Eent Ke Upar Eent (PB)

Publisher:
RADHA
| Author:
Mahashweta Devi, Tr. Pramod Kumar Sinha
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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RADHA
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Mahashweta Devi, Tr. Pramod Kumar Sinha
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कलकत्ता और उसके आसपास के इलाक़ों में ईंट के भट्ठों पर आदिवासी बँधुआ मज़दूरों के क्रूर शोषण को इस कहानी-संग्रह में महाश्वेता देवी ने अपनी तीक्ष्ण दृष्टि और बेबाक क़लम से नंगा किया है। आदिवासी क्षेत्रों में सक्रिय ठेकेदारों, सरकारी नौकरशाहों और पुलिस की संगीन-बूटों की मार से लाचार भूखे-नंगे आदिवासी स्त्री-पुरुष, लड़के-लड़कियाँ अपने मूल निवासों से खदेड़े जाकर कैसे भट्ठों की जलती आग का ईंधन बनते हैं; भट्ठों के मालिकों के गुंडे, दलाल, कुटनियाँ और रेल-स्टेशनों के पिट्ठू किस तरह मिलकर उन्हें ईंट-भट्ठों तक लाते हैं; जंगल में छिपी नंगी आदिवासी लड़कियों को अच्छे भोजन, वस्त्र और अच्छी मज़दूरी का लालच किन अमानवीय स्थितियों तक घसीट लाता है; वहाँ कैसे उनके शरीर और मन का शोषण किया जाता है—इन सबका इन कहानियों में बेबाक चित्रण है। प्रताड़ितों में भी प्रताड़ित आदिवासी नारी के तन और मन की व्यथा को इस संकलन में विशेष रूप से उकेरा गया है। साथ ही उन आदिवासी क्रान्तिकारियों का आह्वान और उनके आह्वान से उद्वेलित मन का चित्रण भी बख़ूबी हुआ है।
आदिवासियों के शोषण के प्रति महाश्वेता जी का गहरा सरोकार इन कहानियों में और तीखा होकर उभरा है। क्रान्तिकारी दिशा-संकेत इन कहानियों को विशिष्ट दस्तावेज़ बनाते हैं।

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Description

कलकत्ता और उसके आसपास के इलाक़ों में ईंट के भट्ठों पर आदिवासी बँधुआ मज़दूरों के क्रूर शोषण को इस कहानी-संग्रह में महाश्वेता देवी ने अपनी तीक्ष्ण दृष्टि और बेबाक क़लम से नंगा किया है। आदिवासी क्षेत्रों में सक्रिय ठेकेदारों, सरकारी नौकरशाहों और पुलिस की संगीन-बूटों की मार से लाचार भूखे-नंगे आदिवासी स्त्री-पुरुष, लड़के-लड़कियाँ अपने मूल निवासों से खदेड़े जाकर कैसे भट्ठों की जलती आग का ईंधन बनते हैं; भट्ठों के मालिकों के गुंडे, दलाल, कुटनियाँ और रेल-स्टेशनों के पिट्ठू किस तरह मिलकर उन्हें ईंट-भट्ठों तक लाते हैं; जंगल में छिपी नंगी आदिवासी लड़कियों को अच्छे भोजन, वस्त्र और अच्छी मज़दूरी का लालच किन अमानवीय स्थितियों तक घसीट लाता है; वहाँ कैसे उनके शरीर और मन का शोषण किया जाता है—इन सबका इन कहानियों में बेबाक चित्रण है। प्रताड़ितों में भी प्रताड़ित आदिवासी नारी के तन और मन की व्यथा को इस संकलन में विशेष रूप से उकेरा गया है। साथ ही उन आदिवासी क्रान्तिकारियों का आह्वान और उनके आह्वान से उद्वेलित मन का चित्रण भी बख़ूबी हुआ है।
आदिवासियों के शोषण के प्रति महाश्वेता जी का गहरा सरोकार इन कहानियों में और तीखा होकर उभरा है। क्रान्तिकारी दिशा-संकेत इन कहानियों को विशिष्ट दस्तावेज़ बनाते हैं।

About Author

महाश्वेता देवी

जन्म : 1926; ढाका।

पिता श्री मनीष घटक सुप्रसिद्ध लेखक थे।

शिक्षा : प्रारम्भिक पढ़ाई शान्तिनिकेतन में, फिर कलकत्ता विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए.।

अर्से तक अंग्रेज़ी का अध्यापन।

कृतियाँ अनेक भाषाओं में अनूदित।

हिन्दी में अनूदित कृतियाँ : ‘चोट्टि मुण्डा और उसका तीर’, ‘जंगल के दावेदार’, ‘अग्निगर्भ’, ‘अक्लांत कौरव’, ‘1084वें की माँ’, ‘श्री श्रीगणेश महिमा’, ‘टेरोडैक्टिल’, ‘दौलति’, ‘ग्राम बांग्ला’, ‘शाल-गिरह की पुकार पर’, ‘भूख’, ‘झाँसी की रानी’, ‘आंधारमानिक’, ‘उन्तीसवीं धारा का आरोपी’, ‘मातृछवि’, ‘सच-झूठ’, ‘अमृत संचय’, ‘जली थी अग्निशिखा’, ‘भटकाव’, ‘नीलछवि’, ‘कवि वन्द्यघटी गाईं का जीवन और मृत्यु’, ‘बनिया-बहू’, ‘नटी’ (उपन्यास); ‘पचास कहानियाँ’, ‘कृष्ण द्वादशी’, ‘घहराती घटाएँ’, ‘ईंट के ऊपर ईंट’, ‘मूर्ति’ (कहानी-संग्रह); ‘भारत में बँधुआ मज़दूर’ (विमर्श)।

सम्मान : ‘जंगल के दावेदार’ पुस्तक पर ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’। ‘मैगसेसे अवार्ड’ तथा ‘ज्ञानपीठ  पुरस्कार’ से सम्मानित।

निधन : 28 जुलाई, 2016 (कोलकाता)।

 

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