Hamare Bahadur Bachche

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Rajnikant Shukla
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Prabhat Prakashan
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Rajnikant Shukla
Language:
Hindi
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Hardback

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बहादुर बच्चों की ये सच्ची कहानियाँ खुद में एक दस्तावेज हैं व इतिहास भी, और वे मानो घोषणा करती हैं कि आज जब हमारा देश और समाज नैतिक मूल्यों के क्षरण की समस्या से जूझ रहा है, तब हमारे देश के ये दिलेर और बहादुर बच्चे ही हैं, जिनसे बच्चे तो सीख लेंगे ही, बड़ों को भी सीख लेनी चाहिए, तभी हमारा देश सच में उज्ज्वल और महान् देश बने। —प्रकाश मनुराष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित इन बच्चों में समान रूप से मौजूद है, और वह है उनके अप्रतिम साहस, सूझबूझ और अपनी जान की परवाह न करते हुए दूसरों के प्राण बचाने का तात्कालिक निर्णय लेने की क्षमता, जिसे देख-सुनकर बड़े भी हैरान रह जाते हैं। —रमेश तैलंगये कहानियाँ हमारे आज के बच्चों की हिम्मत एवं अदम्य साहस की कीर्ति-कथाएँ हैं। दास्तान हैं उस वीरता की, जो उन्होंने विषम परिस्थितियों में दिखाई, जिन्हें पढ़ते हुए हमें यह विश्वास हो जाता है कि बहादुरी की भारतीय परंपरा मरी नहीं, वह हमारे नौनिहालों में कूट-कूटकर भरी हुई है। —ओमप्रकाश कश्यपआज बच्चों के पाठ्यक्रम से अभिमन्यु, एकलव्य, चंद्रगुप्त मौर्य, लक्ष्मीबाई, भगत सिंह, अदुल हमीद जैसे बहादुरों के साहस और वीरता की कहानियाँ लुप्तप्राय हो चुकी हैं। ऐसे समय में बच्चों को हिम्मत और बहादुरी की प्रेरणा देने में ये सच्ची कहानियाँ सहायक सिद्ध होंगी। —हरिश्चंद मेहराप्रथम राष्ट्रीय बाल वीरता पुरस्कार विजेता, 1957

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बहादुर बच्चों की ये सच्ची कहानियाँ खुद में एक दस्तावेज हैं व इतिहास भी, और वे मानो घोषणा करती हैं कि आज जब हमारा देश और समाज नैतिक मूल्यों के क्षरण की समस्या से जूझ रहा है, तब हमारे देश के ये दिलेर और बहादुर बच्चे ही हैं, जिनसे बच्चे तो सीख लेंगे ही, बड़ों को भी सीख लेनी चाहिए, तभी हमारा देश सच में उज्ज्वल और महान् देश बने। —प्रकाश मनुराष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित इन बच्चों में समान रूप से मौजूद है, और वह है उनके अप्रतिम साहस, सूझबूझ और अपनी जान की परवाह न करते हुए दूसरों के प्राण बचाने का तात्कालिक निर्णय लेने की क्षमता, जिसे देख-सुनकर बड़े भी हैरान रह जाते हैं। —रमेश तैलंगये कहानियाँ हमारे आज के बच्चों की हिम्मत एवं अदम्य साहस की कीर्ति-कथाएँ हैं। दास्तान हैं उस वीरता की, जो उन्होंने विषम परिस्थितियों में दिखाई, जिन्हें पढ़ते हुए हमें यह विश्वास हो जाता है कि बहादुरी की भारतीय परंपरा मरी नहीं, वह हमारे नौनिहालों में कूट-कूटकर भरी हुई है। —ओमप्रकाश कश्यपआज बच्चों के पाठ्यक्रम से अभिमन्यु, एकलव्य, चंद्रगुप्त मौर्य, लक्ष्मीबाई, भगत सिंह, अदुल हमीद जैसे बहादुरों के साहस और वीरता की कहानियाँ लुप्तप्राय हो चुकी हैं। ऐसे समय में बच्चों को हिम्मत और बहादुरी की प्रेरणा देने में ये सच्ची कहानियाँ सहायक सिद्ध होंगी। —हरिश्चंद मेहराप्रथम राष्ट्रीय बाल वीरता पुरस्कार विजेता, 1957

About Author

बाल साहित्यकार रजनीकांत शुल का जन्म 15 जनवरी, 1961 को उार प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में हुआ। विभिन्न राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय, सामाजिक तथा शैक्षिक संस्थाओं के साथ मिलकर वे बच्चों व किशोरों के बहुआयामी विकास में निरंतर संलग्न हैं। देश के लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं व प्रसार माध्यमों से उनकी रचनाएँ प्रकाशित व प्रसारित हो चुकी हैं। उनकी बाल विषयक रचनाओं को देश और विदेश में बच्चे प्रतिष्ठित प्रकाशनों के माध्यम से अपने पाठ्यक्रम में पढ़ रहे हैं। विभिन्न भारतीय भाषाओं में उनकी पुस्तकों के अनुवाद प्रकाशित हो रहे हैं। बच्चों के लिए कहानियाँ, कविताएँ, नाटक व नौटंकी लेखन के साथ-साथ उनके लिखे कई बाल रेडियो धारावाहिक भी प्रसारित हो चुके हैं। अनेक राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने उन्हें बच्चों के लिए लेखन, सामाजिक तथा शैक्षिक क्षेत्र में किए गए कार्यों के लिए सम्मानित किया है। वर्तमान में वे राजधानी दिल्ली में शिक्षा निदेशालय के अंतर्गत शिक्षण कार्य से जुड़े हैं।

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