Ek Surgeon ka Chintan
Publisher:
| Author:
| Language:
| Format:
Publisher:
Author:
Language:
Format:
₹500 ₹375
Save: 25%
In stock
Ships within:
In stock
Book Type |
---|
ISBN:
Page Extent:
यह छोटे से शहर में रहनेवाले एक बच्चे की दिलचस्प और प्रेरणादायी कहानी है, जिसे पढ़ाई में औसत माना जाता था। उसे भाषण-दोष की समस्या थी, फिर भी वह भारत का एक जाना-माना सर्जन और प्रेरक वक्ता बन गया। यह आत्मचरित्र है डॉ. विनायक नागेश श्रीखंडे का जो अपने छात्रों के चहेते और उन हजारों मरीजों की श्रद्धा के पात्र हैं, जिनका कष्ट वे उपचार के मानवीय तरीके से हर लिया करते हैं। इंग्लैंड में उनका अकादमिक प्रदर्शन इतना उत्कृष्ट और शल्य कौशल इतना प्रभावशाली था कि 1960 में ही उन्हें विदेश में एक अच्छे कॅरियर का अवसर मिल गया था। हालाँकि, उनके पिता ने उनसे कहा कि वह भारत लौट आएँ और अपनी मातृभूमि के बीमार लोगों की सेवा करें। वे चाहते थे कि उनका पुत्र एक साधारण मनुष्य का असाधारण सर्जन बने। डॉ. श्रीखंडे को एक ऐसे युग में प्रशिक्षित किया गया, जब शल्य क्रिया एक सेवा थी, न कि एक उद्योग, जहाँ लाभ कमाने की मंशा होती है। उनका कॅरियर इस बात का एक उत्कृष्ट उदाहरण है कि कैसे व्यावसायिक उन्नति के साथ ही नैतिक मूल्यों, करुणा तथा जरूरतमंद और दबे-कुचले लोगों की देखभाल कर भी सफलता के शिखर तक पहुँचा जा सकता है। डॉ. श्रीखंडे द्वारा प्रशिक्षित अनेक छात्रों ने भारत तथा विदेश में नैतिक व्यावसायिक व्यक्तियों के रूप में अपनी पहचान बनाई, तथा उनसे जो कुछ भी सीखा, उसके लिए वे उनका आभार जताते हैं।.
यह छोटे से शहर में रहनेवाले एक बच्चे की दिलचस्प और प्रेरणादायी कहानी है, जिसे पढ़ाई में औसत माना जाता था। उसे भाषण-दोष की समस्या थी, फिर भी वह भारत का एक जाना-माना सर्जन और प्रेरक वक्ता बन गया। यह आत्मचरित्र है डॉ. विनायक नागेश श्रीखंडे का जो अपने छात्रों के चहेते और उन हजारों मरीजों की श्रद्धा के पात्र हैं, जिनका कष्ट वे उपचार के मानवीय तरीके से हर लिया करते हैं। इंग्लैंड में उनका अकादमिक प्रदर्शन इतना उत्कृष्ट और शल्य कौशल इतना प्रभावशाली था कि 1960 में ही उन्हें विदेश में एक अच्छे कॅरियर का अवसर मिल गया था। हालाँकि, उनके पिता ने उनसे कहा कि वह भारत लौट आएँ और अपनी मातृभूमि के बीमार लोगों की सेवा करें। वे चाहते थे कि उनका पुत्र एक साधारण मनुष्य का असाधारण सर्जन बने। डॉ. श्रीखंडे को एक ऐसे युग में प्रशिक्षित किया गया, जब शल्य क्रिया एक सेवा थी, न कि एक उद्योग, जहाँ लाभ कमाने की मंशा होती है। उनका कॅरियर इस बात का एक उत्कृष्ट उदाहरण है कि कैसे व्यावसायिक उन्नति के साथ ही नैतिक मूल्यों, करुणा तथा जरूरतमंद और दबे-कुचले लोगों की देखभाल कर भी सफलता के शिखर तक पहुँचा जा सकता है। डॉ. श्रीखंडे द्वारा प्रशिक्षित अनेक छात्रों ने भारत तथा विदेश में नैतिक व्यावसायिक व्यक्तियों के रूप में अपनी पहचान बनाई, तथा उनसे जो कुछ भी सीखा, उसके लिए वे उनका आभार जताते हैं।.
About Author
Reviews
There are no reviews yet.
Reviews
There are no reviews yet.