Hindi Vyakaran Mimansa (HB)

Publisher:
Radhakrishna Prakashan
| Author:
Kashiram Sharma
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Radhakrishna Prakashan
Author:
Kashiram Sharma
Language:
Hindi
Format:
Hardback

480

Save: 20%

In stock

Ships within:
1-4 Days

In stock

Weight 0.494 g
Book Type

Availiblity

ISBN:
SKU 9788171192397 Category
Category:
Page Extent:

व्याकरण छह वेदांगों में से एक है। वह वेद का मुख है। अत: भारत में उसके अध्ययन की प्राचीनता उतनी ही है जितनी वेदों की। आज से कम से कम अढ़ाई हज़ार वर्ष पूर्व तो पाणिनि ने उसे पूर्णता तक पहुँचा दिया था।
व्याकरण में वर्णों के उच्चारण, शब्दों की रचना और रूप रचना तथा वाक्यों की रूप-रचना पर विचार होता है। वह भाषा का उच्चारण और रूप रचनामूलक अध्ययन करता है। दूसरे शब्दों में, वह शब्द-प्रधान है, अर्थ-प्रधान नहीं। इसीलिए उसे शब्दानुशासन या शब्दशास्त्र भी कहते हैं।
पश्चिम के ग्रामर अर्थ-प्रधान होते हैं। वे वर्णों के केवल लिपिगत रूप पर विचार करते हैं। शब्दों का वर्गीकरण उनके अर्थ के आधार पर करते हैं : अमुक बोधक, तमुक वाचक आदि। वाक्य में रूप-रचना का भी ध्यान रखते हैं पर प्रधानता विश्लेषण की ही होती है जो प्रकार्य (अर्थ) प्रधान होती है—क्रिया, उसका कर्ता, कर्म, पूरक आदि। सार यह कि ग्रामर अर्थ-प्रधान होते हैं, व्याकरण शब्द-प्रधान।
हिन्दी आदि सीखने के लिए विदेशियों ने ग्रामर बनाए, दुर्भाग्य से उन्हें ही व्याकरण कहा जाने लगा। बाद में ब्‍लूमफील्ड आदि ने भाषा के अध्ययन की व्याकरणिक शैली अपनाई पर उसे ग्रामर नहीं कहा, संरचनात्मक भाषिकी आदि कहा। उनकी भाषिकी व्याकरण है। इसीलिए उन्होंने ग्रामर नहीं कहा
प्रस्तुत रचना में डॉ. दीमशिन्स, कामता प्रसाद गुरु और किशोरीदास वाजपेयी के व्याकरणों की समीक्षा के व्यपदेश से व्याकरण का विषय क्षेत्र तो स्पष्ट किया ही गया है, सच्चे हिन्दी व्याकरण की रूपरेखा भी दी गई है; ऐसे व्याकरण बनेंगे तो भाषा अध्ययन की सही दिशा मिलेगी। जो ग्रामरी शैली को ठीक समझें, वे ग्रामर पढ़ें और लिखें भी, पर उन्हें व्याकरण न कहें? व्याकरण की वही परिभाषा रहने दें जो चार-पाँच हज़ार वर्ष से रही है।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Hindi Vyakaran Mimansa (HB)”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Description

व्याकरण छह वेदांगों में से एक है। वह वेद का मुख है। अत: भारत में उसके अध्ययन की प्राचीनता उतनी ही है जितनी वेदों की। आज से कम से कम अढ़ाई हज़ार वर्ष पूर्व तो पाणिनि ने उसे पूर्णता तक पहुँचा दिया था।
व्याकरण में वर्णों के उच्चारण, शब्दों की रचना और रूप रचना तथा वाक्यों की रूप-रचना पर विचार होता है। वह भाषा का उच्चारण और रूप रचनामूलक अध्ययन करता है। दूसरे शब्दों में, वह शब्द-प्रधान है, अर्थ-प्रधान नहीं। इसीलिए उसे शब्दानुशासन या शब्दशास्त्र भी कहते हैं।
पश्चिम के ग्रामर अर्थ-प्रधान होते हैं। वे वर्णों के केवल लिपिगत रूप पर विचार करते हैं। शब्दों का वर्गीकरण उनके अर्थ के आधार पर करते हैं : अमुक बोधक, तमुक वाचक आदि। वाक्य में रूप-रचना का भी ध्यान रखते हैं पर प्रधानता विश्लेषण की ही होती है जो प्रकार्य (अर्थ) प्रधान होती है—क्रिया, उसका कर्ता, कर्म, पूरक आदि। सार यह कि ग्रामर अर्थ-प्रधान होते हैं, व्याकरण शब्द-प्रधान।
हिन्दी आदि सीखने के लिए विदेशियों ने ग्रामर बनाए, दुर्भाग्य से उन्हें ही व्याकरण कहा जाने लगा। बाद में ब्‍लूमफील्ड आदि ने भाषा के अध्ययन की व्याकरणिक शैली अपनाई पर उसे ग्रामर नहीं कहा, संरचनात्मक भाषिकी आदि कहा। उनकी भाषिकी व्याकरण है। इसीलिए उन्होंने ग्रामर नहीं कहा
प्रस्तुत रचना में डॉ. दीमशिन्स, कामता प्रसाद गुरु और किशोरीदास वाजपेयी के व्याकरणों की समीक्षा के व्यपदेश से व्याकरण का विषय क्षेत्र तो स्पष्ट किया ही गया है, सच्चे हिन्दी व्याकरण की रूपरेखा भी दी गई है; ऐसे व्याकरण बनेंगे तो भाषा अध्ययन की सही दिशा मिलेगी। जो ग्रामरी शैली को ठीक समझें, वे ग्रामर पढ़ें और लिखें भी, पर उन्हें व्याकरण न कहें? व्याकरण की वही परिभाषा रहने दें जो चार-पाँच हज़ार वर्ष से रही है।

About Author

काशीराम शर्मा

 

जन्म : 4 जून, 1924; रतननगर, ज़िला—चुरू, राजस्थान।

शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी और संस्कृत), एल.एल.बी., शास्त्री, साहित्यरत्न, साहित्यालंकार।

कार्यक्षेत्र : सादुल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्यूट, बीकानेर में अपर सचिव; डूंगर कॉलेज बीकानेर में अध्यापन, शिक्षा मंत्रालय, संघ लोक सेवा आयोग, विधि मंत्रालय, केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो, रुड़की विश्वविद्यालय आदि में शब्दावली-निर्माण, अनुवाद, कोश तथा हिन्दी के विकास-विस्तार से सम्बन्धित विविध कार्य।

प्रमुख कृतियाँ : ‘द्रविड़ परिवार की भाषा हिन्दी’, ‘अनर्थानुशासन’, ‘वचनिका का सम्पादन’, ’भारतीय वाङ्मय पर दिव्यदृष्टि’, ‘हिन्दी व्याकरण मीमांसा’ आदि।

‘रामचरित्र’, ‘वचनिका’, ‘रतनरासो’, ‘भारतस्य संविधानम्’ आदि ग्रन्थों का सम्पादन एवं अनुवाद।

सम्मान : राजस्थान शासन द्वारा संस्कृत वैदुष्य के लिए सम्मान; नटनागर शोध संस्थान, सीतामऊ द्वारा साहित्यिक कार्य के लिए मानपत्र; विविध अनुवाद के क्षेत्र में कार्य के लिए विधि मंत्रालय द्वारा ताम्र-पत्र; चुरू हिन्दी साहित्य संसद द्वारा हिन्दी की सेवा के लिए प्रमाणपत्र और स्वर्ण पदक।

31 जुलाई, 1983 को केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो के निदेशक पद से सेवानिवृत्त।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Hindi Vyakaran Mimansa (HB)”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED PRODUCTS

RECENTLY VIEWED