Do Naina Mat Khaeyo Kaga

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Rashmi Kumar
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Prabhat Prakashan
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Rashmi Kumar
Language:
Hindi
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Hardback

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दो नैना मत खाइयो कागा “मतलब यह कि यह त्रेता युग नहीं है, कलयुग है। ऊपर से घोर कलयुग यह कि मैं पुत्री की माँ हूँ। सीता की तरह सिर्फ पुत्रों को जन्म नहीं दिया। सो अगर मेरे कहने से धरती फट भी जाए तो आज की स्‍‍त्री धरती में कैसे समा सकती है, वह भी तब, जब पुत्री को जन्म दिया हो और रावण घर और बाहर दोनों जगह अपने दस शीश नहीं तो दस रूप में मौजूद हो?” “हाँ, एक जरूरी काम, ऊपर जाकर अपने बेटे को आप मेरी तरफ से दो थप्पड़ मारिएगा और कहिएगा, उसने ऐसा क्यों किया? मेरे तीन महीने के विवाह का नहीं तो आपके तीस साल के संबंध का तो मान रखा होता। जो अच्छा बेटा नहीं बन सका, वह अच्छा पति क्या खाकर बनता।” “हाँ, दीदी, गरज संबंध की गरिमा समाप्‍त कर देता है। फिर चाहे वह पिता से हो या अपनी संतान से।” “दान दीजिए न, पर इन भिखमंगों को कभी नहीं, उन्हें दे दीजिए।” खिड़की से बाहर हाथ से इशारा करते हुए वह बोल उठा। कलावती ने खिड़की से बाहर नजर दौड़ाई, दो-चार कुत्ते लावारिस से घूम रहे थे। “कम-से-कम आपका अन्न खाएँगे तो आप पर भौकेंगे तो नहीं।” —इसी संग्रह से मानवीय संवेदना, मर्म और भावनाओं को छूनेवाली रचनाओं के सृजन के लिए विख्यात रश्मि कुमार का नया कथा-संकलन। नारी की अस्मिता और उसके सम्मान को बढ़ानेवाली कहानियाँ, जो आज के समाज की विद्रूपताओं को आईना दिखाती हैं।

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Description

दो नैना मत खाइयो कागा “मतलब यह कि यह त्रेता युग नहीं है, कलयुग है। ऊपर से घोर कलयुग यह कि मैं पुत्री की माँ हूँ। सीता की तरह सिर्फ पुत्रों को जन्म नहीं दिया। सो अगर मेरे कहने से धरती फट भी जाए तो आज की स्‍‍त्री धरती में कैसे समा सकती है, वह भी तब, जब पुत्री को जन्म दिया हो और रावण घर और बाहर दोनों जगह अपने दस शीश नहीं तो दस रूप में मौजूद हो?” “हाँ, एक जरूरी काम, ऊपर जाकर अपने बेटे को आप मेरी तरफ से दो थप्पड़ मारिएगा और कहिएगा, उसने ऐसा क्यों किया? मेरे तीन महीने के विवाह का नहीं तो आपके तीस साल के संबंध का तो मान रखा होता। जो अच्छा बेटा नहीं बन सका, वह अच्छा पति क्या खाकर बनता।” “हाँ, दीदी, गरज संबंध की गरिमा समाप्‍त कर देता है। फिर चाहे वह पिता से हो या अपनी संतान से।” “दान दीजिए न, पर इन भिखमंगों को कभी नहीं, उन्हें दे दीजिए।” खिड़की से बाहर हाथ से इशारा करते हुए वह बोल उठा। कलावती ने खिड़की से बाहर नजर दौड़ाई, दो-चार कुत्ते लावारिस से घूम रहे थे। “कम-से-कम आपका अन्न खाएँगे तो आप पर भौकेंगे तो नहीं।” —इसी संग्रह से मानवीय संवेदना, मर्म और भावनाओं को छूनेवाली रचनाओं के सृजन के लिए विख्यात रश्मि कुमार का नया कथा-संकलन। नारी की अस्मिता और उसके सम्मान को बढ़ानेवाली कहानियाँ, जो आज के समाज की विद्रूपताओं को आईना दिखाती हैं।

About Author

जन्म : 1 अगस्त, 1964। शिक्षा : एम.ए. (हिंदी),पी-एच.डी.। प्रकाशन : ‘नेपथ्य की जिंदगी’, ‘दहलीज के उस पार’, ‘कुछ पल अपने’, ‘मन न भए दस-बीस’ (कहानी संग्रह); ‘मैं बोन्साई नहीं’, ‘लहर लौट आई’ (उपन्यास); ‘नई कविता के मिथक काव्य’ (आलोचना); ‘प्रसाद स्मृति वातायन’ (संपादन)। विभिन्न प्रतिष्‍ठित पत्र-पत्रिकाओं में कहानियाँ एवं आलेख प्रकाशित; रेडियो एवं दूरदर्शन से कहानी, वार्त्ता एवं नाटकों का प्रसारण। पुरस्कार-सम्मान : ‘सर्जना पुरस्कार’, ‘शिंगलू स्मृति पुरस्कार’ (उ.प्र. हिंदी संस्थान), ‘हिंदी प्रभा सम्मान’ (उ.प्र. महिला मंच), ‘पहरुआ सम्मान’ (डॉ. शंभूनाथ फाउंडेशन), भाऊराव देवरस सेवा-न्यास का ‘युवा साहित्यकार सम्मान’।

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