Dhyan : Kaise Aur Kyon Karen?

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Sirshree Tejparkhi
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Prabhat Prakashan
Author:
Sirshree Tejparkhi
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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192

हर सुबह ईश्वर से प्रार्थना करो, ताकि आपका पूरा दिन आराम से कटे तथा हर दिन ध्यान करो, ताकि आपके साथ रहनेवाले लोगों का दिन आराम से बीते। सच्ची शांति में ही पूर्ण आराम है। कुंभकरण का आराम आलस है, रावण का आराम युद्ध की तैयारी है, लेकिन राम का आराम समाधि है। सच्चा आराम भीतर का राम है, आपके अंदर प्रकट होनेवाला स्व-अनुभव है। जब हम खुली आँखों से आराम करना सीखकर स्व-अनुभव में स्थापित होते हैं, तब उसे आरामा अवतार-मौन की मंजिल कहते हैं। अपनी आँखें सदा खुली रखने के लिए कुछ देर आँखें बंद रखने की कला सीखें। हर रात लोग अपनी आँखें बंद करते हैं, लेकिन यह कला नहीं है। आँखें बंद करने की कला को ध्यान-सच्चा आराम कहते हैं। दूसरों की आँखें खोलने के चक्कर में लोग अंधे बन जाते हैं। अंदर की आँखें खुलने यानी ज्ञान के अंधे की दृष्टि लौटाने के लिए ध्यान की दीक्षा-स्वदर्शन जरूरी है। स्व का दर्शन करने, ध्यान में दीक्षित होने की इच्छा जगाने और ध्यान को अपने जीवन का हिस्सा बनाने के लिए अपनी बाहरी आँखें कुछ समय बंद रखने की तैयारी रखें, ताकि पढ़ते-पढ़ते ध्यान लग जाए, कम-से-कम आपका।.

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Description

हर सुबह ईश्वर से प्रार्थना करो, ताकि आपका पूरा दिन आराम से कटे तथा हर दिन ध्यान करो, ताकि आपके साथ रहनेवाले लोगों का दिन आराम से बीते। सच्ची शांति में ही पूर्ण आराम है। कुंभकरण का आराम आलस है, रावण का आराम युद्ध की तैयारी है, लेकिन राम का आराम समाधि है। सच्चा आराम भीतर का राम है, आपके अंदर प्रकट होनेवाला स्व-अनुभव है। जब हम खुली आँखों से आराम करना सीखकर स्व-अनुभव में स्थापित होते हैं, तब उसे आरामा अवतार-मौन की मंजिल कहते हैं। अपनी आँखें सदा खुली रखने के लिए कुछ देर आँखें बंद रखने की कला सीखें। हर रात लोग अपनी आँखें बंद करते हैं, लेकिन यह कला नहीं है। आँखें बंद करने की कला को ध्यान-सच्चा आराम कहते हैं। दूसरों की आँखें खोलने के चक्कर में लोग अंधे बन जाते हैं। अंदर की आँखें खुलने यानी ज्ञान के अंधे की दृष्टि लौटाने के लिए ध्यान की दीक्षा-स्वदर्शन जरूरी है। स्व का दर्शन करने, ध्यान में दीक्षित होने की इच्छा जगाने और ध्यान को अपने जीवन का हिस्सा बनाने के लिए अपनी बाहरी आँखें कुछ समय बंद रखने की तैयारी रखें, ताकि पढ़ते-पढ़ते ध्यान लग जाए, कम-से-कम आपका।.

About Author

तेजगुरु सरश्री की आध्यात्मिक खोज उनके बचपन से प्रारंभ हो गई थी। अपने आध्यात्मिक अनुसंधान में लीन होकर उन्होंने अनेक ध्यान-पद्धतियों का अभ्यास किया। उनकी इसी खोज ने उन्हें विविध वैचारिक और शैक्षणिक संस्थानों की ओर अग्रसर किया। सत्य की खोज में अधिक-से-अधिक समय व्यतीत करने की प्यास ने उन्हें अपना तत्कालीन अध्यापन कार्य त्याग देने के लिए प्रेरित किया। जीवन का रहस्य समझने के लिए उन्होंने एक लंबी अवधि तक मनन करते हुए अपना अन्वेषण जारी रखा, जिसके अंत में उन्हें आत्मबोध प्राप्‍त हुआ। आत्म-साक्षात्कार के बाद उन्हें यह अनुभव हुआ कि सत्य के अनेक मार्गों की लुप्‍त कड़ी है—समझ (Understanding)। सरश्री कहते हैं कि सत्य के सभी मार्गों का प्रारंभ अलग-अलग प्रकार से होता है, किंतु सबका अंत इसी ‘समझ’ से होता है। ‘समझ’ ही सबकुछ है और यह ‘समझ’ अपने आप में संपूर्ण है। अध्यात्म के लिए इस ‘समझ’ का श्रवण ही पर्याप्‍त है। सरश्री ने दो हजार से अधिक प्रवचन दिए हैं और सत्तर से अधिक पुस्तकों की रचना की है। ये पुस्तकें दस से अधिक भाषाओं में अनूदित हैं और प्रमुख प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित की गई हैं।

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