Dear Zindagi

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Rajesh Gupta
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Prabhat Prakashan
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Rajesh Gupta
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Hindi
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Hardback

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176

Dear ज़िंदगी—ज़िंदगी का ऐहतराम करती मेरी पहली किताब पेश है आप सबके सामने। इसमें ज़िंदगी की दी हुई खुशियों का जश्न भी शामिल है और इसके दिए गमों की शि़कायत भी। अगर इस किताब को चंद अल़्फाज़ों में निचोड़ना हो तो शायद कुछ यों होगा— यह चंद स़फहों की किताब है मेरे कुछ महीनों का हिसाब है फलस़फे ज़िंदगी के हैं इसमें ये मेरे ख़्वाहिशों के ख़्वाब हैं गमे तनहाई मिला है इश़्क से पर यादों का स़फर लाजवाब है जुदाई लाज़मी है इस स़फर में वक़्त को रिश्तों का जवाब है मैं नहीं जानता कि मैं कोई शायर हूँ, कवि हूँ या नहीं और इस बात का दावा भी नहीं करना चाहूँगा। मैं तो बस एक आम सोच रखने वाला मामूली इंसान हूँ, जिसे न तो लिखने की सोहबत मिली है, न ही विरासत। इस किताब की रचनाएँ बस मेरी सँ हैं, जो खुद-ब-खुद लफ्ज़ों में तब्दील हो गई हैं। ज़िंदगी के अलग-अलग पहलुओं को मेरी नज़र से देखने की कोशिश मात्र है। ज़िंदगी को जो भी थोड़ा- बहुत देखा, परखा या समझा है, वही लिखकर आपके समक्ष प्रस्तुत किया है।संभवतः वही सँ आपको भी छू जाएँ और आप स्वयं से इसको जोड़ पाएँ। इस किताब के प्रकाशन से बेहद खुशी है, आ़िखरकार ये मेरी पहली किताब है, पर साथ-ही-साथ एक डर भी सताता है कि क्या यह आपकी उम्मीदों की कसौटी पर खरी उतरेगी, पर इस डर से लड़ने के सिवा और कोई उपाय भी नहीं है। उम्मीद है, आपको मेरी ये किताब और इसकी रचनाएँ पसंद आएँ।.

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Description

Dear ज़िंदगी—ज़िंदगी का ऐहतराम करती मेरी पहली किताब पेश है आप सबके सामने। इसमें ज़िंदगी की दी हुई खुशियों का जश्न भी शामिल है और इसके दिए गमों की शि़कायत भी। अगर इस किताब को चंद अल़्फाज़ों में निचोड़ना हो तो शायद कुछ यों होगा— यह चंद स़फहों की किताब है मेरे कुछ महीनों का हिसाब है फलस़फे ज़िंदगी के हैं इसमें ये मेरे ख़्वाहिशों के ख़्वाब हैं गमे तनहाई मिला है इश़्क से पर यादों का स़फर लाजवाब है जुदाई लाज़मी है इस स़फर में वक़्त को रिश्तों का जवाब है मैं नहीं जानता कि मैं कोई शायर हूँ, कवि हूँ या नहीं और इस बात का दावा भी नहीं करना चाहूँगा। मैं तो बस एक आम सोच रखने वाला मामूली इंसान हूँ, जिसे न तो लिखने की सोहबत मिली है, न ही विरासत। इस किताब की रचनाएँ बस मेरी सँ हैं, जो खुद-ब-खुद लफ्ज़ों में तब्दील हो गई हैं। ज़िंदगी के अलग-अलग पहलुओं को मेरी नज़र से देखने की कोशिश मात्र है। ज़िंदगी को जो भी थोड़ा- बहुत देखा, परखा या समझा है, वही लिखकर आपके समक्ष प्रस्तुत किया है।संभवतः वही सँ आपको भी छू जाएँ और आप स्वयं से इसको जोड़ पाएँ। इस किताब के प्रकाशन से बेहद खुशी है, आ़िखरकार ये मेरी पहली किताब है, पर साथ-ही-साथ एक डर भी सताता है कि क्या यह आपकी उम्मीदों की कसौटी पर खरी उतरेगी, पर इस डर से लड़ने के सिवा और कोई उपाय भी नहीं है। उम्मीद है, आपको मेरी ये किताब और इसकी रचनाएँ पसंद आएँ।.

About Author

सर्वप्रथम, इन पंक्तियों से मैं डॉ. राजेश का अभिनंदन करना चाहूँगा: ज़िंदगी के लम्हों का चुन-चुन के हिसाब रखना। एहसानों को ल़फ्ज़ों में बुन के कताब लिखना। यह जानकर मन को बड़ा ही हर्ष होता है कि डॉ. राजेश, जो डॉक्टर हैं एवं प्रसिद्ध मेदांता अस्पताल के हेल्थ-केयर टेक्नोलॉजी विभाग में ऊँचे ओहदे पर कार्यरत हैं, का इस प्रकार कविताओं से घनिष्ठ संबंध है। इनकी शायरी में अपनेपन का एहसास होता है, जो कहीं-न-कहीं जीवन से प्रभावित या जुड़ी हुई लगती हैं। इनकी शायरी में सबसे अधिक आश्चर्यजनक बात इनकी गहराई और विविधताएँ है, जो इंसान की प्रकृति, सोच, भावनाओं, मंथन, उल्लास, प्रेम जैसी मानसिक अभिव्यक्तियों को बड़ी सरलता से उजागर करती हैं। शब्दों का ताना-बाना और उनको काव्यात्मक स्वरूप में सँजोना, उर्दू भाषा के लिबास से बेहतरीन कतरों को चुनना और फिर उनको एक जीवंत भाव में प्रकट करके डॉ. राजेश ने अपनी संगोष्ठी में अपने लेखन-कौशल का बखूबी उपयोग किया है। मंज़िल है दूर, राह आसान नहीं, नज़र भी है धुँधली पर जाना भी है वहीं। लेके सहारा तेरे ऐतबार का, जानता हूँ ऐ खुदा, मैं कहीं भटकूँगा नहीं। (डॉ. ललित कनोडिया).

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