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Hindi Vyakaran (PB)
Publisher:
Lokbharti
| Author:
KAMTAPRASAD GURU
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Lokbharti
Author:
KAMTAPRASAD GURU
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹225 ₹180
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ISBN:
SKU
9789352210343
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
प्रस्तुत पुस्तक ‘हिन्दी व्याकरण’ में व्याकरण की उपयोगिता और आवश्यकता बतलाई गई है, तथापि यहाँ इतना कहना उचित जान पड़ता है कि किसी भाषा के व्याकरण का निर्माण उसके साहित्य की पूर्ति का कारण होता है और उसकी प्रगति में सहायता देता है। भाषा की सत्ता स्वतंत्र होने पर भी व्याकरण उसका सहायक अनुयायी बनकर उसे समय और स्थान-स्थान पर जो आवश्यक सूचनाएँ देता है, उससे भाषा को लाभ होता है।
यह व्याकरण अधिकांश में, अंग्रेज़ी व्याकरण के ढंग पर लिखा गया है। इस प्रणाली के अनुसरण का मुख्य कारण यह है कि हिन्दी में आरम्भ ही से इसी प्रणाली का उपयोग किया गया है और आज तक किसी लेखक ने संस्कृत प्रणाली का कोई पूर्ण आदर्श उपस्थित नहीं किया। वर्तमान प्रणाली के प्रचार का दूसरा कारण यह है कि इसमें स्पष्टता और सरलता विशेष रूप से पाई जाती है और सूत्र तथा भाष्य, दोनों ऐसे मिले रहते हैं कि पूरा व्याकरण, विशद रूप में लिखा जा सकता है। इस पुस्तक में अधिकांश में वही पारिभाषिक शब्द रखे गए हैं, जो हिन्दी में, ‘भाषाभास्कर’ के द्वारा प्रचलित हो गए हैं। यथार्थ में ये सब शब्द संस्कृत व्याकरण के हैं, जिससे और भी कुछ शब्द लिए गए हैं। थोड़े-बहुत आवश्यक पारिभाषिक शब्द मराठी तथा बांग्ला भाषाओं के व्याकरणों से लिए गए हैं और उपर्युक्त शब्दों के अभाव में कुछ शब्दों की रचना लेखक द्वारा स्वयं की गई है।
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Description
प्रस्तुत पुस्तक ‘हिन्दी व्याकरण’ में व्याकरण की उपयोगिता और आवश्यकता बतलाई गई है, तथापि यहाँ इतना कहना उचित जान पड़ता है कि किसी भाषा के व्याकरण का निर्माण उसके साहित्य की पूर्ति का कारण होता है और उसकी प्रगति में सहायता देता है। भाषा की सत्ता स्वतंत्र होने पर भी व्याकरण उसका सहायक अनुयायी बनकर उसे समय और स्थान-स्थान पर जो आवश्यक सूचनाएँ देता है, उससे भाषा को लाभ होता है।
यह व्याकरण अधिकांश में, अंग्रेज़ी व्याकरण के ढंग पर लिखा गया है। इस प्रणाली के अनुसरण का मुख्य कारण यह है कि हिन्दी में आरम्भ ही से इसी प्रणाली का उपयोग किया गया है और आज तक किसी लेखक ने संस्कृत प्रणाली का कोई पूर्ण आदर्श उपस्थित नहीं किया। वर्तमान प्रणाली के प्रचार का दूसरा कारण यह है कि इसमें स्पष्टता और सरलता विशेष रूप से पाई जाती है और सूत्र तथा भाष्य, दोनों ऐसे मिले रहते हैं कि पूरा व्याकरण, विशद रूप में लिखा जा सकता है। इस पुस्तक में अधिकांश में वही पारिभाषिक शब्द रखे गए हैं, जो हिन्दी में, ‘भाषाभास्कर’ के द्वारा प्रचलित हो गए हैं। यथार्थ में ये सब शब्द संस्कृत व्याकरण के हैं, जिससे और भी कुछ शब्द लिए गए हैं। थोड़े-बहुत आवश्यक पारिभाषिक शब्द मराठी तथा बांग्ला भाषाओं के व्याकरणों से लिए गए हैं और उपर्युक्त शब्दों के अभाव में कुछ शब्दों की रचना लेखक द्वारा स्वयं की गई है।
About Author
पं. कामताप्रसाद गुरु
जन्म : सागर में सन् 1875 ई. में हुआ।
शिक्षा : 17 वर्ष की अवस्था में इंट्रेंस की परीक्षा पास की।
1920 में प्राय: एक वर्ष तक प्रयाग के इंडियन प्रेस में ‘बालसखा’ और ‘सरस्वती’ का सम्पादन किया। विविध भाषाओं का इन्हें अच्छा ज्ञान था। हिन्दी व्याकरण के ये अधिकारी विद्वान् माने जाते हैं। वैसे रचनात्मक प्रतिभा बहुमुखी थी।
प्रमुख कृतियाँ : ‘सत्य’, ‘प्रेम’, ‘पार्वती’, ‘यशोदा’ (उपन्यास); ‘भौमासुर वध’ तथा ‘विनय पचासा’ (ब्रजभाषा काव्य) ; ‘पद्य पुष्पावली’, ‘सुदर्शन’ (पौराणिक नाटक) ‘हिन्दुस्तानी शिष्टाचार’ आदि।
निधन : 15 नवम्बर, 1947 ई.।
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