Hindi Mein Hum

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
अभय कुमार दुबे
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
अभय कुमार दुबे
Language:
Hindi
Format:
Paperback

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हिन्दी में हम –
यह किताब हिन्दी भाषा के अस्तित्व और उसकी राजनीतिक व् सांस्कृतिक चेतना को परखते हुए हमें यकायक एक बहस में ले जाती है जो समाज के लगातार बदलते स्वरुप की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करती हैI समाज बदला क्योंकि उसकी भाषा ने भी परिवर्तन को अपनायाI भाषा के विस्तार ने एक नया प्रश्न यह खड़ा किया की इसे राजभाषा और सम्पर्क भाषा का रुतबा कब और कैसे मिला यह एक ग़ौर करने वाली बात हैI हमारे देश में हिन्दी भाषा के कई उतार-चढ़ाव रहे जो भारतीय आधुनिकता की पेचीदा राजनीति में दिखाई देता हैI
गाँधी ने भारतीयता के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी भाषा को जिस तरह से परिभाषित किया है उसका अर्थ यह था कि यह एक सम्पर्क भाषा है जो सम्पूर्ण भारतीय मानस को एक सूत्र में पिरोती हैI गाँधी की वही हिन्दी आज एक अलग मुक़ाम पर पहुँच चुकी है जैसे वह जता रही हो कि वह संस्कृत की बेटी, या उर्दू की दुश्मन, या अंग्रेज़ी की चेरी नहीं है। अगर वह किसी की बेटी है तो भारतीय आधुनिकता की बेटी है।

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Description

हिन्दी में हम –
यह किताब हिन्दी भाषा के अस्तित्व और उसकी राजनीतिक व् सांस्कृतिक चेतना को परखते हुए हमें यकायक एक बहस में ले जाती है जो समाज के लगातार बदलते स्वरुप की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करती हैI समाज बदला क्योंकि उसकी भाषा ने भी परिवर्तन को अपनायाI भाषा के विस्तार ने एक नया प्रश्न यह खड़ा किया की इसे राजभाषा और सम्पर्क भाषा का रुतबा कब और कैसे मिला यह एक ग़ौर करने वाली बात हैI हमारे देश में हिन्दी भाषा के कई उतार-चढ़ाव रहे जो भारतीय आधुनिकता की पेचीदा राजनीति में दिखाई देता हैI
गाँधी ने भारतीयता के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी भाषा को जिस तरह से परिभाषित किया है उसका अर्थ यह था कि यह एक सम्पर्क भाषा है जो सम्पूर्ण भारतीय मानस को एक सूत्र में पिरोती हैI गाँधी की वही हिन्दी आज एक अलग मुक़ाम पर पहुँच चुकी है जैसे वह जता रही हो कि वह संस्कृत की बेटी, या उर्दू की दुश्मन, या अंग्रेज़ी की चेरी नहीं है। अगर वह किसी की बेटी है तो भारतीय आधुनिकता की बेटी है।

About Author

अभय कुमार दुबे - विकासशील समाज अध्ययन पीठ (सीएसडीएस) में एसोसिएट प्रोफेसर और भारतीय भाषा कार्यक्रम के निदेशक, समाज-विज्ञान और मानविकी की पूर्व-समीक्षित पत्रिका ‘प्रतिमान: समय समाज संस्कृति’ के प्रधान सम्पादक। कृतियाँ : हिन्दी में हम, आधुनिकता के कारखाने में भाषा और विचार, फ़ुटपाथ पर कामसूत्र/नारीवाद और सेक्शुअलिटी : कुछ भारतीय निर्मितियाँ, क्रान्ति का आत्म-संघर्ष : नक्सलवादी आन्दोलन के बदलते चेहरे का अध्ययन, कांशी राम : एक राजनीतिक अध्ययन, बाल ठाकरे : एक राजनीतिक अध्ययन, मुलायम सिंह यादव : एक राजनीतिक अध्ययन। सम्पादित कृतियाँ : समाज-विज्ञान विश्वकोश (छह खण्ड), हिन्दी की आधुनिकता : एक पुनर्विचार (तीन खण्ड), साम्प्रदायिकता के स्रोत, आधुनिकता के आईने में दलित, लोकतन्त्र के सात अध्याय, बीच बहस में सेकुलरवाद, भारत का भूमण्डलीकरण, राजनीति की किताब रजनी कोठारी का कृतित्व, सत्ता और समाज : धीरूभाई शेठ का कृतित्व। अनूदित कृतियाँ : सर्वहारा रातें : उन्नीसवीं सदी से फ्रांस में मज़दूर-स्वप्न (नाइट्स ऑफ़ प्रोलेतारियत), भारतनामा (द आइडिया ऑफ़ इण्डिया), भारत के मध्यवर्ग की अजीब दास्तान (द ग्रेट इण्डियन मिडिल क्लास), जिन्ना मुहम्मद अली से क़ायद-ए-आज़म तक (मुहम्मद अली जिन्ना), राष्ट्रवाद का अयोध्या कांड (द रामजन्मभूमि आन्दोलन ऐंड द फ़ियर ऑफ़ सेल्फ़), देशभक्ति बनाम राष्ट्रवाद (रवींद्रनाथ टैगोर ऐंड पॉलिटिक्स ऑफ़ सेल्फ़), अन्तरंगता का स्वप्न : भारतीय समाज में प्रेम और सेक्स (द इंटीमेट रिलेशंस), कामसूत्र से 'कामसूत्र' तक : आधुनिक भारत में सेक्शुअलिटी के सरोकार (अ क्वेश्चन ऑफ़ साइलेंस ?), लोकतन्त्र के तलबगार? (हू वांट्स डेमोक्रेसी?)

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