Ityadi

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
गगन गिल
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Vani Prakashan
Author:
गगन गिल
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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हम समझते हैं, हमने एक शाम के बाद दूसरी सुबह शुरू की है, समुन्दर में हमारी नौका वहीं पर रुकी रही होगी। नौका बहते-बहते किस अक्षांश तक जा चुकी, यह तब तक भान नहीं होता, जब तक सचमुच बहुत सारे दिन दूसरी दिशा में न निकल गये हों। अपने इन संस्मरणों को पढ़ कर ऐसा ही लग रहा है। क्या मैं इन क्षणों को पहचानती हूँ, जिनका नाक-नक्श मेरे जैसा है? 1984 के दंगों से बच निकली एक युवा लड़की। 2011 में सारनाथ में बौद्ध धर्म की दीक्षा लेती एक प्राचीन स्त्री। 2014 में कोलकाता में शंख दा से पहली ही भेट में गुरुदेव टैगोर के बारे में बात करती हुई लगभग ज्वरग्रस्त एक पाठक। ये मेरे जीवन के ठहरे हुए समय हैं, ठहरी हुई मैं हूँ। बहुत सारे समयों का, स्मृतियों का घाल-मेल । कभी मैं ये सब कोई हूँ, कभी इनमें से एक भी नहीं। यह तारों की छाँह में चलने जैसा है। बीत गये जीवन का पुण्य स्मरण। एक लेखक के आन्तरिक जीवन का एडवेंचर। हर लेखक शब्द नहीं, शब्दातीत को ही ढूँढ़ता है हर क्षण। बरसों पहले के इस अहसास में आज भी मेरी वही गहरी आस्था है। -गगन गिल

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Description

हम समझते हैं, हमने एक शाम के बाद दूसरी सुबह शुरू की है, समुन्दर में हमारी नौका वहीं पर रुकी रही होगी। नौका बहते-बहते किस अक्षांश तक जा चुकी, यह तब तक भान नहीं होता, जब तक सचमुच बहुत सारे दिन दूसरी दिशा में न निकल गये हों। अपने इन संस्मरणों को पढ़ कर ऐसा ही लग रहा है। क्या मैं इन क्षणों को पहचानती हूँ, जिनका नाक-नक्श मेरे जैसा है? 1984 के दंगों से बच निकली एक युवा लड़की। 2011 में सारनाथ में बौद्ध धर्म की दीक्षा लेती एक प्राचीन स्त्री। 2014 में कोलकाता में शंख दा से पहली ही भेट में गुरुदेव टैगोर के बारे में बात करती हुई लगभग ज्वरग्रस्त एक पाठक। ये मेरे जीवन के ठहरे हुए समय हैं, ठहरी हुई मैं हूँ। बहुत सारे समयों का, स्मृतियों का घाल-मेल । कभी मैं ये सब कोई हूँ, कभी इनमें से एक भी नहीं। यह तारों की छाँह में चलने जैसा है। बीत गये जीवन का पुण्य स्मरण। एक लेखक के आन्तरिक जीवन का एडवेंचर। हर लेखक शब्द नहीं, शब्दातीत को ही ढूँढ़ता है हर क्षण। बरसों पहले के इस अहसास में आज भी मेरी वही गहरी आस्था है। -गगन गिल

About Author

गगन गिल सन् 1983 में ‘एक दिन लौटेगी लड़की’ कविता शृंखला के प्रकाशित होते ही गगन गिल (जन्म: 1959, नयी दिल्ली, शिक्षा: एम. ए. अंग्रेज़ी साहित्य) की कविताओं ने तत्कालीन सुधीजनों का ध्यान आकर्षित किया था। तब से अब तक उनकी रचनाशीलता देश-विदेश के हिन्दी साहित्य के अध्येताओं, पाठकों और आलोचकों के विमर्श का हिस्सा रही है। लगभग 35 वर्ष लम्बी इस रचना यात्रा की नौ कृतियाँ हैं- पाँच कविता-संग्रह: एक दिन लौटेगी लड़की (1989), अँधेरे में बुद्ध ( 1996), यह आकांक्षा समय नहीं (1998), थपक थपक दिल थपक थपक (2003), मैं जब तक आयी बाहर (2018) एवं 4 गद्य पुस्तकें: दिल्ली में उनींदे (2000), अवाक् (2008), देह की मुँडेर पर (2018), इत्यादि (2018)। अवाक् की गणना बीबीसी सर्वेक्षण के श्रेष्ठ हिन्दी यात्रा वृत्तान्तों में की गयी है। सन् 1983-93 में टाइम्स ऑफ इण्डिया समूह व सण्डे ऑब्जर्वर में एक दशक से कुछ अधिक समय तक साहित्य सम्पादन करने के बाद सन् 1992-93 में हार्वर्ड युनिवर्सिटी, अमेरिका में पत्रकारिता की नीमेन फैलो। देश वापसी पर पूर्णकालिक लेखन। सन् 1990 में अमेरिका के सुप्रसिद्ध आयोवा इण्टरनेशनल राइटिंग प्रोग्राम में भारत से आमन्त्रित लेखक। सन् 2000 में गोएटे इन्स्टीट्यूट, जर्मनी व सन् 2005 में पोएट्री ट्रान्सलेशन सेण्टर, लन्दन युनिवर्सिटी के निमन्त्रण पर जर्मनी व इंग्लैण्ड के कई शहरों में कविता पाठ। भारतीय प्रतिनिधि लेखक मण्डल के सदस्य के नाते चीन, फ्रांस, इंग्लैण्ड, मॉरीशस, जर्मनी आदि देशों की एकाधिक यात्राओं के अलावा मेक्सिको, ऑस्ट्रिया, इटली, तुर्की, बुल्गारिया, तिब्बत, कम्बोडिया, लाओस, इण्डोनेशिया की भरपूर यात्राएँ। भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार (1984), संस्कृति सम्मान (1989), केदार सम्मान (2000), हिन्दी अकादमी साहित्यकार सम्मान (2008) व द्विजदेव सम्मान (2010) से सम्मानित।

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