Sanskrti Ek : Naam Roop Ane 300

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Ek Surgeon ka Chintan

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
V.N. Shrikhande
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Prabhat Prakashan
Author:
V.N. Shrikhande
Language:
Hindi
Format:
Hardback

375

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1-4 Days

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Book Type

ISBN:
Page Extent:
296

यह छोटे से शहर में रहनेवाले एक बच्चे की दिलचस्प और प्रेरणादायी कहानी है, जिसे पढ़ाई में औसत माना जाता था। उसे भाषण-दोष की समस्या थी, फिर भी वह भारत का एक जाना-माना सर्जन और प्रेरक वक्ता बन गया। यह आत्मचरित्र है डॉ. विनायक नागेश श्रीखंडे का जो अपने छात्रों के चहेते और उन हजारों मरीजों की श्रद्धा के पात्र हैं, जिनका कष्ट वे उपचार के मानवीय तरीके से हर लिया करते हैं। इंग्लैंड में उनका अकादमिक प्रदर्शन इतना उत्कृष्ट और शल्य कौशल इतना प्रभावशाली था कि 1960 में ही उन्हें विदेश में एक अच्छे कॅरियर का अवसर मिल गया था। हालाँकि, उनके पिता ने उनसे कहा कि वह भारत लौट आएँ और अपनी मातृभूमि के बीमार लोगों की सेवा करें। वे चाहते थे कि उनका पुत्र एक साधारण मनुष्य का असाधारण सर्जन बने। डॉ. श्रीखंडे को एक ऐसे युग में प्रशिक्षित किया गया, जब शल्य क्रिया एक सेवा थी, न कि एक उद्योग, जहाँ लाभ कमाने की मंशा होती है। उनका कॅरियर इस बात का एक उत्कृष्ट उदाहरण है कि कैसे व्यावसायिक उन्नति के साथ ही नैतिक मूल्यों, करुणा तथा जरूरतमंद और दबे-कुचले लोगों की देखभाल कर भी सफलता के शिखर तक पहुँचा जा सकता है। डॉ. श्रीखंडे द्वारा प्रशिक्षित अनेक छात्रों ने भारत तथा विदेश में नैतिक व्यावसायिक व्यक्तियों के रूप में अपनी पहचान बनाई, तथा उनसे जो कुछ भी सीखा, उसके लिए वे उनका आभार जताते हैं।.

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Description

यह छोटे से शहर में रहनेवाले एक बच्चे की दिलचस्प और प्रेरणादायी कहानी है, जिसे पढ़ाई में औसत माना जाता था। उसे भाषण-दोष की समस्या थी, फिर भी वह भारत का एक जाना-माना सर्जन और प्रेरक वक्ता बन गया। यह आत्मचरित्र है डॉ. विनायक नागेश श्रीखंडे का जो अपने छात्रों के चहेते और उन हजारों मरीजों की श्रद्धा के पात्र हैं, जिनका कष्ट वे उपचार के मानवीय तरीके से हर लिया करते हैं। इंग्लैंड में उनका अकादमिक प्रदर्शन इतना उत्कृष्ट और शल्य कौशल इतना प्रभावशाली था कि 1960 में ही उन्हें विदेश में एक अच्छे कॅरियर का अवसर मिल गया था। हालाँकि, उनके पिता ने उनसे कहा कि वह भारत लौट आएँ और अपनी मातृभूमि के बीमार लोगों की सेवा करें। वे चाहते थे कि उनका पुत्र एक साधारण मनुष्य का असाधारण सर्जन बने। डॉ. श्रीखंडे को एक ऐसे युग में प्रशिक्षित किया गया, जब शल्य क्रिया एक सेवा थी, न कि एक उद्योग, जहाँ लाभ कमाने की मंशा होती है। उनका कॅरियर इस बात का एक उत्कृष्ट उदाहरण है कि कैसे व्यावसायिक उन्नति के साथ ही नैतिक मूल्यों, करुणा तथा जरूरतमंद और दबे-कुचले लोगों की देखभाल कर भी सफलता के शिखर तक पहुँचा जा सकता है। डॉ. श्रीखंडे द्वारा प्रशिक्षित अनेक छात्रों ने भारत तथा विदेश में नैतिक व्यावसायिक व्यक्तियों के रूप में अपनी पहचान बनाई, तथा उनसे जो कुछ भी सीखा, उसके लिए वे उनका आभार जताते हैं।.

About Author

जन्म: 8 मार्च 1931, कोल्हापुर, भारत। शिक्षा: एफ.आर.सी.एस. (इंग्लैंड) एफ.आर.सी.एस. (एडिन) 1959। कृतित्व: माननीय सर्जन, जी.टी. हॉस्पिटल तथा सर्जरी के प्रोफेसर (ग्रांट मेडिकल कॉलेज, मुंबई)। बॉम्बे हॉस्पिटल में सर्जन, प्रोफेसर और जनरल सर्जरी विभाग के प्रमुख रहे; अंतरराष्ट्रीय हेपाटो पैनक्रियाटो बिलियरी एसोसिएशन (जिगर, अग्न्याशय, पित्ताशय की थैली के रोग) के भारतीय अध्याय के प्रथम अध्यक्ष। 1960-70 में परिवार कल्याण विभाग, भारत सरकार के तकनीकी सलाहकार रहे। पुरुष नसबंदी को पलटने के अपने कार्य के लिए प्रसिद्ध। मराठी विज्ञान परिषद्, औरंगाबाद, 2000 के वार्षिक सम्मेलन के अध्यक्ष। सम्मान-पुरस्कार: बॉम्बे चिकित्सा सहायता फाउंडेशन द्वारा ‘कर्मयोगी पुरस्कार’, ‘लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड’, कोयंबटूर में ‘लिविंग लीजेंड’ अवार्ड से सम्मानित। किसी सर्जन के 78 वर्ष की आयु में लेखक बनने और 6 साहित्यिक पुरस्कारों को प्राप्त करने का एक असामान्य उदाहरण।.

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