SaleHardback
Door Ke Pahad
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
पारमिता शतपथी अनुवाद राजेन्द्र प्रसाद मिश्र
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
पारमिता शतपथी अनुवाद राजेन्द्र प्रसाद मिश्र
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹250 ₹175
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10-12 Days
In stock
ISBN:
SKU
9788126315802
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
136
दूर के पहाड़ –
समकालीन ओड़िया कथा-साहित्य में जिन रचनाकारों ने अपने सृजन के ज़रिये नये क्षितिजों का निर्माण कर ओड़िया साहित्य की समृद्ध परम्परा को उल्लेखनीय विस्तार दिया है, उनमें पारमिता शतपथी का नाम प्रमुख है। पारमिता की कहानियाँ दूर से आती भीनी-भीनी महक-सी सुधी पाठकों के मन-मस्तिष्क में छा जाती हैं और उनकी चेतना में एक नया विश्वास जगाती हैं। इन कहानियों में अनुभूतियों की गहराई और चिन्तन के असाधारण दिगन्त की सहज अभिव्यक्ति देखी जा सकती है।
पारमिता ने इन कहानियों में अपने पात्रों के जीवन में उपस्थित सुख-दुख, राग-विराग, धूप-छाँव जैसी जीवन की तमाम स्थितियों-परिस्थितियों को स्वर दिया है, जिससे कहानियों में विशिष्ट क़िस्म की इन्द्रधनुषी आभा आ गयी है।
इन कहानियों में पारमिता का प्रगतिशील दृष्टिकोण जीवन के यथातथ्य वर्णन के साथ-साथ प्राय: हर जगह विद्यमान है, जो पाठकों को नये-नये विकल्पों की तलाश के प्रति संवेदनशील बनाता है। इनकी कथाशैली में छिपी है कहानी की गूढ़ता और ऊँचाई को अक्षुण्ण रखनेवाली काव्य-संवेदना।
आशा है, पारमिता शतपथी के हिन्दी में प्रकाशित इस प्रथम कहानी-संग्रह का प्रबुद्ध पाठकों द्वारा स्वागत होगा।
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Description
दूर के पहाड़ –
समकालीन ओड़िया कथा-साहित्य में जिन रचनाकारों ने अपने सृजन के ज़रिये नये क्षितिजों का निर्माण कर ओड़िया साहित्य की समृद्ध परम्परा को उल्लेखनीय विस्तार दिया है, उनमें पारमिता शतपथी का नाम प्रमुख है। पारमिता की कहानियाँ दूर से आती भीनी-भीनी महक-सी सुधी पाठकों के मन-मस्तिष्क में छा जाती हैं और उनकी चेतना में एक नया विश्वास जगाती हैं। इन कहानियों में अनुभूतियों की गहराई और चिन्तन के असाधारण दिगन्त की सहज अभिव्यक्ति देखी जा सकती है।
पारमिता ने इन कहानियों में अपने पात्रों के जीवन में उपस्थित सुख-दुख, राग-विराग, धूप-छाँव जैसी जीवन की तमाम स्थितियों-परिस्थितियों को स्वर दिया है, जिससे कहानियों में विशिष्ट क़िस्म की इन्द्रधनुषी आभा आ गयी है।
इन कहानियों में पारमिता का प्रगतिशील दृष्टिकोण जीवन के यथातथ्य वर्णन के साथ-साथ प्राय: हर जगह विद्यमान है, जो पाठकों को नये-नये विकल्पों की तलाश के प्रति संवेदनशील बनाता है। इनकी कथाशैली में छिपी है कहानी की गूढ़ता और ऊँचाई को अक्षुण्ण रखनेवाली काव्य-संवेदना।
आशा है, पारमिता शतपथी के हिन्दी में प्रकाशित इस प्रथम कहानी-संग्रह का प्रबुद्ध पाठकों द्वारा स्वागत होगा।
About Author
पारमिता शतपथी -
जन्म: 30 अगस्त, 1965, कटक (उड़ीसा) में।
शिक्षा: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली से अर्थशास्त्र में एम.ए.।
1989 से भारतीय राजस्व सेवा से सम्बद्ध।
रचनाएँ: 'विविध अस्वप्न', 'भाषाक्षरा', 'विरल रूपक' (कहानी संग्रह) एवं 'अपथचारिणी' (उपन्यास)।
अनेक चर्चित कहानियाँ हिन्दी, अंग्रेज़ी, तेलुगु, गुजराती आदि भाषाओं में अनूदित प्रकाशित।
पुरस्कार समान: कहानी-संग्रह 'भाषाक्षरा' पर भुवनेश्वर पुस्तक मेला पुरस्कार; भारतीय भाषा परिषद्, कोलकाता का युवा लेखन पुरस्कार (2003) I
अनुवादक - राजेन्द्र प्रसाद मिश्र
ओड़िया से हिन्दी के जाने-माने अनुवादक। अब तक 60 से अधिक पुस्तकों का अनुवाद। हिन्दी अनुवाद के लिए वर्ष 1998 के साहित्य अकादेमी पुरस्कार सहित अनेक पुरस्कार-सम्मान।
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