Hindi Sahitya Ka Itihas

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
आचार्य रामचंद्र शुक्ल
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
आचार्य रामचंद्र शुक्ल
Language:
Hindi
Format:
Paperback

182

Save: 30%

In stock

Ships within:
1-4 Days

In stock

Book Type

Availiblity

ISBN:
SKU 9789350728116 Category
Category:
Page Extent:
572

हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन को यदि आरम्भिक, मध्य व आधुनिक काल में विभाजित कर विचार किया जाए तो स्पष्ट होता है कि हिन्दी साहित्य का इतिहास अत्यन्त विस्तृत व प्राचीन है। हिन्दी भाषा के उद्भव और विकास के सम्बन्ध में प्रचलित धारणाओं पर विचार करते समय हमारे सामने हिन्दी भाषा की उत्पत्ति का प्रश्न दसवीं शताब्दी के आसपास की प्राकृताभास भाषा तथा अपभ्रंश भाषाओं की ओर जाता है। अपभ्रंश शब्द की व्युत्पत्ति और जैन रचनाकारों की अपभ्रंश कृतियों का हिन्दी से सम्बन्ध स्थापित करने के लिए जो तर्क और प्रमाण हिन्दी साहित्य के इतिहास ग्रन्थों में प्रस्तुत किये गये हैं उन पर विचार करना भी आवश्यक है। सामान्यतः प्राकृत की अन्तिम अपभ्रंश अवस्था से ही हिन्दी साहित्य का आविर्भाव स्वीकार किया जाता है। उस समय अपभ्रंश के कई रूप थे और उनमें सातवीं-आठवीं शताब्दी से ही पद्य रचना प्रारम्भ हो गयी थी। साहित्य की दृष्टि से पद्यबद्ध जो रचनाएँ मिलती हैं वे दोहा रूप में ही हैं और उनके विषय, धर्म, नीति, उपदेश आदि प्रमुख हैं। राजाश्रित कवि और चारण नीति, श्रृंगार, शौर्य, पराक्रम आदि के वर्णन से अपनी साहित्य-रुचि का परिचय दिया करते थे। यह रचना-परम्परा आगे चलकर शौरसेनी अपभ्रंश या प्राकृताभास हिन्दी में कई वर्षों तक चलती रही। पुरानी अपभ्रंश भाषा और बोलचाल की देशी भाषा का प्रयोग निरन्तर बढ़ता गया। इस भाषा को विद्यापति ने देसी भाषा कहा है, किन्तु यह निर्णय करना सरल नहीं है कि हिन्दी शब्द का प्रयोग इस भाषा के लिए कब और किस देश में प्रारम्भ हुआ। हाँ, इतना अवश्य कहा जा सकता है कि प्रारम्भ में हिन्दी शब्द का प्रयोग विदेशी मुसलमानों ने किया था। इस शब्द से उनका तात्पर्य भारतीय भाषा का था।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Hindi Sahitya Ka Itihas”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Description

हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन को यदि आरम्भिक, मध्य व आधुनिक काल में विभाजित कर विचार किया जाए तो स्पष्ट होता है कि हिन्दी साहित्य का इतिहास अत्यन्त विस्तृत व प्राचीन है। हिन्दी भाषा के उद्भव और विकास के सम्बन्ध में प्रचलित धारणाओं पर विचार करते समय हमारे सामने हिन्दी भाषा की उत्पत्ति का प्रश्न दसवीं शताब्दी के आसपास की प्राकृताभास भाषा तथा अपभ्रंश भाषाओं की ओर जाता है। अपभ्रंश शब्द की व्युत्पत्ति और जैन रचनाकारों की अपभ्रंश कृतियों का हिन्दी से सम्बन्ध स्थापित करने के लिए जो तर्क और प्रमाण हिन्दी साहित्य के इतिहास ग्रन्थों में प्रस्तुत किये गये हैं उन पर विचार करना भी आवश्यक है। सामान्यतः प्राकृत की अन्तिम अपभ्रंश अवस्था से ही हिन्दी साहित्य का आविर्भाव स्वीकार किया जाता है। उस समय अपभ्रंश के कई रूप थे और उनमें सातवीं-आठवीं शताब्दी से ही पद्य रचना प्रारम्भ हो गयी थी। साहित्य की दृष्टि से पद्यबद्ध जो रचनाएँ मिलती हैं वे दोहा रूप में ही हैं और उनके विषय, धर्म, नीति, उपदेश आदि प्रमुख हैं। राजाश्रित कवि और चारण नीति, श्रृंगार, शौर्य, पराक्रम आदि के वर्णन से अपनी साहित्य-रुचि का परिचय दिया करते थे। यह रचना-परम्परा आगे चलकर शौरसेनी अपभ्रंश या प्राकृताभास हिन्दी में कई वर्षों तक चलती रही। पुरानी अपभ्रंश भाषा और बोलचाल की देशी भाषा का प्रयोग निरन्तर बढ़ता गया। इस भाषा को विद्यापति ने देसी भाषा कहा है, किन्तु यह निर्णय करना सरल नहीं है कि हिन्दी शब्द का प्रयोग इस भाषा के लिए कब और किस देश में प्रारम्भ हुआ। हाँ, इतना अवश्य कहा जा सकता है कि प्रारम्भ में हिन्दी शब्द का प्रयोग विदेशी मुसलमानों ने किया था। इस शब्द से उनका तात्पर्य भारतीय भाषा का था।

About Author

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (4 अक्टूबर, 1882-1942) बीसवीं शताब्दी के हिन्दी के प्रमुख `साहित्यकार थे। उनका जन्म बस्ती, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनके द्वारा लिखी गयी पुस्तकों में प्रमुख है हिन्दी साहित्य का इतिहास, जिसका हिन्दी पाठ्यक्रम को निर्धारित करने में प्रमुख स्थान है। शुक्ल जी हिन्दी साहित्य के कीर्ति स्तम्भ हैं। हिन्दी में वैज्ञानिक आलोचना का सूत्रपात उन्हीं के द्वारा हुआ। हिन्दी निबन्ध के क्षेत्र में शुक्ल जी का स्थान बहुत ऊँचा है। वे श्रेष्ठ और मौलिक निबन्धकार थे। उन्होंने अपने दृष्टिकोण से भाव, विभाव, रस आदि की पुनर्व्याख्या की, साथ ही साथ विभिन्न भावों की व्याख्या में उनका पांडित्य, मौलिकता और सूक्ष्म पर्यवेक्षण पग-पग पर दिखाई देता है। शुक्ल जी की कृतियाँ : मौलिक कृतियाँ तीन प्रकार की हैं : आलोचनात्मक ग्रन्थ : सूर, तुलसी, जायसी पर की गयी आलोचनाएँ, काव्य में रहस्यवाद, काव्य में अभिव्यंजनावाद, रस मीमांसा आदि शुक्ल जी की आलोचनात्मक रचनाएँ हैं। निबन्धात्मक ग्रन्थ : उनके निबन्ध चिंतामणि नामक ग्रन्थ के दो भागों में संगृहीत हैं। चिंतामणि के निबन्धों के अतिरिक्त शुक्लजी ने कुछ अन्य निबन्ध भी लिखे हैं, जिनमें मित्रता, अध्ययन आदि निबन्ध सामान्य विषयों पर लिखे गये निबन्ध हैं। मित्रता निबन्ध जीवनोपयोगी विषय पर लिखा गया उच्चकोटि का निबन्ध है जिसमें शुक्लजी की लेखन शैलीगत विशेषताएँ झलकती हैं। ऐतिहासिक ग्रन्थ : हिन्दी साहित्य का इतिहास उनका अनूठा ऐतिहासिक ग्रन्थ है । अनूदित कृतियाँ : शुक्ल जी की अनूदित कृतियाँ कई हैं। 'शशांक' उनका बांग्ला से अनुवादित उपन्यास है। इसके अतिरिक्त उन्होंने अंग्रेज़ी से विश्वप्रपंच, आदर्श जीवन, मेगस्थनीज का भारतवर्षीय वर्णन, कल्पना का आनन्द आदि रचनाओं का अनुवाद किया। सम्पादित कृतियाँ : सम्पादित ग्रन्थों में हिन्दी शब्दसागर, नागरी प्रचारिणी पत्रिका, भ्रमरगीत सार, सूर, तुलसी, जायसी ग्रन्थावली उल्लेखनीय हैं।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Hindi Sahitya Ka Itihas”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED PRODUCTS

RECENTLY VIEWED