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Hindu Valmiki Jati

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Dr Bizay Sonkar Shastri
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Prabhat Prakashan
Author:
Dr Bizay Sonkar Shastri
Language:
Hindi
Format:
Hardback

525

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1-4 Days

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Book Type

ISBN:
SKU 9789350485668 Categories , Tag
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Page Extent:
328

वास्तव में वाल्मीकि समाज के राजवंशीय एवं गौरवशाली इतिहास को बलपूर्वक कमरे में बंद तो कर दिया गया किंतु कमरे की खिड़कियों एवं झरोखों से आज भी वह दिख रहा है। डिप्रेस्ड क्लास यानी दलित शब्द 1931 की जनगणना में सर्वप्रथम प्रयुक्‍त हुआ, तत्पश्‍चात् यह सामान्य रूप से प्रयोग होता रहा। दलित संवर्गीय वाल्मीकि, सुदर्शन, रुखी, मखियार, मजहबी सिख इत्यादि समाज में कुल 624 उप-जातियाँ हैं। विदेशी मुगल, तुर्क एवं मुसलिम आक्रांता शासकों के भारी दबाव के बाद भी इसलाम स्वीकार न करने के कारण कट्टर हिंदुओं के हिंदू धर्माभिमान एवं स्वाभिमान को ध्वस्त करने के लिए उन्हें बलपूर्वक तलवार की नोक पर अस्वच्छ (सफाई एवं मैला ढोने) जैसे कार्यों में लगा दिया गया था। उन स्वाभिमानी लोगों ने मैला ढोना स्वीकार किया, किंतु इसलाम को ठुकरा दिया। धर्म एवं राष्‍ट्रहित के समक्ष स्वहित का बलिदान करने वाली वर्तमान हिंदू वाल्मीकि, सुदर्शन, मजहबी इत्यादि जातियों का मध्यकालीन काली रात्रि के पहले की हृदय विदारक एवं मर्मस्पर्शी घटनाएँ इस पुस्तक का सार हैं। वास्तव में यह पुस्तक सारगर्भित इतिहास लेखन के मानदंड के अनुरूप लिखे इतिहास का एक उदाहरण है। इस पुस्तक से हिंदू वाल्मीकि, सुदर्शन, रुखी, मखियार, मजहबी सिख इत्यादि जातियों के साथ-साथ दलित संवर्गीय हजारों जातियों को धर्म एवं देश के नाम पर मर-मिटने का विराट् गौरव -बोध होगा।

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Description

वास्तव में वाल्मीकि समाज के राजवंशीय एवं गौरवशाली इतिहास को बलपूर्वक कमरे में बंद तो कर दिया गया किंतु कमरे की खिड़कियों एवं झरोखों से आज भी वह दिख रहा है। डिप्रेस्ड क्लास यानी दलित शब्द 1931 की जनगणना में सर्वप्रथम प्रयुक्‍त हुआ, तत्पश्‍चात् यह सामान्य रूप से प्रयोग होता रहा। दलित संवर्गीय वाल्मीकि, सुदर्शन, रुखी, मखियार, मजहबी सिख इत्यादि समाज में कुल 624 उप-जातियाँ हैं। विदेशी मुगल, तुर्क एवं मुसलिम आक्रांता शासकों के भारी दबाव के बाद भी इसलाम स्वीकार न करने के कारण कट्टर हिंदुओं के हिंदू धर्माभिमान एवं स्वाभिमान को ध्वस्त करने के लिए उन्हें बलपूर्वक तलवार की नोक पर अस्वच्छ (सफाई एवं मैला ढोने) जैसे कार्यों में लगा दिया गया था। उन स्वाभिमानी लोगों ने मैला ढोना स्वीकार किया, किंतु इसलाम को ठुकरा दिया। धर्म एवं राष्‍ट्रहित के समक्ष स्वहित का बलिदान करने वाली वर्तमान हिंदू वाल्मीकि, सुदर्शन, मजहबी इत्यादि जातियों का मध्यकालीन काली रात्रि के पहले की हृदय विदारक एवं मर्मस्पर्शी घटनाएँ इस पुस्तक का सार हैं। वास्तव में यह पुस्तक सारगर्भित इतिहास लेखन के मानदंड के अनुरूप लिखे इतिहास का एक उदाहरण है। इस पुस्तक से हिंदू वाल्मीकि, सुदर्शन, रुखी, मखियार, मजहबी सिख इत्यादि जातियों के साथ-साथ दलित संवर्गीय हजारों जातियों को धर्म एवं देश के नाम पर मर-मिटने का विराट् गौरव -बोध होगा।

About Author

डॉ. विजय सोनकर शास्त्री का जन्म उत्तर प्रदेश में वाराणसी जनपद में हुआ। काशी हिंदू विश्‍वविद्यालय से बी.ए., एम.बी.ए., पी-एच.डी. (प्रबंध शास्त्र) के साथ ही संपूर्णानंद संस्कृत विश्‍वविद्यालय से शास्त्री की उपाधि प्राप्‍त। बाल्यकाल से ही संघ की शाखाओं में राष्‍ट्रोत्थान एवं परमवैभव के भाव से परिचित डॉ. शास्त्री की संपूर्ण शिक्षा-दीक्षा काशी में हुई। तीन जानलेवा बीमारियों के बाद पूर्णरूपेण स्वस्थ हुए डॉ. शास्त्री ने प्रकृति के संदेश को समझा। हिंदू वैचारिकी और हिंदू संस्कृति को आत्मसात् कर राजनीति में प्रवेश किया और लोकसभा सदस्य बने। सामाजिक न्याय एवं सामाजिक समरसता के पक्षधर डॉ. सोनकर शास्त्री को राष्‍ट्रीय अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आयोग, भारत सरकार का अध्यक्ष भी नियुक्‍त किया गया। देश एवं विदेश की अनेक यात्राएँ कर डॉ. शास्त्री ने हिंदुत्व के प्रचार-प्रसार में अपनी भूमिका को सुनिश्‍च‌ित किया तथा मानवाधिकार, दलित हिंदू की अग्नि-परीक्षा, हिंदू वैचारिकी एक अनुमोदन, सामाजिक समरसता दर्शन एवं अन्य अनेक पुस्तकों का लेखन किया। विश्‍वमानव के ‘सर्वोत्तम कल्याण की भारतीय संकल्पना’ को चरितार्थ करने का संकल्प लेकर व्यवस्था के सभी मोरचा पर सतत सक्रिय एवं वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के राष्‍ट्रीय प्रवक्‍ता के दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं।

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