Haldi Ghati Ka Yoddha

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Sushil Kumar
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Prabhat Prakashan
Author:
Sushil Kumar
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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सहसा भामाशाह ने अपने भाई की ओर देखा और स्वयं अपने साथ आए भील युवा को बुलाकर, उसके पास सुरक्षित चर्मकोषों को खोलकर उसी चट्टानी धरती पर सोने और चाँदी की अनगिनत मुद्राएँ उडे़ल दीं। हाथ जोड़कर बोले, ‘‘घड़ीखम्मा! यह सारा धन आपका ही है। इसको लेकर आप मेवाड़ की रक्षा के लिए जो भी करना चाहें, करें।’’वहाँ उपस्थित सरदारों की आँखें चमक उठीं। वे विस्मित से उस विशाल कोष की ओर देखते रह गए।महाराणा ने कहा, ‘‘भामाशाह, यह तुम्हारा धन है। मैं तुम्हारे धन को लेकर इस प्रकार कैसे लुटा सकता हूँ! इसे तुम अपने पास ही रखो।’’भामाशाह ने करबद्ध विनती की, ‘‘अन्नदाता, हम तो आपका दिया हुआ ही खाते हैं और आपका दिया हुआ ही जीते हैं। यह मेवाड़ की धरती हमारी माँ है। इसके निमित्त आप तो अपना सारा राजसुख तक निछावर करके जूझते रहे हैं। ऐसे में यह धन यदि आप किसी भी प्रकार हमारी माँ की स्वतंत्रता के लिए खर्च करते हैं तो यह हमारे लिए गौरव की बात होगी। आप जो चाहें, जैसे भी चाहें, इसका उपयोग करें। हमें तो अपने अन्नदाता पर विश्वास है। अपनी धरती माँ की स्वाधीनता के लिए अपना सिर कटवाना हो तो हमें आप सदा तत्पर ही पाएँगे।’’—इसी पुस्तक सेअदम्य साहस, स्वतंत्रता के प्रति गहन अनुराग व निष्ठा, त्याग-बलिदान तथा स्वाभिमान के प्रतीक थे महाराणा प्रताप। घोर संकट के समय भी उन्होंने साहस व दृढता का दामन कभी नहीं छोड़ा। अप्रतिम योद्धा तथा नीति-कुशल शासक के रूप में उन्होंने ऐसा गौरव अर्जित किया, जो मुगल शहंशाह सहित उनके समकालीन अनगिनत नरेशों के लिए सर्वथा दुर्लभ रहा।

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सहसा भामाशाह ने अपने भाई की ओर देखा और स्वयं अपने साथ आए भील युवा को बुलाकर, उसके पास सुरक्षित चर्मकोषों को खोलकर उसी चट्टानी धरती पर सोने और चाँदी की अनगिनत मुद्राएँ उडे़ल दीं। हाथ जोड़कर बोले, ‘‘घड़ीखम्मा! यह सारा धन आपका ही है। इसको लेकर आप मेवाड़ की रक्षा के लिए जो भी करना चाहें, करें।’’वहाँ उपस्थित सरदारों की आँखें चमक उठीं। वे विस्मित से उस विशाल कोष की ओर देखते रह गए।महाराणा ने कहा, ‘‘भामाशाह, यह तुम्हारा धन है। मैं तुम्हारे धन को लेकर इस प्रकार कैसे लुटा सकता हूँ! इसे तुम अपने पास ही रखो।’’भामाशाह ने करबद्ध विनती की, ‘‘अन्नदाता, हम तो आपका दिया हुआ ही खाते हैं और आपका दिया हुआ ही जीते हैं। यह मेवाड़ की धरती हमारी माँ है। इसके निमित्त आप तो अपना सारा राजसुख तक निछावर करके जूझते रहे हैं। ऐसे में यह धन यदि आप किसी भी प्रकार हमारी माँ की स्वतंत्रता के लिए खर्च करते हैं तो यह हमारे लिए गौरव की बात होगी। आप जो चाहें, जैसे भी चाहें, इसका उपयोग करें। हमें तो अपने अन्नदाता पर विश्वास है। अपनी धरती माँ की स्वाधीनता के लिए अपना सिर कटवाना हो तो हमें आप सदा तत्पर ही पाएँगे।’’—इसी पुस्तक सेअदम्य साहस, स्वतंत्रता के प्रति गहन अनुराग व निष्ठा, त्याग-बलिदान तथा स्वाभिमान के प्रतीक थे महाराणा प्रताप। घोर संकट के समय भी उन्होंने साहस व दृढता का दामन कभी नहीं छोड़ा। अप्रतिम योद्धा तथा नीति-कुशल शासक के रूप में उन्होंने ऐसा गौरव अर्जित किया, जो मुगल शहंशाह सहित उनके समकालीन अनगिनत नरेशों के लिए सर्वथा दुर्लभ रहा।

About Author

जन्म : २० सितंबर, १९३५ को इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) में। शिक्षा : प्रारंभिक शिक्षा इलाहाबाद के ही कसबा फूलपुर में। प्रारंभ से ही स्वाध्याय एवं स्वतंत्र लेखन के प्रति गहन रुचि। समय-समय पर ‘सन्मार्ग दैनिक’ (वाराणसी १९५४-५५), ‘सरिता’, ‘मुक्ता’ (दिल्ली १९५८-६१) आदि पत्र-पत्रिकाओं के संपादक मंडल में कार्यरत रहने के बाद १९६२ से १९८१ तक स्वतंत्र लेखन। फिर १९८१ में ही अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ‘रीडर्स डाइजेस्ट’ के हिंदी संस्करण ‘सर्वोत्तम’ रीडर्स डाइजेस्ट की स्थापना के साथ ही उसके सह-संपादक और सात वर्ष (१९८५ से १९९२) तक ‘सर्वोत्तम’ के संपादक रहे। कृतित्व : कहानी, विशेषकर ‘नई कहानी’ के सशक्त हस्ताक्षर। हिंदी की श्रेष्ठ पत्र-पत्रिकाओं ‘कल्पना’, ‘ज्ञानोदय’, ‘धर्मयुग’, ‘सारिका’, ‘कहानी’, ‘नई कहानियाँ’, ‘अवंतिका’, ‘सुप्रभात’, ‘त्रिपथगा’, ‘इकाई’ आदि में लगभग दो सौ कहानियाँ प्रकाशित। प्रकाशन : ‘सेनापति पुष्यमित्र’ (उपन्यास); (दो खंड)—अभिषेक, अश्वमेध; ‘महाभारत के नारी पात्र’ (छह खंड)— सत्यवती, गांधरी, कुंती, देवकी, रुक्मिणी पांचाली। श्रेष्ठ सांस्कृतिक कहानियाँ। ‘सर्वोत्तम’ से अवकाश ग्रहण के बाद फिर से अध्ययन एवं स्वतंत्र लेखन में रत। संप्रति : वैदिक एवं पौराणिक वाङ्मय के साथ ही प्राचीन इतिहास का गंभीर अध्ययन। प्रागैतिहासिक सभ्यताओं एवं पुरातत्त्व में गहन रुचि। आजकल ‘कौटिल्यीय अर्थशास्त्र का सांस्कृतिक अध्ययन’ की रचना में व्यस्त।

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