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Ikkisveen Sadi Ke Bal Natak
Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Prakash Manu
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Prabhat Prakashan
Author:
Prakash Manu
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹350 ₹263
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In stock
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1-4 Days
In stock
Book Type |
---|
ISBN:
Categories: General Fiction, Hindi
Page Extent:
168
इक्कीसवीं सदी के बाल नाटक नाटक बाल साहित्य की ऐसी विधा है, जिसमें कविता, कहानी, रहस्य-रोमांच और अभिनय सभी कुछ शामिल है। बच्चों को नाटकों में जितना आनंद आता है, उतना शायद ही साहित्य के किसी और रूप में। जब वे नाटकों में खुद अपने जैसे बच्चों और उनकी अजब-गजब मुश्किलों को सामने मंच पर देखते हैं या उन्हें आनंद और मस्ती से सराबोर होकर किसी अभियान में जुटा देखते हैं, तो उनके भीतर एक गहरा रोमांच पैदा होता है। वे दुःख और मुश्किलों की घड़ियों में भी मस्ती से ठहाके लगाना सीख लेते हैं। और यों बच्चों के मन, इच्छाओं और सपनों से जुड़े बाल नाटक उनके लिए अनायास मुक्तिदूत बन जाते हैं! सुप्रसिद्ध बाल साहित्यकार प्रकाश मनु के बाल नाटकों के संग्रह ‘इक्कीसवीं सदी के बाल नाटक’ में ऐसे ही एक से एक दिलचस्प नाटक हैं, जिन्हें मंच पर खेला जाए तो बच्चे ही नहीं, बड़ों को भी बहुत कुछ सीखने को मिलेगा, जिसे वे जिंदगी भर भूल नहीं पाएँगे। इन नाटकों में जीवन के सभी रंग हैं और वे खेल-खेल में बच्चों की मुश्किलें सुलझाते हैं। यही नहीं, वे बच्चों में आगे बढ़ने और कुछ नया करने का जोश भी पैदा करते हैं। उम्मीद है, बच्चे और किशोर पाठक नए रंग-रूप वाले इन नाटकों को रुचि से पढ़ेंगे और गली-मोहल्लों या स्कूल के फंक्शनों में मंचित भी करना चाहेंगे।.
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Bal Natak” Cancel reply
Description
इक्कीसवीं सदी के बाल नाटक नाटक बाल साहित्य की ऐसी विधा है, जिसमें कविता, कहानी, रहस्य-रोमांच और अभिनय सभी कुछ शामिल है। बच्चों को नाटकों में जितना आनंद आता है, उतना शायद ही साहित्य के किसी और रूप में। जब वे नाटकों में खुद अपने जैसे बच्चों और उनकी अजब-गजब मुश्किलों को सामने मंच पर देखते हैं या उन्हें आनंद और मस्ती से सराबोर होकर किसी अभियान में जुटा देखते हैं, तो उनके भीतर एक गहरा रोमांच पैदा होता है। वे दुःख और मुश्किलों की घड़ियों में भी मस्ती से ठहाके लगाना सीख लेते हैं। और यों बच्चों के मन, इच्छाओं और सपनों से जुड़े बाल नाटक उनके लिए अनायास मुक्तिदूत बन जाते हैं! सुप्रसिद्ध बाल साहित्यकार प्रकाश मनु के बाल नाटकों के संग्रह ‘इक्कीसवीं सदी के बाल नाटक’ में ऐसे ही एक से एक दिलचस्प नाटक हैं, जिन्हें मंच पर खेला जाए तो बच्चे ही नहीं, बड़ों को भी बहुत कुछ सीखने को मिलेगा, जिसे वे जिंदगी भर भूल नहीं पाएँगे। इन नाटकों में जीवन के सभी रंग हैं और वे खेल-खेल में बच्चों की मुश्किलें सुलझाते हैं। यही नहीं, वे बच्चों में आगे बढ़ने और कुछ नया करने का जोश भी पैदा करते हैं। उम्मीद है, बच्चे और किशोर पाठक नए रंग-रूप वाले इन नाटकों को रुचि से पढ़ेंगे और गली-मोहल्लों या स्कूल के फंक्शनों में मंचित भी करना चाहेंगे।.
About Author
प्रकाश मनु जन्म: 12 मई, 1950, शिकोहाबाद (उ.प्र.)। प्रकाशन: ‘यह जो दिल्ली है’, ‘कथा सर्कस’, ‘पापा के जाने के बाद’ (उपन्यास); ‘मेरी श्रेष्ठ कहानियाँ’, ‘मिसेज मजूमदार’, ‘जिंदगीनामा एक जीनियस का’, ‘तुम कहाँ हो नवीन भाई’, ‘सुकरात मेरे शहर में’, ‘अंकल को विश नहीं करोगे?’, ‘दिलावर खड़ा है’ (कहानियाँ); ‘एक और प्रार्थना’, ‘छूटता हुआ घर’, ‘कविता और कविता के बीच’ (कविता); ‘मुलाकात’ (साक्षात्कार), ‘यादों का कारवाँ’ (संस्मरण), ‘हिंदी बाल कविता का इतिहास’, ‘बीसवीं शताब्दी के अंत में उपन्यास’ (आलोचना/इतिहास); ‘देवेंद्र सत्यार्थी: प्रतिनिधि रचनाएँ’, ‘देवेंद्र सत्यार्थी॒: तीन पीढि़यों का सफर’, ‘देवेंद्र सत्यार्थी की चुनी हुई कहानियाँ’, ‘सुजन सखा हरिपाल’, ‘सदी के आखिरी दौर में’ (संपादित) तथा विपुल बाल साहित्य का सृजन। पुरस्कार: कविता-संग्रह ‘छूटता हुआ घर’ पर प्रथम गिरिजाकुमार माथुर स्मृति पुरस्कार, हिंदी अकादमी का ‘साहित्यकार सम्मान’ तथा साहित्य अकादेमी के ‘बाल साहित्य पुरस्कार’ से सम्मानित। ढाई दशकों तक हिंदुस्तान टाइम्स की बाल पत्रिका ‘नंदन’ के संपादकीय विभाग से संबद्ध रहे। इन दिनों बाल साहित्य की कुछ बड़ी योजनाओं को पूरा करने में जुटे हैं। शिक्षा: आगरा कॉलेज से भौतिक विज्ञान में एम.एस-सी., हिंदी साहित्य में एम.ए., कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से ‘छायावाद एवं परवर्ती काव्य में सौंदर्यानुभूति’ विषय पर शोध।.
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