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Hone Ka Dukh : Khand Do (HB)
Publisher:
Rajkamal
| Author:
Shankha Ghosh, Tr. Utpal Banerjee
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Rajkamal
Author:
Shankha Ghosh, Tr. Utpal Banerjee
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹699 ₹489
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ISBN:
SKU
9789387462083
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
हमारी परम्परा में यह माना गया है कि गद्य कवियों का निकष होता है। यह निरा संयोग नहीं है कि प्राय: सभी भारतीय भाषाओं में महत्त्वपूर्ण कवियों ने अच्छा, सरस और रोशनी देनेवाला गद्य लिखा है। हम इस पुस्तक माला में ऐसा कवि-गद्य प्रस्तुत करने के लिए सचेष्ट हैं। शंख घोष न सिर्फ़ इस समय बाङ्ला के सबसे बड़े कवि हैं, वे भारतीय कवि-समाज में भी मूर्धन्य हैं। उनका गद्य हम दो खंडों में प्रस्तुत कर रहे हैं। यह दूसरा संचयन है। हम मानते हैं कि इसे हिन्दी में लाकर हम हिन्दी के सर्जनात्मक-बौद्धिक भूगोल में कुछ विस्तार कर रहे हैं। स्वयं हिन्दी की आलोचना-भाषा में इससे कुछ उद्वेलन सम्भव है। यह उनकी सूक्ष्म जीवन और काव्य-दृष्टि का साक्ष्य है : कई विषयों पर नए ताज़े ढंग से सोचने के लिए हमें प्रेरित भी करता है। उनके यहाँ बारहा ऐसे अनुभवों को गद्य में रूपायित करने की चेष्टा है जो अक्सर गद्य के अहाते से बाहर रहे आए हैं।
—अशोक वाजपेयी
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Description
हमारी परम्परा में यह माना गया है कि गद्य कवियों का निकष होता है। यह निरा संयोग नहीं है कि प्राय: सभी भारतीय भाषाओं में महत्त्वपूर्ण कवियों ने अच्छा, सरस और रोशनी देनेवाला गद्य लिखा है। हम इस पुस्तक माला में ऐसा कवि-गद्य प्रस्तुत करने के लिए सचेष्ट हैं। शंख घोष न सिर्फ़ इस समय बाङ्ला के सबसे बड़े कवि हैं, वे भारतीय कवि-समाज में भी मूर्धन्य हैं। उनका गद्य हम दो खंडों में प्रस्तुत कर रहे हैं। यह दूसरा संचयन है। हम मानते हैं कि इसे हिन्दी में लाकर हम हिन्दी के सर्जनात्मक-बौद्धिक भूगोल में कुछ विस्तार कर रहे हैं। स्वयं हिन्दी की आलोचना-भाषा में इससे कुछ उद्वेलन सम्भव है। यह उनकी सूक्ष्म जीवन और काव्य-दृष्टि का साक्ष्य है : कई विषयों पर नए ताज़े ढंग से सोचने के लिए हमें प्रेरित भी करता है। उनके यहाँ बारहा ऐसे अनुभवों को गद्य में रूपायित करने की चेष्टा है जो अक्सर गद्य के अहाते से बाहर रहे आए हैं।
—अशोक वाजपेयी
About Author
शंख घोष
जन्म 6 फरवरी, 1932; चाँदपुर (अब बांग्लादेश में)। बांग्ला और भारतीय कविता के अग्रणी और अप्रतिम कवि। रवीन्द्र साहित्य के गम्भीर और अद्वितीय प्रामाणिक अध्येता। कोलकाता विश्वविद्यालय, जादवपुर विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय तक अध्यापन कार्य। ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार‘ (1977), ‘कुमारन आसान पुरस्कार’ (1983), ‘सरस्वती सम्मान’, ‘आनन्द पुरस्कार’, शान्तिनिकेतन के ‘देशिकोत्तम’ तथा ‘पद्मभूषण’ से अलंकृत। वर्ष 2016 के ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित’। कविता-संग्रह हैं : ‘दिनगुलि रातगुलि’, (1956); ‘निहित पाताल छाया’, (1967); ‘श्रेष्ठ कविता’, ‘कविता-संग्रह-1’, ‘कविता-संग्रह-2’, ‘मूर्ख बड़ो’ (1974); ‘बाबरेर प्रार्थना’, (1976); ‘प्रहर जोड़ा त्रिताल’, (1980); ‘मुख ढेके जाय विज्ञापने’ (1984) आदि। नए संग्रह हैं—‘बहु सुर स्तब्ध पोड़े आछे’ और ‘शुनि शुधु नीरव चीत्कार’।
गद्य कृतियों में से कुछ चर्चित पुस्तकें हैं : ‘कालेर मात्रा ओ रवीन्द्रनाथ’, ‘नि:शब्देर तर्जनी’ (1971); ‘दामिनीर गान’, ‘छंदेर बारांदा’, (1971); ‘बोइयेर घर’, ‘ओकांपोर रवीन्द्रनाथ’ (1973); ‘उर्वशीर हाँसी’, (1981); ‘निर्माण आर सृष्टि’, ‘बटपाकुरेर फेना’ आदि। बच्चों की सरस रचनाओं के लिए भी ख्यात। कोलकाता में निवास।
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