Humsafaron Ke Darmiyan (HB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Shamim Hanfi, Tr. Shubham Mishra
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Rajkamal
Author:
Shamim Hanfi, Tr. Shubham Mishra
Language:
Hindi
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Hardback

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आधुनिक उर्दू कविता के बारे में यह छोटी-सी किताब मेरे कुछ निबन्धों पर आधारित है। समकालीन साहित्य और उससे सम्बन्धित समस्याएँ मेरी सोच और दिलचस्पी का ख़ास विषय रही हैं। पिछले पचास-साठ बरसों में मैंने इस विषय पर कम से कम साठ-सत्तर निबन्ध लिखे होंगे। उन्नीसवीं सदी और बीसवीं सदी के बहुत से शायरों को मैंने अपने आलोचनात्मक अध्ययन का बहाना बनाया यानी कि ग़ालिब से लेकर आज तक की शायरी में मेरी गहरी दिलचस्पी रही है।
यहाँ आगे बढ़ने से पहले एक और सफ़ाई देना चाहता हूँ। पारम्परिक प्रगतिवाद, आधुनिकतावाद और उत्तर-आधुनिकतावाद में मेरा विश्वास बहुत कमज़ोर है। मैं समझता हूँ कि हमारी अपनी सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक परम्परा के सन्दर्भ में ही हमारे अपने प्रगतिवाद, आधुनिकतावाद और उत्तर-आधुनिकता की रूपरेखा तैयार की जानी चाहिए। हमारा जीवन हमारे समय के पश्चिमी जीवन और सोच-समझ की कार्बन कॉपी नहीं है। जिस तरह हमारा सौन्दर्यशास्त्र या Aesthetic Culture अलग है, उसी तरह हमारी प्रोग्रेसिविज़्म (Progressivism) और Modernity या ज़दीदियत भी अलग है। मैंने इसी दृष्टिकोण के साथ आधुनिक युग के अधिकतर शायरों को समझने की कोशिश की है।
ये निबन्ध मेरी दो किताबों—’हमसफ़रों के दरमियाँ’ (सह-यात्रियों के बीच) और ‘हमनफ़सों की बज़्म में’ (यार-दोस्तों की सभा में) से लिए गए हैं। इनमें मेरा विषय बननेवाले शायरों का स्वभाव, चरित्र, चेतना और रूप-रंग अलग-अलग हैं। मैं समझता हूँ कि आधुनिकतावाद को इसी भिन्नता और बहुलता का प्रतीक होना चाहिए। 
—शमीम हनफी (प्रस्तावना से)
 
”हालाँकि हिन्दी में उर्दू साहित्य के आधुनिक दौर के अधिकांश शायरों से ख़ासी वाक़‍िफ़यत रही है, उन पर स्वयं उर्दू में जो विचार और विश्लेषण हुआ है, उससे हमारा अधिक परिचय नहीं रहा है। शमीम हनफी स्वयं शायर होने के अलावा एक बड़े आलोचक के रूप में उर्दू में बहुमान्य हैं। उनके कुछ निबन्धों के इस संचयन के माध्यम से उर्दू की आधुनिक कविता की कई जटिलताओं, तनावों और सूक्ष्मताओं को जान सकेंगे और कई बड़े उर्दू शायरों की रचनाओं का हमारा रसास्वादन गहरा होगा। हमें यह संचयन प्रस्तुत करते हुए प्रसन्नता है।”
—अशोक वाजपेयी

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Description

आधुनिक उर्दू कविता के बारे में यह छोटी-सी किताब मेरे कुछ निबन्धों पर आधारित है। समकालीन साहित्य और उससे सम्बन्धित समस्याएँ मेरी सोच और दिलचस्पी का ख़ास विषय रही हैं। पिछले पचास-साठ बरसों में मैंने इस विषय पर कम से कम साठ-सत्तर निबन्ध लिखे होंगे। उन्नीसवीं सदी और बीसवीं सदी के बहुत से शायरों को मैंने अपने आलोचनात्मक अध्ययन का बहाना बनाया यानी कि ग़ालिब से लेकर आज तक की शायरी में मेरी गहरी दिलचस्पी रही है।
यहाँ आगे बढ़ने से पहले एक और सफ़ाई देना चाहता हूँ। पारम्परिक प्रगतिवाद, आधुनिकतावाद और उत्तर-आधुनिकतावाद में मेरा विश्वास बहुत कमज़ोर है। मैं समझता हूँ कि हमारी अपनी सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक परम्परा के सन्दर्भ में ही हमारे अपने प्रगतिवाद, आधुनिकतावाद और उत्तर-आधुनिकता की रूपरेखा तैयार की जानी चाहिए। हमारा जीवन हमारे समय के पश्चिमी जीवन और सोच-समझ की कार्बन कॉपी नहीं है। जिस तरह हमारा सौन्दर्यशास्त्र या Aesthetic Culture अलग है, उसी तरह हमारी प्रोग्रेसिविज़्म (Progressivism) और Modernity या ज़दीदियत भी अलग है। मैंने इसी दृष्टिकोण के साथ आधुनिक युग के अधिकतर शायरों को समझने की कोशिश की है।
ये निबन्ध मेरी दो किताबों—’हमसफ़रों के दरमियाँ’ (सह-यात्रियों के बीच) और ‘हमनफ़सों की बज़्म में’ (यार-दोस्तों की सभा में) से लिए गए हैं। इनमें मेरा विषय बननेवाले शायरों का स्वभाव, चरित्र, चेतना और रूप-रंग अलग-अलग हैं। मैं समझता हूँ कि आधुनिकतावाद को इसी भिन्नता और बहुलता का प्रतीक होना चाहिए। 
—शमीम हनफी (प्रस्तावना से)
 
”हालाँकि हिन्दी में उर्दू साहित्य के आधुनिक दौर के अधिकांश शायरों से ख़ासी वाक़‍िफ़यत रही है, उन पर स्वयं उर्दू में जो विचार और विश्लेषण हुआ है, उससे हमारा अधिक परिचय नहीं रहा है। शमीम हनफी स्वयं शायर होने के अलावा एक बड़े आलोचक के रूप में उर्दू में बहुमान्य हैं। उनके कुछ निबन्धों के इस संचयन के माध्यम से उर्दू की आधुनिक कविता की कई जटिलताओं, तनावों और सूक्ष्मताओं को जान सकेंगे और कई बड़े उर्दू शायरों की रचनाओं का हमारा रसास्वादन गहरा होगा। हमें यह संचयन प्रस्तुत करते हुए प्रसन्नता है।”
—अशोक वाजपेयी

About Author

शमीम हनफी

देश-विदेश के अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित शमीम हनफी (जन्म : 1938) उर्दू भाषा के मूर्धन्य साहित्यालोचक, नाटककार, कवि और विचारक हैं। आप जामिया मिल्लिया इस्लामिया में उर्दू के प्रोफ़ेसर रहे हैं और वहाँ की समादृत पत्रिका 'जामिया' का आपने वर्षों तक सम्पादन किया है।

आपकी साहित्यिक आलोचना की बीस से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हैं और अनेक पुस्तकों के सम्पादन सहित आपने चार नाटक, अनुवाद की चार पुस्तकों के अलावा बाल साहित्य भी लिखा है। आपकी कविताओं का एक संग्रह भी प्रकाशित है। चित्रकला और रूपंकर कलाओं में आपकी गहरी रुचि है।

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