Har Qissa Adhoora Hai (PB)

Publisher:
RADHA
| Author:
Raj Kumar Singh
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
RADHA
Author:
Raj Kumar Singh
Language:
Hindi
Format:
Paperback

198

Save: 1%

In stock

Ships within:
1-4 Days

In stock

Weight 0.166 g
Book Type

Availiblity

ISBN:
SKU 9788183619806 Category
Category:
Page Extent:

हिन्दी ग़ज़ल अब एक सक्षम विधा बन चुकी है। मौजूदा भारतीय समाज के अनुभव-विस्तार में अलग-अलग जगहों पर अनेक शायर हैं जो उर्दू की इस लोकप्रिय विधा को अपने ढंग से बरत रहे हैं। कहीं उर्दू शब्दों की बहुतायत है, कहीं खड़ी बोली के शब्दों के प्रयोग हैं, तो कहीं आमफ़हम ज़बान में ज़िन्दगी के तजुर्बों की अक्कासी की जा रही है।
राज कुमार सिंह की ग़ज़लें सबकी समझ में आनेवाली शब्दावली में बिलकुल आम मुहावरे को ग़ज़ल में बाँधने की कोशिशें हैं। वे रोज़मर्रा जीवन के अनुभवों और संवेदनाओं को ग़ज़ल के फ़ॉर्म में ऐसे पिरो देते हैं कि पढ़ते हुए पता ही नहीं चलता कि आप ज़िन्दगी से किताब में कब आ गए, और कब किताब से वापस अपनी ज़िन्दगी में चले गए।
उनकी एक ग़ज़ल का मतला है ‘जितनी भी मिल जाए कम लगती है/देर से मिली ख़ुशी ग़म लगती है’, या फिर यह कि, ‘नज़र को फिर धोखे बार-बार हुए/यूँ जीने के बहाने हज़ार हुए’। ये पंक्तियाँ अपनी सहजता में बिना आपको आतंकित किए आपके साथ हो लेती हैं। यही शायर की क़लम की विशेषता है।
इस संग्रह में राज कुमार सिंह की उन्वान-शुदा ग़ज़लों के अलावा उनकी नज़्में भी दी जा रही हैं। लगता है जैसे ज़िन्दगी का जो ग़ज़लों से छूट रहा था, उसे उन्होंने नज़्मों में बड़ी महारत के साथ समेट लिया है। प्रेम और ‌बिछोह से प्रोफ़ेशनल जीवन की आधुनिक विडम्बनाओं तक को उन्होंने इन ग़ज़लों और नज़्मों में पिरो दिया है। एक शे’र और देखें–‘गाँव से हर बार झूठ कहता हूँ/बहुत अच्छे से हम शहर में हैं।‘ कहने की ज़रूरत नहीं कि यह किताब नए से नए पाठक को भी अपने जादू से सरशार करने की क़ुव्वत रखती है।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Har Qissa Adhoora Hai (PB)”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Description

हिन्दी ग़ज़ल अब एक सक्षम विधा बन चुकी है। मौजूदा भारतीय समाज के अनुभव-विस्तार में अलग-अलग जगहों पर अनेक शायर हैं जो उर्दू की इस लोकप्रिय विधा को अपने ढंग से बरत रहे हैं। कहीं उर्दू शब्दों की बहुतायत है, कहीं खड़ी बोली के शब्दों के प्रयोग हैं, तो कहीं आमफ़हम ज़बान में ज़िन्दगी के तजुर्बों की अक्कासी की जा रही है।
राज कुमार सिंह की ग़ज़लें सबकी समझ में आनेवाली शब्दावली में बिलकुल आम मुहावरे को ग़ज़ल में बाँधने की कोशिशें हैं। वे रोज़मर्रा जीवन के अनुभवों और संवेदनाओं को ग़ज़ल के फ़ॉर्म में ऐसे पिरो देते हैं कि पढ़ते हुए पता ही नहीं चलता कि आप ज़िन्दगी से किताब में कब आ गए, और कब किताब से वापस अपनी ज़िन्दगी में चले गए।
उनकी एक ग़ज़ल का मतला है ‘जितनी भी मिल जाए कम लगती है/देर से मिली ख़ुशी ग़म लगती है’, या फिर यह कि, ‘नज़र को फिर धोखे बार-बार हुए/यूँ जीने के बहाने हज़ार हुए’। ये पंक्तियाँ अपनी सहजता में बिना आपको आतंकित किए आपके साथ हो लेती हैं। यही शायर की क़लम की विशेषता है।
इस संग्रह में राज कुमार सिंह की उन्वान-शुदा ग़ज़लों के अलावा उनकी नज़्में भी दी जा रही हैं। लगता है जैसे ज़िन्दगी का जो ग़ज़लों से छूट रहा था, उसे उन्होंने नज़्मों में बड़ी महारत के साथ समेट लिया है। प्रेम और ‌बिछोह से प्रोफ़ेशनल जीवन की आधुनिक विडम्बनाओं तक को उन्होंने इन ग़ज़लों और नज़्मों में पिरो दिया है। एक शे’र और देखें–‘गाँव से हर बार झूठ कहता हूँ/बहुत अच्छे से हम शहर में हैं।‘ कहने की ज़रूरत नहीं कि यह किताब नए से नए पाठक को भी अपने जादू से सरशार करने की क़ुव्वत रखती है।

About Author

राज कुमार सिंह

जन्म : 12 जनवरी, 1971; तत्कालीन इटावा (अब औरैया) जिले की बिधूना तहसील में। शिक्षा : मध्य एवं आधुनिक भारतीय इतिहास से एम.ए. (लखनऊ विश्वविद्यालय), एम.ए., पत्रकारिता (लखनऊ विश्वविद्यालय)।

कार्य : 1994 से पत्रकारिता। प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में कई संस्थानों में कार्य किया। प्रिंट में ‘नवभारत टाइम्स’, लखनऊ में बतौर राजनीतिक सम्‍पादक कार्य किया। इसके अलावा ‘हिन्दुस्तान’ अख़बार के प्रयागराज संस्करण में स्थानीय सम्‍पादक, वाराणसी संस्करण में स्थानीय सम्‍पादक और लखनऊ संस्करण में उप-सम्‍पादक के तौर पर काम किया।

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में ‘सहारा समय’ उत्तर प्रदेश और ‘न्यूज़-24’ चैनल में लखनऊ में ब्यूरो चीफ़ रहे। ‘वायस ऑफ़ इंडिया न्यूज़’ चैनल में लखनऊ में ब्यूरो चीफ़ और फिर स्थानीय सम्‍पादक के तौर पर काम किया। ‘न्यूज़ एक्सप्रेस’ चैनल में लखनऊ में पहले स्टेट हेड, फिर कोआर्डिनेटिंग एडिटर के तौर पर काम किया।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Har Qissa Adhoora Hai (PB)”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED PRODUCTS

RECENTLY VIEWED