Hindi Bhasha Itihas Aur Swaroop

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
राजमणि शर्मा
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Vani Prakashan
Author:
राजमणि शर्मा
Language:
Hindi
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Hardback

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हिन्दी भाषा इतिहास और स्वरूप –
भाषा बनायी नहीं जाती, वह स्वयं अपनी प्रकृति के अनुरूप बनती बिगड़ती अपना स्वरूप निर्धारित करती चलती है। हिन्दी इस कथन की साक्षी है। हिन्दी की समृद्धि सरकारी प्रयास या शासन सत्ता के सहयोग का प्रतिफल नहीं है अपितु वह उसकी अन्तःस्रोतस्विनी समृद्ध सलिला के माधुर्य राग की अनुगूँज की परिणति है। उसे किसी राज्याश्रय की आवश्यकता नहीं। वह परमुखापेक्षी भी नहीं। उसे बैसाखियों की भी आवश्यकता नहीं। वह तो जन का वह राग है, वह गान है जिसे सन्तों, भक्तों ने गाया। समाज सुधारकों ने जिसका सहारा लिया और राष्ट्र की अस्मिता, राष्ट्रीय अखण्डता तथा एकता की अभेद्य पर जीवन्त, सरस वह शिला है जिसकी ठोस आधार भूमि का सहारा लेकर राजनेताओं ने स्वाधीनता संग्राम का नेतृत्व किया। और आज यही हिन्दी हज़ारों लेखकों और बहुसंख्य भारतीयों की अभिव्यक्ति और अनुभूति का माध्यम है। एक बात और आज रोजगार के अनेक अवसर हिन्दी ज्ञान के मुखापेक्षी हैं।

प्रस्तुत पुस्तक में हिन्दी का भाषा रूप में क्रमिक विकास, उसके बनते बिगड़ते रूप, विभिन्न काव्य-भाषात्मक स्थितियों और उसके वर्तमान स्वरूप के रेखाकंन के साथ-साथ भाषा वैज्ञानिक पद्धति से विभिन्न भाषिक पक्षों का विवेचन विश्लेषण और वैशिष्ट्य का उद्घाटन प्रस्तुत है।

मेरे इस प्रयास पथ का पाथेय है भारतेन्दु की वह संवेदना और उद्घोषणा जो मुझे निरन्तर आन्दोलित और कुछ कर गुज़रने के लिए प्रेरित करती है:
‘निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को शूल।’

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Description

हिन्दी भाषा इतिहास और स्वरूप –
भाषा बनायी नहीं जाती, वह स्वयं अपनी प्रकृति के अनुरूप बनती बिगड़ती अपना स्वरूप निर्धारित करती चलती है। हिन्दी इस कथन की साक्षी है। हिन्दी की समृद्धि सरकारी प्रयास या शासन सत्ता के सहयोग का प्रतिफल नहीं है अपितु वह उसकी अन्तःस्रोतस्विनी समृद्ध सलिला के माधुर्य राग की अनुगूँज की परिणति है। उसे किसी राज्याश्रय की आवश्यकता नहीं। वह परमुखापेक्षी भी नहीं। उसे बैसाखियों की भी आवश्यकता नहीं। वह तो जन का वह राग है, वह गान है जिसे सन्तों, भक्तों ने गाया। समाज सुधारकों ने जिसका सहारा लिया और राष्ट्र की अस्मिता, राष्ट्रीय अखण्डता तथा एकता की अभेद्य पर जीवन्त, सरस वह शिला है जिसकी ठोस आधार भूमि का सहारा लेकर राजनेताओं ने स्वाधीनता संग्राम का नेतृत्व किया। और आज यही हिन्दी हज़ारों लेखकों और बहुसंख्य भारतीयों की अभिव्यक्ति और अनुभूति का माध्यम है। एक बात और आज रोजगार के अनेक अवसर हिन्दी ज्ञान के मुखापेक्षी हैं।

प्रस्तुत पुस्तक में हिन्दी का भाषा रूप में क्रमिक विकास, उसके बनते बिगड़ते रूप, विभिन्न काव्य-भाषात्मक स्थितियों और उसके वर्तमान स्वरूप के रेखाकंन के साथ-साथ भाषा वैज्ञानिक पद्धति से विभिन्न भाषिक पक्षों का विवेचन विश्लेषण और वैशिष्ट्य का उद्घाटन प्रस्तुत है।

मेरे इस प्रयास पथ का पाथेय है भारतेन्दु की वह संवेदना और उद्घोषणा जो मुझे निरन्तर आन्दोलित और कुछ कर गुज़रने के लिए प्रेरित करती है:
‘निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को शूल।’

About Author

डॉ. राजमणि शर्मा - जन्म : सुलतानपुर के गाँव की माटी में 2 नवम्बर, 1940 को। धुन के पक्के संकल्प के धनी, संघर्ष एवं परिश्रम के बीच से जीवन पथ का निर्माण। शिक्षा : सुल्तानपुर की प्रारम्भिक शिक्षा दीक्षा के पश्चात् काशी हिन्दू विश्वविद्यालय मे एम. ए. (हिन्दी) एवं भाषा विज्ञान में द्विवर्षीय स्नातकोत्तर डिप्लोमा एवं पीएच.डी.। लेखन : 'साहित्य के रूप', 'प्रसाद का गद्य साहित्य', 'आधुनिक भाषा विज्ञान', 'बलिया का विरवा : काशी की माटी', 'अनुवाद विज्ञान', 'काव्यभाषा : रचनात्मक सरोकार' और 'हिन्दी भाषा : इतिहास और स्वरूप', पुस्तकें प्रकाशित। 'समकालीन कहानी : भटकाव से डगर पकड़ती कहानी', 'मुक्तिबोध की रचनात्मक पहचान' और 'दृष्टिकोण' (जयशंकर प्रसाद से सम्बद्ध निबन्धों का संग्रह) प्रकाशनाधीन। लगभग चालीस शोध निबन्ध एवं तीन कविताएँ। योजनाएँ: 'आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी प्रयोग तथा सन्दर्भ कोश' (शीघ्र प्रकाश्य)। दक्षिणी मिर्जापुर ज़िले की बोली भाषा वैज्ञानिक अध्ययन (पूर्ण)। दक्षिणोत्तर भाषाओं के सर्वनाम (कार्यरत)। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा समस्त भारत के स्नातक एवं स्नातकोत्तर कक्षाओं के लिए हिन्दी पाठ्यक्रम निर्मित हेतु गठित पाठ्यक्रम विकास केन्द्र का संयोजक एवं संयुक्त समन्वयक योजना पूर्ण स्वीकृत एवं क्रियान्वित वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग, भारत सरकार द्वारा तैयार की जा रही समालोचना शब्दावली हेतु गठित समिति का सदस्य। अन्य : अनेक संगोष्ठियों का आयोजन एवं सहभागिता। विभिन्न पुनश्चर्या पाठ्यक्रमों में व्याख्यान भारतीय हिन्दी परिषद् की कार्यकारिणी का सदस्य 'इंडो यूरोपियन' एवं 'इंडो अमेरिकन हूज़ हू' में विशिष्ट प्रविष्टि।

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