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‘इन दिनों’ संग्रह कुँवर नारायण के विशद काव्य-संसार में ले जाता है। भाषा और विषय की विविधता अब तक उनकी कविताओं के विशेष गुण माने जा चुके हैं। स्थानों और समयों को लेकर ये कविताएँ अपनी एक उन्मुक्त दुनिया रचती हैं जिनमें अनवरत जीवन की खुली आवाजाही है। इनमें टूटने का दर्द भी है, और उसे बनाने का उत्साह भी। इनमें यथार्थ की पक्की पकड़ है, उसका खुरदुरा स्पर्श, साथ ही उसका सहज सौन्दर्य भी। जीवन और विचारों से जूझती ये कविताएँ उस सन्धिरेखा पर अपने को सम्भव बनाती हैं जो एक दूसरे का निषेध नहीं, गहरी मानवीय संवेदनाओं का आधार है। राजनीतिक और सामाजिक विकृतियों और अराजकता के समय ये कविताएँ समस्याओं से वाबस्तगी को पूरी ज़िम्मेदारी से प्रतिबिम्बित करती हैं। कभी आयरनी, कभी हमदर्दी के स्वर में वे मनुष्य की सबसे संवेदनशील प्रतिक्रियाओं को जगाती हैं।
कुँवर नारायण की कविताओं में सीधी घोषणाएँ और फ़ैसले नहीं हैं, जीवन की बहुतरफ़ा समझ का वह धीरज है जो एक प्रौढ़ जीवन-विवेक और दृढ़ नैतिक चेतना से बनता है। समाज, राजनीति, व्यवसायीकरण आदि को लेकर उनकी कविताओं में दूरन्देशी फ़िक्र है जो लोक-जीवन के व्यापक हितों को केन्द्र में रखकर सोचती है—आज के मनुष्य की पीड़ा और जिजीविषा के साथ सार्थक संवाद स्थापित करने की कोशिश करती है। क्लासिकल अनुशासन में रहते हुए भी ये कविताएँ आदमी के बुनियादी आवेगों को भी इस तरह व्यक्त करती हैं कि एक सतर्क पाठक उनके साथ आसानी से एकात्म हो सकता है। कई जगह मिथकीय और ऐतिहासिक सन्दर्भों द्वारा कवि वर्तमान में हमारे यथार्थ-बोध को अधिक विस्तृत, गहरा और विवेकी बनाता है। ये कविताएँ आपका परिचय हिन्दी के उस अप्रतिम कवि से कराएँगी जिसकी ‘चक्रव्यूह’, ‘आत्मजयी’, ’अपने सामने’, ‘कोई दूसरा नहीं’ जैसी कृतियाँ हिन्दी साहित्य की मूल्यवान धरोहर बन चुकी हैं।
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Description
‘इन दिनों’ संग्रह कुँवर नारायण के विशद काव्य-संसार में ले जाता है। भाषा और विषय की विविधता अब तक उनकी कविताओं के विशेष गुण माने जा चुके हैं। स्थानों और समयों को लेकर ये कविताएँ अपनी एक उन्मुक्त दुनिया रचती हैं जिनमें अनवरत जीवन की खुली आवाजाही है। इनमें टूटने का दर्द भी है, और उसे बनाने का उत्साह भी। इनमें यथार्थ की पक्की पकड़ है, उसका खुरदुरा स्पर्श, साथ ही उसका सहज सौन्दर्य भी। जीवन और विचारों से जूझती ये कविताएँ उस सन्धिरेखा पर अपने को सम्भव बनाती हैं जो एक दूसरे का निषेध नहीं, गहरी मानवीय संवेदनाओं का आधार है। राजनीतिक और सामाजिक विकृतियों और अराजकता के समय ये कविताएँ समस्याओं से वाबस्तगी को पूरी ज़िम्मेदारी से प्रतिबिम्बित करती हैं। कभी आयरनी, कभी हमदर्दी के स्वर में वे मनुष्य की सबसे संवेदनशील प्रतिक्रियाओं को जगाती हैं।
कुँवर नारायण की कविताओं में सीधी घोषणाएँ और फ़ैसले नहीं हैं, जीवन की बहुतरफ़ा समझ का वह धीरज है जो एक प्रौढ़ जीवन-विवेक और दृढ़ नैतिक चेतना से बनता है। समाज, राजनीति, व्यवसायीकरण आदि को लेकर उनकी कविताओं में दूरन्देशी फ़िक्र है जो लोक-जीवन के व्यापक हितों को केन्द्र में रखकर सोचती है—आज के मनुष्य की पीड़ा और जिजीविषा के साथ सार्थक संवाद स्थापित करने की कोशिश करती है। क्लासिकल अनुशासन में रहते हुए भी ये कविताएँ आदमी के बुनियादी आवेगों को भी इस तरह व्यक्त करती हैं कि एक सतर्क पाठक उनके साथ आसानी से एकात्म हो सकता है। कई जगह मिथकीय और ऐतिहासिक सन्दर्भों द्वारा कवि वर्तमान में हमारे यथार्थ-बोध को अधिक विस्तृत, गहरा और विवेकी बनाता है। ये कविताएँ आपका परिचय हिन्दी के उस अप्रतिम कवि से कराएँगी जिसकी ‘चक्रव्यूह’, ‘आत्मजयी’, ’अपने सामने’, ‘कोई दूसरा नहीं’ जैसी कृतियाँ हिन्दी साहित्य की मूल्यवान धरोहर बन चुकी हैं।
About Author
कुँवर नारायण
कुँवर नारायण (19 सितम्बर, 1927—15 नवम्बर, 2017) ने बीसवीं और इक्कीसवीं सदियों की सन्धि-रेखा के दोनों ओर फैले हुए अपने गुणात्मक लेखन में अध्ययन की व्यापकता, सरोकारों की विविधता और जीवनानुभवों के सौन्दर्य-बोध के कारण कई पीढ़ियों की रचना और जीवन-दृष्टि को निरन्तर समृद्ध किया है। अपनी सिसृक्षा में उनका कवि और सम्पूर्ण कृतित्व एक पूरी पारिस्थितिकी का निर्माण करता है और इसके लिए सदैव अपनी प्रतिबद्धता भी ज़ाहिर करता रहा है। उनके जीवन और कविताओं में परस्पर साहचर्य के अन्तर्निहित भाव को आद्यन्त लक्षित किया जा सकता है जो आज भी उनकी उपस्थिति को सम्भव और मूर्त करता है।
प्रकाशित कृतियाँ : ‘चक्रव्यूह’, ‘तीसरा सप्तक’ (सहयोगी कवि), ‘परिवेश : हम-तुम’, ‘अपने सामने’, ‘कोई दूसरा नहीं’, ‘इन दिनों’, ‘हाशिए का गवाह’, ‘सब इतना असमाप्त’ (कविता); ‘आत्मजयी’, ‘वाजश्रवा के बहाने’, ‘कुमारजीव’ (प्रबन्ध-काव्य); ‘आकारों के आसपास’, ‘बेचैन पत्तों का कोरस’ (कहानी); ‘आज और आज से पहले’, ‘साहित्य के कुछ अन्तर्विषयक सन्दर्भ’, ‘दिशाओं का खुला आकाश’, ‘शब्द और देशकाल’, ‘रुख़’ (आलोचना व वैचारिक गद्य); ‘लेखक का सिनेमा’ (विश्व सिने-समीक्षा); ‘मेरे साक्षात्कार’, ‘तट पर हूँ पर तटस्थ नहीं’ (साक्षात्कार); ‘न सीमाएँ न दूरियाँ’ (अनुवाद)। अनेक भारतीय और विदेशी भाषाओं में रचनाओं के पुस्तकाकार अनुवाद और संचयन, उन पर केन्द्रित शोध और आलोचनात्मक लेखन।
प्रमुख सम्मान : ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’, ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’, ‘शलाका सम्मान’, ‘राष्ट्रीय कबीर सम्मान’, रोम का अन्तरराष्ट्रीय 'प्रीमिओ फ़ेरोनिआ’, वॉरसॉ यूनिवर्सिटी का ‘ऑनरेरी मैडल’, 'पद्मभूषण’, साहित्य अकादेमी की 'महत्तर सदस्यता’ आदि।
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