Hindi Saray : Astrakhan Vaya Yerevan (HB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Purushottam Agarwal
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Rajkamal
Author:
Purushottam Agarwal
Language:
Hindi
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Hardback

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…और कई प्रमाणों की तरह अस्त्राखान के हिन्दू व्यापारी भी उस वास्तविकता के प्रमाण हैं, जिस पर ध्यान देने की ज़रूरत ही नहीं महसूस की जाती। वे ऐसे पात्र हैं जो सैकड़ों सालों से अपने लिए लेखक तलाश रहे हैं। वे हिन्दी सराय में बुला रहे हैं, कोई जाने को तैयार नहीं। अस्त्राखान की हिन्दी सराय की ये आवाज़ें, यों तो काफ़ी पहले से सुनता रहा था, धुँधली सी यादें बनी हुई थीं। ‘डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया’ के अलावा, राहुल जी के ‘मध्य एशिया के इतिहास’ में भी अस्त्राखान के व्यापारियों के भारत-सम्पर्क का उल्लेख है। ‘अकथ कहानी प्रेम की’ लिखने के दौरान इन आवाज़ों की धुँधली यादें तो ताज़ा हो ही गईं, कुछ और आवाज़ें भी सुनाई देने लगीं। भारत के साथ-साथ अन्य सभ्यताओं के इतिहासों से भी आती हैं ऐसी आवाज़ें, जिन्हें औपनिवेशिक इतिहास-दृष्टि के अन्धविश्वास दबाते रहे हैं। ऐसी आवाज़ें मुझे बुलाती रहती हैं, कभी मेक्सिको तो कभी अस्त्राखान।
इन्हीं आवाज़ों को सुनने की उत्सुकता ने, अस्त्राखान में हिन्दी-सराय बनानेवाले, वोल्‍गा किनारे के तातार-बाज़ार में अपने मकानों और मक़ामों के अब तक दिखनेवाले निशान छोड़ जानेवाले मुलतानियों, मारवाड़ियों, सिन्धियों, गुजरातियों से बात करने की बेचैनी ने ही कराया, मेरा यह सफ़र हिन्दी सराय अस्त्राखान वाया येरेवान का…
—इसी पुस्तक से।

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Description

…और कई प्रमाणों की तरह अस्त्राखान के हिन्दू व्यापारी भी उस वास्तविकता के प्रमाण हैं, जिस पर ध्यान देने की ज़रूरत ही नहीं महसूस की जाती। वे ऐसे पात्र हैं जो सैकड़ों सालों से अपने लिए लेखक तलाश रहे हैं। वे हिन्दी सराय में बुला रहे हैं, कोई जाने को तैयार नहीं। अस्त्राखान की हिन्दी सराय की ये आवाज़ें, यों तो काफ़ी पहले से सुनता रहा था, धुँधली सी यादें बनी हुई थीं। ‘डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया’ के अलावा, राहुल जी के ‘मध्य एशिया के इतिहास’ में भी अस्त्राखान के व्यापारियों के भारत-सम्पर्क का उल्लेख है। ‘अकथ कहानी प्रेम की’ लिखने के दौरान इन आवाज़ों की धुँधली यादें तो ताज़ा हो ही गईं, कुछ और आवाज़ें भी सुनाई देने लगीं। भारत के साथ-साथ अन्य सभ्यताओं के इतिहासों से भी आती हैं ऐसी आवाज़ें, जिन्हें औपनिवेशिक इतिहास-दृष्टि के अन्धविश्वास दबाते रहे हैं। ऐसी आवाज़ें मुझे बुलाती रहती हैं, कभी मेक्सिको तो कभी अस्त्राखान।
इन्हीं आवाज़ों को सुनने की उत्सुकता ने, अस्त्राखान में हिन्दी-सराय बनानेवाले, वोल्‍गा किनारे के तातार-बाज़ार में अपने मकानों और मक़ामों के अब तक दिखनेवाले निशान छोड़ जानेवाले मुलतानियों, मारवाड़ियों, सिन्धियों, गुजरातियों से बात करने की बेचैनी ने ही कराया, मेरा यह सफ़र हिन्दी सराय अस्त्राखान वाया येरेवान का…
—इसी पुस्तक से।

About Author

पुरुषोत्तम अग्रवाल

जन्‍म : 25 अगस्‍त, 1955

पुरुषोत्तम अग्रवाल ने जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय से 'कबीर की भक्ति का सामाजिक अर्थ’ विषय पर पीएच.डी. की डिग्री प्राप्त की और रामजस कॉलेज, दिल्ली तथा जेएनयू में अध्यापन कार्य किया।

प्रकाशित कृतियाँ हैं : 'संस्कृति : वर्चस्व और प्रतिरोध’, 'तीसरा रुख’, 'विचार का अनन्‍त’, 'शिवदानसिंह चौहान’, 'निज ब्रह्म विचार’, 'कबीर : साखी और सबद’, 'हिन्दी सराय : अस्त्राखान वाया येरेवान’ तथा 'पद्मावत : एन एपिक लव स्टोरी’ (अंग्रेज़ी में)।

उनकी पुस्तक 'अकथ कहानी प्रेम की : कबीर की कविता और उनका समय’ भक्ति-सम्बन्धी विमर्श में अनिवार्य ग्रन्थ का दर्जा हासिल कर चुकी है। पिछले कुछ वर्षों में प्रकाशित कहानियाँ जीवन्त और विचारोत्तेजक चर्चा के केन्द्र में रही हैं, जिनमें शामिल हैं, 'चेंग-चुई’, 'चौराहे पर पुतला’, 'पैरघंटी’, 'पान पत्ते की गोठ’ और 'उदासी का कोना’। 'नाकोहस’ उनका पहला और अत्यन्त चर्चित उपन्यास है।

भक्ति-संवेदना, शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व और सांस्कृतिक इतिहास से सम्बद्ध समस्याओं पर आयोजित गोष्ठियों और भाषणमालाओं के लिए अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, फ़्रांस, आयरलैंड, नेपाल, श्रीलंका, थाईलैंड, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों की यात्राएँ कीं। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी और कॉलेज ऑफ़ मेक्सिको में विजिटिंग प्रोफ़ेसर भी रहे।

आलोचना पुस्तक 'तीसरा रुख’ के लिए 1996 में ‘देवीशंकर अवस्थी सम्मान’, 'संस्कृति : वर्चस्व और प्रतिरोध’ के लिए 1997 में मध्य प्रदेश साहित्य परिषद् के ‘मुकुटधर पाण्डेय सम्मान’ तथा 'अकथ कहानी प्रेम की : कबीर की कविता और उनका समय’ के लिए 2001 में राजकमल प्रकाशन के प्रथम ‘राजकमल कृति सम्मान—कबीर, हजारीप्रसाद द्विवेदी पुरस्कार’ से सम्मानित।

राजकमल प्रकाशन की 'भक्ति शृंखला’ के सम्पादक हैं। इसके तहत अभी तक डेविड लोरेंजन की पुस्तक 'निर्गुण संतों के स्वप्न’, जॉन स्टैटन हॉली की 'भक्ति के तीन स्वर’ और डॉ. रमण सिन्हा की पुस्तक 'रामचरितमानस : पाठ : लीला : चित्र : संगीत’ का विस्तृत भूमिकाओं के साथ सम्पादन कर चुके हैं।

एनसीईआरटी की हिन्दी पाठ्य-पुस्तक समिति के मुख्य सलाहकार, भारतीय भाषा केन्द्र, जेएनयू के अध्यक्ष तथा संघ लोक सेवा आयोग के सदस्य भी रह चुके हैं।

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