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साहित्य कला परिषद् द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार—1993 से सम्मानित नाटक। स्त्री-पुरुष सम्बन्धों पर आधारित इस नाटक में नाटकीय द्रशत्व की अपेक्षा कथात्मकता अधिक है। पात्र भी दो ही हैं, और इसका पूरा ताना-बाना यथार्थ, स्मृति और कल्पना और अति कल्पना के झिलमिल रंगों से बना है। इस रचना का वास्तविक आकर्षण चरित्रों की जटिलता, स्थिति की विडम्बना और सहज किन्तु जीवन्त भाषा संवाद में है। आधुनिक खोखले जीवन का साक्षात् दर्शन है—यह नाटक। प्रत्यक्ष कथानक के आगे जाकर यह नाटक अनेक प्रश्नों को खड़ा करता है कि हमारे स्थापित मूल्यों का आधार क्या है।
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Description
साहित्य कला परिषद् द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार—1993 से सम्मानित नाटक। स्त्री-पुरुष सम्बन्धों पर आधारित इस नाटक में नाटकीय द्रशत्व की अपेक्षा कथात्मकता अधिक है। पात्र भी दो ही हैं, और इसका पूरा ताना-बाना यथार्थ, स्मृति और कल्पना और अति कल्पना के झिलमिल रंगों से बना है। इस रचना का वास्तविक आकर्षण चरित्रों की जटिलता, स्थिति की विडम्बना और सहज किन्तु जीवन्त भाषा संवाद में है। आधुनिक खोखले जीवन का साक्षात् दर्शन है—यह नाटक। प्रत्यक्ष कथानक के आगे जाकर यह नाटक अनेक प्रश्नों को खड़ा करता है कि हमारे स्थापित मूल्यों का आधार क्या है।
About Author
अजय शुक्ला
जन्म : 7 जुलाई, 1955
आपने लखनऊ विश्वविद्यालय से एम.ए. किया तथा 1980 में आप भारतीय रेल यातायात सेवा में अधिकारी हुए। वर्ष 2015 में सदस्य यातायात के पद से आप सेवानिवृत्त हुए तथा अब लखनऊ में रह रहे हैं।
आपकी कृतियाँ हैं : हिन्दी में—‘दूसरा अध्याय’, ‘ताजमहल का टेंडर', ‘ताजमहल का उद्घाटन’ (नाटक); ‘प्रश्नचिह्न’, ‘प्रतिबोध’ (कविता-संग्रह)।
अंग्रेज़ी में : ‘Silent Raindrops’, ‘Philosophy of Bhagavada Gita’, ‘4 Lane Expressway to Stress Management and Happiness’, ‘E books—Yoga : Karma to Nirvana’, ‘Awakening’, ‘Muddle Management’, ‘‘My Life’ as a Ghost’, ‘Smile.’
आकाशवाणी के लिए लिखे एकमात्र नाटक ‘हम होंगे कामयाब’ के लिए आप राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किए गए।
ई-मेल : ajayshukla1955@gmail.com
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