Hindi Ki Vishwavyapti

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Ganga Prasad Vimal
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Prabhat Prakashan
Author:
Ganga Prasad Vimal
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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अनेक कारणों से भारत में साहित्य-कलाओं के प्रति अनुराग का ठीक-ठीक आकलन नहीं किया गया है। दुष्ट-दृष्टि संपन्न राजनेताओं ने अपने हित स्वार्थों के संदर्भ में भाषा की राजनीति को आग के रूप में इस्तेमाल किया है, किंतु भारत की जनता ने उस राजनीति को ज्यादा हवा नहीं दी। हिंदी साहित्य तथा अन्य कलाओं के प्रति अपने राष्ट्रधर्मी व्यवहार के कारण सभी वर्गों में स्वीकृत रही है तथा अन्य माध्यमों में आसमान तोड़ घेरे में फैलती रही है। एशिया में भी प्रयोजनमूलकता के संदर्भ में अपनी उपयोगिता को रेखांकित करती हुई, सभी माध्यमों और सिनेमा के कारण हिंदी लोकप्रियता के शिखर पर सक्रिय रही है। हिंदी की भविष्य-दृष्टि एशिया के व्यापारिक जगत् में धीरे-धीरे अपना स्वरूप बिंबित कर भविष्य की अग्रणी भाषा के रूप में स्वयं को स्थापित कर रही है। वह भी उस दौर में जब यंत्रारूढ़ अंग्रेजी अपने वर्चस्व का परचम लहरा रही है। तथापि इसी नए दौर में एशिया में एशियाई भाषाओं के अंतर्संबंध नई करवट ले रहे हैं, उनकी अवहेलना करना दुष्ट-दृष्टि संपन्न राजनेताओं द्वारा उत्पन्न भ्रम और भय का लक्ष्य तो है, किंतु उस आशंका की बुनियादें हर आशंका की बुनियादों की तरह खोखली हैं। आइए, हम नई भविष्य-दृष्टि का स्वागत करें। हिंदी के वैश्विक स्वरूप का दिग्दर्शन कराती एक व्यावहारिक पुस्तक।.

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Description

अनेक कारणों से भारत में साहित्य-कलाओं के प्रति अनुराग का ठीक-ठीक आकलन नहीं किया गया है। दुष्ट-दृष्टि संपन्न राजनेताओं ने अपने हित स्वार्थों के संदर्भ में भाषा की राजनीति को आग के रूप में इस्तेमाल किया है, किंतु भारत की जनता ने उस राजनीति को ज्यादा हवा नहीं दी। हिंदी साहित्य तथा अन्य कलाओं के प्रति अपने राष्ट्रधर्मी व्यवहार के कारण सभी वर्गों में स्वीकृत रही है तथा अन्य माध्यमों में आसमान तोड़ घेरे में फैलती रही है। एशिया में भी प्रयोजनमूलकता के संदर्भ में अपनी उपयोगिता को रेखांकित करती हुई, सभी माध्यमों और सिनेमा के कारण हिंदी लोकप्रियता के शिखर पर सक्रिय रही है। हिंदी की भविष्य-दृष्टि एशिया के व्यापारिक जगत् में धीरे-धीरे अपना स्वरूप बिंबित कर भविष्य की अग्रणी भाषा के रूप में स्वयं को स्थापित कर रही है। वह भी उस दौर में जब यंत्रारूढ़ अंग्रेजी अपने वर्चस्व का परचम लहरा रही है। तथापि इसी नए दौर में एशिया में एशियाई भाषाओं के अंतर्संबंध नई करवट ले रहे हैं, उनकी अवहेलना करना दुष्ट-दृष्टि संपन्न राजनेताओं द्वारा उत्पन्न भ्रम और भय का लक्ष्य तो है, किंतु उस आशंका की बुनियादें हर आशंका की बुनियादों की तरह खोखली हैं। आइए, हम नई भविष्य-दृष्टि का स्वागत करें। हिंदी के वैश्विक स्वरूप का दिग्दर्शन कराती एक व्यावहारिक पुस्तक।.

About Author

गंगाप्रसाद विमल नए साहित्य के बहुचर्चित और प्रयात लेखक गंगाप्रसाद विमल का जन्म 1939 में उारकाशी में हुआ। अनेक विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत वे दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़े और चौथाई शतादी अध्यापन करने के बाद भारत सरकार के केंद्रीय हिंदी निदेशालय के निदेशक नियुत हुए, जहाँ उन्होंने सिंधी और उर्दू भाषा की राष्ट्रीय परिषदों का भी काम सँभाला। आठ बरस वे ‘यूनेस्को कूरियर’ के हिंदी संस्करण के संपादक भी रहे और भारतीय भाषाओं के द्विभाषी-त्रिभाषी शदकोशों के प्रकाशन में भी सक्रिय रहे। सन् 1990 के दशक में वे अतिथि लेखक के रूप में इंग्लैंड आमंत्रित किए गए। सन् 1999 में वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अनुवाद के प्रोफेसर नियुत हुए तथा सन् 2000 में भारतीय भाषा केंद्र के अध्यक्ष नियुत किए गए। उनके अब तक पाँच उपन्यास, एक दर्जन कविता-संग्रह और इतने ही कहानी-संग्रह तथा अन्यान्य गद्य पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्होंने विश्वभाषाओं की अनेक पुस्तकों का अनुवाद भी किया है। उनकी स्वयं की भी अनेक पुस्तकों का विदेशी भाषाओं में अनुवाद हुआ है। राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय अलंकरणों से सम्मानित स्वतंत्र लेखक के रूप में सक्रिय हैं।.

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