SaleHardback
Hindutva
Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Vinayak Damodar Savarkar
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Prabhat Prakashan
Author:
Vinayak Damodar Savarkar
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹400 ₹300
Save: 25%
In stock
Ships within:
1-4 Days
In stock
Weight | 322 g |
---|---|
Book Type |
ISBN:
SKU
9789389982039
Category Non Fiction
Category: Non Fiction
Page Extent:
146
‘हिंदुत्व का विचार’, ‘भारत की प्राचीनतमा’, ‘हमारी राष्ट्रीयता’, ‘समाज का आचरण’, ‘स्त्री सशक्तीकरण’, ‘विकास की अवधारणा’, ‘अहिंसा का सिद्धांत’, ‘बाबा साहेब आंबेडकर’ और ‘भारत का भवितव्य’ जैसे विचारों को परिष्कृत करेगी।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक ऐसा सांस्कृतिक संगठन है, जिसके लाखों समर्पित स्वयंसेवक राष्ट्र-निर्माण में लगे हैं और भारत को परम वैभव संपन्न बनाने के लिए कृतसंकल्पित हैं। परम पूज्य सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने सन् 1925 की विजयादशमी को इसी उद्देश्य से संघ की स्थापना की। समर्पित भाव से व्यक्ति-निर्माण के महती कार्य को लक्षित कर संघ के स्वयंसेवक देश-समाज के प्रायः सभी क्षेत्रों—सेवा, विद्या, चिकित्सा, छात्र, मजदूर, राजनीति—में ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ के मूलमंत्र को जीवन का ध्येय मानकर प्राणपण से जुटे हैं। संघ दुनिया में अपनी तरह का अकेला संगठन है। पिछले कुछ समय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को निकट से जानने और गहराई से समझने की जिज्ञासा बढ़ी है। संघ के छठे और वर्तमान सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत के विचारों पर आधारित यह पुस्तक इस दिशा में दीपशिखा का काम करेगी।
यह पुस्तक अलग-अलग अवसरों पर दिए उनके व्याख्यानों का संग्रह है। ‘हिंदुत्व का विचार’, ‘भारत की प्राचीनतमा’, ‘हमारी राष्ट्रीयता’, ‘समाज का आचरण’, ‘स्त्री सशक्तीकरण’, ‘विकास की अवधारणा’, ‘अहिंसा का सिद्धांत’, ‘बाबा साहेब आंबेडकर’ और ‘भारत का भवितव्य’ जैसे विषयों पर दिए गए उनके व्याख्यान संघ को समझना आसान बना देते हैं। वैसे अपने व्याख्यानों में मोहनराव भागवत बार-बार कहते हैं कि ‘संघ को समझना हो तो संघ में आइए’। यह पुस्तक पाठक के विचारों को परिष्कृत करेगी और समाज में ऐसे राष्ट्रभाव जाग्रत् करेगी, जिससे ‘यशस्वी भारत’ का लक्ष्य सिद्ध होगा।.
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Description
‘हिंदुत्व का विचार’, ‘भारत की प्राचीनतमा’, ‘हमारी राष्ट्रीयता’, ‘समाज का आचरण’, ‘स्त्री सशक्तीकरण’, ‘विकास की अवधारणा’, ‘अहिंसा का सिद्धांत’, ‘बाबा साहेब आंबेडकर’ और ‘भारत का भवितव्य’ जैसे विचारों को परिष्कृत करेगी।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक ऐसा सांस्कृतिक संगठन है, जिसके लाखों समर्पित स्वयंसेवक राष्ट्र-निर्माण में लगे हैं और भारत को परम वैभव संपन्न बनाने के लिए कृतसंकल्पित हैं। परम पूज्य सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने सन् 1925 की विजयादशमी को इसी उद्देश्य से संघ की स्थापना की। समर्पित भाव से व्यक्ति-निर्माण के महती कार्य को लक्षित कर संघ के स्वयंसेवक देश-समाज के प्रायः सभी क्षेत्रों—सेवा, विद्या, चिकित्सा, छात्र, मजदूर, राजनीति—में ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ के मूलमंत्र को जीवन का ध्येय मानकर प्राणपण से जुटे हैं। संघ दुनिया में अपनी तरह का अकेला संगठन है। पिछले कुछ समय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को निकट से जानने और गहराई से समझने की जिज्ञासा बढ़ी है। संघ के छठे और वर्तमान सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत के विचारों पर आधारित यह पुस्तक इस दिशा में दीपशिखा का काम करेगी।
यह पुस्तक अलग-अलग अवसरों पर दिए उनके व्याख्यानों का संग्रह है। ‘हिंदुत्व का विचार’, ‘भारत की प्राचीनतमा’, ‘हमारी राष्ट्रीयता’, ‘समाज का आचरण’, ‘स्त्री सशक्तीकरण’, ‘विकास की अवधारणा’, ‘अहिंसा का सिद्धांत’, ‘बाबा साहेब आंबेडकर’ और ‘भारत का भवितव्य’ जैसे विषयों पर दिए गए उनके व्याख्यान संघ को समझना आसान बना देते हैं। वैसे अपने व्याख्यानों में मोहनराव भागवत बार-बार कहते हैं कि ‘संघ को समझना हो तो संघ में आइए’। यह पुस्तक पाठक के विचारों को परिष्कृत करेगी और समाज में ऐसे राष्ट्रभाव जाग्रत् करेगी, जिससे ‘यशस्वी भारत’ का लक्ष्य सिद्ध होगा।.
About Author
विनायक दामोदर सावरकर—जन्म: 28 मई, 1883 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के ग्राम भगूर में।
शिक्षा: प्रारंभिक शिक्षा गाँव से प्राप्त करने के बाद वर्ष 1905 में नासिक से बी.ए.। 9 जून, 1906 को इंग्लैंड के लिए रवाना।
इंडिया हाउस, लंदन में रहते हुए अनेक लेख व कविताएँ लिखीं। 1907 में ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ ग्रंथ लिखना शुरू किया। प्रथम भारतीय, नागरिक जिन पर हेग के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में मुकदमा चलाया गया। प्रथम क्रांतिकारी, जिन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा दो बार आजन्म कारावास की सजा सुनाई गई।
प्रथम साहित्यकार, जिन्होंने लेखनी और कागज से वंचित होने पर भी अंडमान जेल की दीवारों पर कीलों, काँटों और यहाँ तक कि नाखूनों से विपुल साहित्य का सृजन किया और ऐसी सहस्रों पंक्तियों को वर्षों तक कंठस्थ कराकर अपने सहबंदियों द्वारा देशवासियों तक पहुँचाया।
प्रथम भारतीय लेखक, जिनकी पुस्तकें—मुद्रित व प्रकाशित होने से पूर्व ही— दो-दो सरकारों ने जब्त कीं। वे जितने बड़े क्रांतिकारी उतने ही बड़े साहित्यकार भी थे। अंडमान एवं रत्नागिरि की काल कोठरी में रहकर ‘कमला’, ‘गोमांतक’ एवं ‘विरहोच्छ्वास’ और ‘हिंदुत्व’, ‘हिंदू पदपादशाही’, ‘उःश्राप’, ‘उत्तरक्रिया’, ‘संन्यस्त खड्ग’ आदि ग्रंथ लिखे। महाप्रयाण: 26 फरवरी, 1966 को|
1 review for Hindutva
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Vineet Kumar Singh –
Rated 5 out of 5मैं अमेज़न और goodreads पर इस पुस्तक का रिव्यु पढ़ रहा थ। कुछ लोगों ने इस पुस्तक के बारे में अच्छा नहीं लिखा थ। उनके लिए मैं यही कहना चाहूंगा कि निश्चय ही उनलोगों ने पुस्तक को बिना पढ़े ही रिव्यु किया ह। मैंने स्वयं इस बात का अनुभव किया है कि पूरा पढ़े इस पुस्तक के भाव को समझा नहीं जा सकता है।
हिन्दू , हिंदुत्व की ऐसी व्याख्या शायद ही किसी ने की होगी। सावरकर ऐसे व्यक्तित्व हैं जिनमें हिन्दू चेतना , हिन्दू भाव कूट – कूट कर भरा था। उनकी प्रेरणा का स्रोत शिवाजी और जोजफ मेज़नी थे। जो हिन्दू चेतना शिवाजी में थी , वही सावरकर में थी।
अक्सर सुनने को मिलता है कि हिन्दू शब्द मुसलमानों ने दिया है। सिंधु का अपभ्रंश होते – होते हिन्दू हो गया। लेखक ने इसका विस्तार से खंडन किया है। अगर हिन्दू नाम मुसलमानों ने दिया है, तो सिंधु नदी को यह नाम किसने दिया। दूसरा यह कि मुसलमानों ने हमें काफिर नाम भी दिया लेकिन उस नाम को हमने नहीं अपनाया। लेखक ने इस पुस्तक में हिन्दू , हिंदुत्व , हिन्दुवाद इन शब्दों का अर्थ एवं इनमे अंतर बताया है। साथ ही हिंदुत्व के गुण, लक्षण, दायरा एवं उसकी आवश्यकता इन पर भी विस्तार से चर्चा किया है। लेखक ने यह भी बताया है पितृभू और पुण्यभू एक होने के क्या – क्या फायदे हैं। जैसे अन्य देशों के मुकाबले यहाँ के हिन्दुओं को राष्ट्रवाद जन्मजात तौर पर मिलता है।
किसे हिन्दू मानेंगे और किसको हिन्दू बनाया जा सकता है – इसके बारे में लेखक कहते हैं कि हिन्दू बनने के लिए किसी नए सिद्धांत के अनुयायी बनने की आवश्यकता नहीं है, न ही आत्मा और परमात्मा के विषय में अपने विचारों को बदलना है। हिंदुत्व अपने हिमलायतन दूतों के पंख नहीं काटता बल्कि उन्हें प्रोत्साहित करता है। हिंदुत्व कोई भौगोलिक सीमा नहीं है उसका विस्तार पृथ्वी भर में होना चाहिए। उसका अधिकार क्षेत्र संपूर्ण ब्रह्माण्ड है।
पुस्तक में सूक्ष्म ऐतिहासिक त्रुटिया हैं। हो सकता है कि उस समय यह सत्य उपलब्ध न हो। इसलिए उन त्रुटियों को नजरअंदाज करना चाहिए।
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Vineet Kumar Singh –
मैं अमेज़न और goodreads पर इस पुस्तक का रिव्यु पढ़ रहा थ। कुछ लोगों ने इस पुस्तक के बारे में अच्छा नहीं लिखा थ। उनके लिए मैं यही कहना चाहूंगा कि निश्चय ही उनलोगों ने पुस्तक को बिना पढ़े ही रिव्यु किया ह। मैंने स्वयं इस बात का अनुभव किया है कि पूरा पढ़े इस पुस्तक के भाव को समझा नहीं जा सकता है।
हिन्दू , हिंदुत्व की ऐसी व्याख्या शायद ही किसी ने की होगी। सावरकर ऐसे व्यक्तित्व हैं जिनमें हिन्दू चेतना , हिन्दू भाव कूट – कूट कर भरा था। उनकी प्रेरणा का स्रोत शिवाजी और जोजफ मेज़नी थे। जो हिन्दू चेतना शिवाजी में थी , वही सावरकर में थी।
अक्सर सुनने को मिलता है कि हिन्दू शब्द मुसलमानों ने दिया है। सिंधु का अपभ्रंश होते – होते हिन्दू हो गया। लेखक ने इसका विस्तार से खंडन किया है। अगर हिन्दू नाम मुसलमानों ने दिया है, तो सिंधु नदी को यह नाम किसने दिया। दूसरा यह कि मुसलमानों ने हमें काफिर नाम भी दिया लेकिन उस नाम को हमने नहीं अपनाया। लेखक ने इस पुस्तक में हिन्दू , हिंदुत्व , हिन्दुवाद इन शब्दों का अर्थ एवं इनमे अंतर बताया है। साथ ही हिंदुत्व के गुण, लक्षण, दायरा एवं उसकी आवश्यकता इन पर भी विस्तार से चर्चा किया है। लेखक ने यह भी बताया है पितृभू और पुण्यभू एक होने के क्या – क्या फायदे हैं। जैसे अन्य देशों के मुकाबले यहाँ के हिन्दुओं को राष्ट्रवाद जन्मजात तौर पर मिलता है।
किसे हिन्दू मानेंगे और किसको हिन्दू बनाया जा सकता है – इसके बारे में लेखक कहते हैं कि हिन्दू बनने के लिए किसी नए सिद्धांत के अनुयायी बनने की आवश्यकता नहीं है, न ही आत्मा और परमात्मा के विषय में अपने विचारों को बदलना है। हिंदुत्व अपने हिमलायतन दूतों के पंख नहीं काटता बल्कि उन्हें प्रोत्साहित करता है। हिंदुत्व कोई भौगोलिक सीमा नहीं है उसका विस्तार पृथ्वी भर में होना चाहिए। उसका अधिकार क्षेत्र संपूर्ण ब्रह्माण्ड है।
पुस्तक में सूक्ष्म ऐतिहासिक त्रुटिया हैं। हो सकता है कि उस समय यह सत्य उपलब्ध न हो। इसलिए उन त्रुटियों को नजरअंदाज करना चाहिए।