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Gaind Aur Goal (HB)
Publisher:
Radhakrishna Prakashan
| Author:
Radhakrishna
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Radhakrishna Prakashan
Author:
Radhakrishna
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹295 ₹236
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In stock
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ISBN:
SKU
9788183618687
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
राधाकृष्ण की पहचान प्रेमचन्द-धारा के लेखक के रूप में प्रेमचन्द के जीवनकाल में ही बन चुकी थी। ‘गेंद और गोल’ उनकी सहज कहानियों का संकलन है। आम लोगों के आम दिनों की कुछ ख़ास बातें इन कहानियों में सहज ही दर्ज हो गई हैं।
ये कहानियाँ ‘फ़ॉर्मूला’ कहानी नहीं हैं, जिन्हें एक सुनिश्चित प्लॉट के तहत गढ़ा गया हो। ये बहते जीवन से कुछ पल सँजोकर पेश की गई हैं। इनमें आर्थिक तंगी है तो व्यावहारिकता भी। उद्दंडता है तो आदर्श भी। फ़रेब है, तो सच्चा प्रेम भी। शीर्षक कहानी ‘गेंद और गोल’ बहुत कम शब्दों में ज़िन्दगी के लक्ष्य को बयाँ कर देती है।
‘गठरी का भेद’ पंचतंत्र की कहानी की तरह सहज सीख देते हुए तीव्र प्रहार करती है।
‘कोयले की ज़िन्दगी’, ‘कलाकार का मास्टरपीस’, ‘मूल्य’, ‘रसायन की पुड़िया’ हर रंग की कहानी इस संकलन में आपको मिल जाएगी।
70 के दशक में लिखी गई ये कहानियाँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक और हृदयस्पर्शी हैं।
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Description
राधाकृष्ण की पहचान प्रेमचन्द-धारा के लेखक के रूप में प्रेमचन्द के जीवनकाल में ही बन चुकी थी। ‘गेंद और गोल’ उनकी सहज कहानियों का संकलन है। आम लोगों के आम दिनों की कुछ ख़ास बातें इन कहानियों में सहज ही दर्ज हो गई हैं।
ये कहानियाँ ‘फ़ॉर्मूला’ कहानी नहीं हैं, जिन्हें एक सुनिश्चित प्लॉट के तहत गढ़ा गया हो। ये बहते जीवन से कुछ पल सँजोकर पेश की गई हैं। इनमें आर्थिक तंगी है तो व्यावहारिकता भी। उद्दंडता है तो आदर्श भी। फ़रेब है, तो सच्चा प्रेम भी। शीर्षक कहानी ‘गेंद और गोल’ बहुत कम शब्दों में ज़िन्दगी के लक्ष्य को बयाँ कर देती है।
‘गठरी का भेद’ पंचतंत्र की कहानी की तरह सहज सीख देते हुए तीव्र प्रहार करती है।
‘कोयले की ज़िन्दगी’, ‘कलाकार का मास्टरपीस’, ‘मूल्य’, ‘रसायन की पुड़िया’ हर रंग की कहानी इस संकलन में आपको मिल जाएगी।
70 के दशक में लिखी गई ये कहानियाँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक और हृदयस्पर्शी हैं।
About Author
राधाकृष्ण
राधाकृष्ण का जन्म 18 सितम्बर, 1910 को राँची के एक मध्यवित्त परिवार में हुआ था। बाल्यावस्था में ही इनके पिता रामजतन लाल का निधन हो गया, अतः प्रारम्भिक जीवन बहुत कष्टपूर्ण रहा। स्कूली शिक्षा से अधिक इन्होंने जीवन की पाठशाला में अनुभव और ज्ञान अर्जित किया। राधाकृष्ण वस्तुतः स्वाध्याय और जन्मजात रचनात्मक प्रतिभा की उपज थे।
साहित्यकार राधाकृष्ण ने हिन्दी कथा साहित्य को शैली, स्वरूप और वस्तु की दृष्टि से एक नई और महत्त्वपूर्ण दिशा की ओर उन्मुख किया था। प्रेमचन्द जैसे कथा-सम्राट ने कथाकार राधाकृष्ण के सम्बन्ध में कहा था : ‘हिन्दी के उत्कृष्ट कथा-शिल्पियों की संख्या काट-छाँटकर पाँच भी कर दी जाए तो उनमें एक नाम राधाकृष्ण का होगा।’ राधाकृष्ण की पहचान प्रेमचन्द-धारा के एक लेखक के रूप में प्रेमचन्द के जीवन-काल में बन चुकी थी।
राधाकृष्ण ‘राधाकृष्ण’ और ‘घोष-बोस-बनर्जी-चटर्जी’ दो नामों से लिखा करते थे। घोष-बोस-बनर्जी-चटर्जी नाम से हास्य-व्यंग्य और राधाकृष्ण नाम से गम्भीर एवं अन्य विधागत रचनाएँ। राधाकृष्ण की पहली कहानी ‘सिन्हा साहब’ सन् 1929 की ‘हिन्दी गल्प माला’ में प्रकाशित हुई थी। इसके बाद क्रमशः ‘महावीर’, ‘सन्देश’, ‘भविष्य’, ‘जन्मभूमि’, ‘हंस’, ‘माया’, ‘माधुरी’, ‘जागरण’ आदि प्रसिद्ध पत्रिकाओं में इनकी रचनाएँ प्रकाशित होती रहीं और देखते-देखते पूरे हिन्दी जगत में अप्रतिम कथाकार के रूप में प्रसिद्ध हो गए। इन्होंने ‘महावीर’, ‘हंस’, ‘माया’, ‘सन्देश’, ‘झारखंड’, ‘कहानी’, ‘आदिवासी’ आदि पत्रिकाओं का सम्पादन किया था।
प्रकाशित प्रमुख कृतियाँ : कहानी-संग्रह—‘रामलीला’, ‘सजला’, ‘गल्पिका’, ‘गेंद और गोल’, ‘चन्द्रगुप्त की तलवार’; उपन्यास—‘रूपान्तर’, ‘बोगस’, ‘सनसनाते सपने’, ‘इस देश को कौन जीत सकेगा’, ‘सपने बिकाऊ हैं’, ‘फुटपाथ’; नाटक—‘भारत छोड़ो’, ‘बिगड़ी हुई बात’, ‘वह देखो साँप’; बाल साहित्य—‘करम साँड़ की कहानी’, ‘भकोलवा’, ‘बागड़ बिल्ला’, ‘तीन दोस्त तीन क़िस्मत’ आदि।
निधन : 3 फरवरी, 1979
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