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Hum SAB Fake Hain

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Neeraj Badhwar
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Prabhat Prakashan
Author:
Neeraj Badhwar
Language:
Hindi
Format:
Paperback

125

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1-4 Days

In stock

Weight 170 g
Book Type

ISBN:
SKU 9789350488447 Category Tags ,
Category:
Page Extent:
175

विज्ञापन प्रदेश में रहनेवाली ज्यादातर लड़कियों का मैंने यही चरित्र देखा है। ये जरा भी डिमांडिंग नहीं होतीं। लड़का 150 सीसी की बाइक चलाए तो उस पर लट्टू हो जाती हैं, 125 सीसी की बाइक ले आए तो भी फ्लैट हो जाती हैं। गाड़ी के इंजन का इनके पिकअप पर कोई फर्क नहीं पड़ता। ये आदतन सैल्फ स्टार्ट होती हैं। प्रभावित होने के लिए कोई शर्त नहीं रखतीं। बंदरछाप लड़का कबूतरछाप दंतमंजन भी लगाता है तो उसे दिल दे बैठती हैं। ढंग का डियो लगाने पर उसके कपड़े फाड़ देती हैं। आम तौर पर लड़कियों को पान-गुटखे से भले जितनी नफरत हो, लेकिन विज्ञापनबालाएँ उसी को दिल देती हैं, जो खास कंपनी का गुटखा खाता है। मानो बरसों से ऐसे ही लड़के की तलाश में हों, जो जर्दा या गुटखा खाता हो।.

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Description

विज्ञापन प्रदेश में रहनेवाली ज्यादातर लड़कियों का मैंने यही चरित्र देखा है। ये जरा भी डिमांडिंग नहीं होतीं। लड़का 150 सीसी की बाइक चलाए तो उस पर लट्टू हो जाती हैं, 125 सीसी की बाइक ले आए तो भी फ्लैट हो जाती हैं। गाड़ी के इंजन का इनके पिकअप पर कोई फर्क नहीं पड़ता। ये आदतन सैल्फ स्टार्ट होती हैं। प्रभावित होने के लिए कोई शर्त नहीं रखतीं। बंदरछाप लड़का कबूतरछाप दंतमंजन भी लगाता है तो उसे दिल दे बैठती हैं। ढंग का डियो लगाने पर उसके कपड़े फाड़ देती हैं। आम तौर पर लड़कियों को पान-गुटखे से भले जितनी नफरत हो, लेकिन विज्ञापनबालाएँ उसी को दिल देती हैं, जो खास कंपनी का गुटखा खाता है। मानो बरसों से ऐसे ही लड़के की तलाश में हों, जो जर्दा या गुटखा खाता हो।.

About Author

राजस्थान के श्रीगंगानगर में पले-बढ़े नीरज बधवार ने कॉलेज खत्म होने तक जिंदगी में सिर्फ तीन ही काम किए—टी.वी. देखना, क्रिकेट खेलना और देर तक सोना। ग्रेजुएट होते ही उन्हें समझ आ गया कि क्रिकेटर मैं बन नहीं सकता, सोने में कॅरियर बनाया नहीं जा सकता, बचा टी.वी., जो देखा तो बहुत था, मगर उसमें दिखने की तमन्ना बाकी थी। यही तमन्ना उन्हें दिल्ली ले आई। जर्नलिज्म का कोर्स किया और छुट-पुट नौकरियों में शोषण करवाने के बाद वो टी.वी. एंकर हो गए। एंकर बन परदे पर दिखने का शौक पूरा किया तो लिखने का शौक पैदा हो गया। हिम्मत जुटा एक रचना अखबार में भेजी। उनके सौभाग्य और पाठकों के दुर्भाग्य से उसे छाप दिया गया। इसके बाद तो उनका दु:स्साहस बढ़ा और एक-एक कर उन्होंने कई अखबारों में रायता फैलाना शुरू कर दिया। हिंदी हास्य-व्यंग्य की जिस दुर्गति के लिए जानकार अखबारी कॉलमों को जिम्मेदार मानते हैं, उसमें ये अपनी महती भूमिका पिछले आठ साल से निभा रहे हैं। सिर्फ अखबार और टी.वी. में लोगों को परेशान कर जब इनका दिल नहीं भरा तो ये सोशल मीडिया की ओर कूच कर गए। 2011 में khabarbaazi.com के नाम से हास्य-व्यंग्य का पोर्टल लॉञ्च किया। अपने वनलाइनर्स के माध्यम से हजारों लोगों को आज ये ट्विटर पर अपने झाँसे में ले चुके हैं। जल्द आनेवाली एक हिंदी फिल्म के डायलॉग्स का कूड़ा भी इनके हाथों हुआ है। वर्तमान में ‘सहारा समय’ चैनल में डिप्टी एडिटर/एंकर के पद पर कार्यरत हैं। ‘सहारा समय’ पर ही हास्य-व्यंग्य के कार्यक्रम ‘अर्थात्’ के जरिए लोगों को राजनीति और बाकी दुनिया की बातों का अनकहा मतलब समझा रहे हैं। ‘खबरबाजी’ के संपादन के अलावा ‘दैनिक हिंदुस्तान’ और ‘नवभारत टाइम्स’ में साप्ताहिक कॉलमों के जरिए भी लोगों पर जुल्म ढाने का सिलसिला जारी है। यह पुस्तक लेखक के उसी जुल्म की दास्ताँ का एक और किस्सा है। और इस उम्मीद के साथ आपके हाथों में है कि इसका हिस्सा बनकर आप इस किस्से को सुनाने लायक बना पाएँगे।.

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