई की।

आजीविका के लिए 20 वर्ष की उम्र से बड़नगर मिडिल स्कूल में मास्टरी आरम्भ करके दौलतगंज (उज्जैन), शुजालपुर, इन्दौर, कलकत्ता, बम्बई, बंगलौर, बनारस, जबलपुर, नागपुर में थोड़े-थोड़े अरसे रहे। अन्तत: 1958 में दिग्विजय महाविद्यालय, राजनांद गाँव में।

आप लेखन में ही नहीं, जीवन में भी प्रगतिशील सोच के पक्षधर रहे, और यही कारण कि माता-पिता की असहमति के बावजूद प्रेम विवाह किया।

अध्ययन-अध्यापन के साथ पत्रकारिता में भी आपकी गहरी रुचि रही। ‘वसुधा’, ‘नया ख़ून’ जैसी पत्रिकाओं में सम्पादन-सहयोग। आप अज्ञेय द्वारा सम्पादित ‘तार सप्तक’ के पहले कवि के रूप में भी जाने जाते हैं। प्रगतिशील कविता और नई कविता के बीच आपकी क़लम की भूमिका अहम और अविस्मरणीय रही जिसका महत्त्व अपने ‘विज़न’ में आज भी एक बड़ी लीक।

आपकी प्रकाशित कृतियाँ हैं—‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’, ‘भूरी-भूरी ख़ाक-धूल’, ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ (कविता); ‘काठ का सपना’, ‘विपात्र’, ‘सतह से उठता आदमी’ (कहानी); ‘कामायनी : एक पुनर्विचार’, ‘नई कविता का आत्म-संघर्ष’, ‘नए साहित्य का सौन्दर्यशास्त्र’ (जिसका नया संस्करण अब कुछ परिवर्तित रूप में ‘आख़िर रचना क्यों?’ नाम से प्रकाशित), ‘समीक्षा की समस्याएँ’, ‘एक साहित्यिक की डायरी’ (आलोचना); ‘भारत : इतिहास और संस्कृति’ (विमर्श); ‘मेरे युवजन मेरे परिजन’ (पत्र-साहित्य); ‘शेष-अशेष’ (असंकलित रचनाएँ)। आपकी प्रकाशित-अप्रकाशित सभी रचनाएँ मुक्तिबोध समग्र में शामिल जो आठ खंडों में प्रकाशित।

आपका निधन 11 सितम्बर, 1964 को नई दिल्ली में हुआ।

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