Dhuppal (PB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Bhagwaticharan Verma
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Rajkamal
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Bhagwaticharan Verma
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यह एक निर्विवाद तथ्य है कि अपने कथा-कृतित्व में अनेकानेक व्यक्ति-चरित्रों को उकेरनेवाले साधनाशील रचनाकारों का अपना जीवन भी किसी महान कृति से कम महत्त्व नहीं रखता, इसलिए उन विविध जीवनानुभवों को यथार्थतः काग़ज़ पर उतार लाना एक महत्त्वपूर्ण सृजनात्मक उपलब्धि ही माना जाएगा। इस नाते सुविख्यात कृती-व्यक्तित्व भगवतीचरण वर्मा की यह कथाकृति आत्मकथात्मक उपन्यासों में एक उल्लेखनीय स्थान की हक़दार है।
क़स्बे का एक बालक कैसे भगवतीचरण वर्मा के रूप में स्वनामधन्य हुआ, इसे वह स्वयं भी नहीं जानता। जानता है तो सिर्फ़ उस जीवन-संघर्ष को जिसे वह ‘धुप्पल’ करार देता है।
आत्मकथा न लिखकर भगवती बाबू ने यह उपन्यास लिखा, यह बात उनके रचनाशील मन की अनवरत सृजनात्मक सक्रियता की ही सूचक है। ‘धुप्पल’ में जो गम्भीरता है, वह भगवती बाबू के चुटीले भाषा-शिल्प के बावजूद, अपनी तथ्यात्मकता का स्वाभाविक परिणाम है। लेखक के साथ-साथ इसमें एक युग मुखर हुआ है, जिसके अपने अन्तर्विरोध अगर लेखकीय अन्तर्विरोध भी रहे तो उन्होंने उसके सृजन को ही धारदार बनाया। इसलिए ‘धुप्पल’ सिर्फ़ ‘धुप्पल’ ही नहीं, लेखकीय संघर्ष का सार्थक दस्तावेज़ भी है।

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Description

यह एक निर्विवाद तथ्य है कि अपने कथा-कृतित्व में अनेकानेक व्यक्ति-चरित्रों को उकेरनेवाले साधनाशील रचनाकारों का अपना जीवन भी किसी महान कृति से कम महत्त्व नहीं रखता, इसलिए उन विविध जीवनानुभवों को यथार्थतः काग़ज़ पर उतार लाना एक महत्त्वपूर्ण सृजनात्मक उपलब्धि ही माना जाएगा। इस नाते सुविख्यात कृती-व्यक्तित्व भगवतीचरण वर्मा की यह कथाकृति आत्मकथात्मक उपन्यासों में एक उल्लेखनीय स्थान की हक़दार है।
क़स्बे का एक बालक कैसे भगवतीचरण वर्मा के रूप में स्वनामधन्य हुआ, इसे वह स्वयं भी नहीं जानता। जानता है तो सिर्फ़ उस जीवन-संघर्ष को जिसे वह ‘धुप्पल’ करार देता है।
आत्मकथा न लिखकर भगवती बाबू ने यह उपन्यास लिखा, यह बात उनके रचनाशील मन की अनवरत सृजनात्मक सक्रियता की ही सूचक है। ‘धुप्पल’ में जो गम्भीरता है, वह भगवती बाबू के चुटीले भाषा-शिल्प के बावजूद, अपनी तथ्यात्मकता का स्वाभाविक परिणाम है। लेखक के साथ-साथ इसमें एक युग मुखर हुआ है, जिसके अपने अन्तर्विरोध अगर लेखकीय अन्तर्विरोध भी रहे तो उन्होंने उसके सृजन को ही धारदार बनाया। इसलिए ‘धुप्पल’ सिर्फ़ ‘धुप्पल’ ही नहीं, लेखकीय संघर्ष का सार्थक दस्तावेज़ भी है।

About Author

भगवतीचरण वर्मा

जन्म : 30 अगस्त, 1903; उन्नाव ज़‍िले (उ.प्र.) का शफीपुर गाँव।

शिक्षा : इलाहाबाद से बी.ए., एल.एल.बी.।

प्रारम्भ में कविता-लेखन। फिर उपन्यासकार के नाते विख्यात। 1933 के क़रीब प्रतापगढ़ के राजा साहब भदरी के साथ रहे। 1936 के लगभग फ़‍िल्म कार्पोरेशन, कलकत्ता में कार्य। कुछ दिनों ‘विचार’ नामक साप्ताहिक का प्रकाशन-सम्पादन। इसके बाद बम्बई में फ़‍िल्म-कथालेखन तथा दैनिक ‘नवजीवन’ का सम्पादन। फिर आकाशवाणी के कई केन्द्रों में कार्य। बाद में, 1957 से मृत्यु-पर्यन्त स्वतंत्र साहित्यकार के रूप में लेखन। ‘चित्रलेखा’ उपन्यास पर दो बार फ़‍िल्म-निर्माण और ‘भूले-बिसरे चित्र’ ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ से सम्मानित। ‘पद्मभूषण’ तथा राज्यसभा की मानद सदस्यता प्राप्त।

 

प्रकाशित पुस्तकें : ‘अपने खिलौने’, ‘पतन’, ‘तीन वर्ष’, ‘चित्रलेखा’, ‘भूले-बिसरे चित्र’, ‘टेढ़े-मेढ़े रास्ते’, ‘सीधी सच्ची बातें’, ‘सामर्थ्य और सीमा’, ‘रेखा’, ‘वह फिर नहीं आई’, ‘सबहिं नचावत राम गोसाईं’, ‘प्रश्न और मरीचिका’, ‘चाणक्य’, ‘थके पाँव’, ‘युवराज चूण्डा’, ‘धुप्पल’ (उपन्यास); ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’, ‘मेरी कहानियाँ’, ‘मोर्चाबन्दी’ तथा ‘सम्पूर्ण कहानियाँ’ (कहानी-संग्रह); ‘मेरी कविताएँ’, ‘सविनय और एक नाराज कविता’ (कविता-संग्रह); ‘मेरे नाटक’, ‘वसीयत’, ‘सम्‍पूर्ण नाटक’ (नाटक); ‘अतीत के गर्त में’, ‘कहि न जाय का कहिए’ (संस्मरण); ‘साहित्य के सिद्धान्त तथा रूप’ (साहित्यालोचन); ‘भगवतीचरण वर्मा रचनावली’—14 खंड (सम्पूर्ण रचनाएँ)।

निधन : 5 अक्टूबर, 1981

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