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Chitti Zananiyan

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
राकेश तिवारी
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
राकेश तिवारी
Language:
Hindi
Format:
Hardback

315

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Book Type

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SKU 9789389563672 Category
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176

राकेश तिवारी की कहानियों में क़िस्सागोई बहुत रोचक है। उस क़िस्सागोई के साथ उनकी भाषा में खिलंदड़ापन भी है। उनकी कहानियों में स्त्रियों का जो चरित्र आया है उसमें स्त्रियों का आक्रोश सामने आया है। स्त्रियों का कड़ा संघर्ष है। उनकी तेजस्विता दिखाई देती है। इसके साथ हास्यास्पद स्थितियाँ काफ़ी हैं। सेंस ऑफ ह्यूमर बहुत है। गम्भीरता के बीच में वह ह्यूमर गम्भीरता को और भी तीव्र करता है। भाषा पर लेखक का अधिकार है। इतना गठा हुआ गद्य कम पढ़ने को मिलता है।- प्रो. नामवर सिंह (सबद निरन्तर, दूरदर्शन)/राकेश तिवारी समसामयिक दौर की सामाजिक-ऐतिहासिक उच्छृखलता के साक्षी रचनाकार हैं। नव उदारवादी आर्थिक दौर में सामन्तवादी क्रूरता की यातना उनकी कहानी में चित्रित की गयी है। इस दौर का मनमानापन ऊपर से देखने में ऊटपटाँग और हास्यास्पद लगता है। दारुणता यह है कि यह हास्यास्पदता तो सिर्फ़ रूप है, इसकी अन्तर्वस्तु अभूतपूर्व अमानवीयता है। पूँजीवाद की हास्यास्पदता ‘चटक-मटक’ प्रकाश-कोलाहल से भरा उसका मनोरंजक रूप कितना हिंसक और अपराधी है, इसे राकेश तिवारी की कहानियाँ प्रकट करती हैं।- डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी (कथादेश) /समकालीन हिन्दी कहानी के परिदृश्य में राकेश तिवारी की उपस्थिति एक ऐसे कहानीकार के रूप में है जिनकी कहानियाँ रूपकों और प्रतीकों के साथ फ़न्तासी के समन्वित प्रयोग से समकालीन जीवन की विडम्बनाओं को बेपर्दा करती हैं। यह कथा-संसार विरूपित समय की विभीषिकाओं और सम्बन्धों में आयी अर्थहीनता के साथ-साथ उपभोक्तावादी आपदाओं को भी दिखाता है। …उनकी कहानियों का सधा हुआ शिल्प और भाषा के लाघव में प्रतीकात्मक विन्यास का स्तर इतना अर्थगर्भित है कि सहसा विश्वास नहीं होता कि हम कहानी पढ़ रहे हैं या किसी भयानक स्वप्न से गुज़र रहे हैं।- ज्योतिष जोशी (नया ज्ञानोदय)/राकेश तिवारी कहानी विधा को समय के दस्तावेज़ीकरण का माध्यम भी मानते हैं और माध्यम की विशिष्टता/अनोखेपन के प्रति पूरी तरह सजग भी हैं। …उनकी कहानियाँ अपने कहानी होने की अनिवार्यता का बोध कराती हैं और पढ़ते हुए लगता है कि उनके कथ्य को उनके पूरे रचाव से छुड़ाकर कहना कितना मुश्किल होगा। विधा/माध्यम के अनोखेपन को इस तरह सुरक्षित रखते हुए ही ये कहानियाँ अपने समय के संकटों, रुझानों, अन्तर्विरोधों को पकड़ने का जतन करती हैं और इस मामले में भी कहानीकार की अचूक क्षमता का परिचय देती हैं।- संजीव कुमार (हंस)*यहाँ दी गयी आलोचकों की राय इस संग्रह के बारे में नहीं है।

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राकेश तिवारी की कहानियों में क़िस्सागोई बहुत रोचक है। उस क़िस्सागोई के साथ उनकी भाषा में खिलंदड़ापन भी है। उनकी कहानियों में स्त्रियों का जो चरित्र आया है उसमें स्त्रियों का आक्रोश सामने आया है। स्त्रियों का कड़ा संघर्ष है। उनकी तेजस्विता दिखाई देती है। इसके साथ हास्यास्पद स्थितियाँ काफ़ी हैं। सेंस ऑफ ह्यूमर बहुत है। गम्भीरता के बीच में वह ह्यूमर गम्भीरता को और भी तीव्र करता है। भाषा पर लेखक का अधिकार है। इतना गठा हुआ गद्य कम पढ़ने को मिलता है।- प्रो. नामवर सिंह (सबद निरन्तर, दूरदर्शन)/राकेश तिवारी समसामयिक दौर की सामाजिक-ऐतिहासिक उच्छृखलता के साक्षी रचनाकार हैं। नव उदारवादी आर्थिक दौर में सामन्तवादी क्रूरता की यातना उनकी कहानी में चित्रित की गयी है। इस दौर का मनमानापन ऊपर से देखने में ऊटपटाँग और हास्यास्पद लगता है। दारुणता यह है कि यह हास्यास्पदता तो सिर्फ़ रूप है, इसकी अन्तर्वस्तु अभूतपूर्व अमानवीयता है। पूँजीवाद की हास्यास्पदता ‘चटक-मटक’ प्रकाश-कोलाहल से भरा उसका मनोरंजक रूप कितना हिंसक और अपराधी है, इसे राकेश तिवारी की कहानियाँ प्रकट करती हैं।- डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी (कथादेश) /समकालीन हिन्दी कहानी के परिदृश्य में राकेश तिवारी की उपस्थिति एक ऐसे कहानीकार के रूप में है जिनकी कहानियाँ रूपकों और प्रतीकों के साथ फ़न्तासी के समन्वित प्रयोग से समकालीन जीवन की विडम्बनाओं को बेपर्दा करती हैं। यह कथा-संसार विरूपित समय की विभीषिकाओं और सम्बन्धों में आयी अर्थहीनता के साथ-साथ उपभोक्तावादी आपदाओं को भी दिखाता है। …उनकी कहानियों का सधा हुआ शिल्प और भाषा के लाघव में प्रतीकात्मक विन्यास का स्तर इतना अर्थगर्भित है कि सहसा विश्वास नहीं होता कि हम कहानी पढ़ रहे हैं या किसी भयानक स्वप्न से गुज़र रहे हैं।- ज्योतिष जोशी (नया ज्ञानोदय)/राकेश तिवारी कहानी विधा को समय के दस्तावेज़ीकरण का माध्यम भी मानते हैं और माध्यम की विशिष्टता/अनोखेपन के प्रति पूरी तरह सजग भी हैं। …उनकी कहानियाँ अपने कहानी होने की अनिवार्यता का बोध कराती हैं और पढ़ते हुए लगता है कि उनके कथ्य को उनके पूरे रचाव से छुड़ाकर कहना कितना मुश्किल होगा। विधा/माध्यम के अनोखेपन को इस तरह सुरक्षित रखते हुए ही ये कहानियाँ अपने समय के संकटों, रुझानों, अन्तर्विरोधों को पकड़ने का जतन करती हैं और इस मामले में भी कहानीकार की अचूक क्षमता का परिचय देती हैं।- संजीव कुमार (हंस)*यहाँ दी गयी आलोचकों की राय इस संग्रह के बारे में नहीं है।

About Author

राकेश तिवारी की कहानियाँ लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में छपती रही हैं। अब तक चालीस से अधिक कहानियाँ प्रकाशित। कुछ कहानियों का दूसरी भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ है, एक कहानी पर फिल्म बनी है और एक कहानी की कई नाट्य प्रस्तुतियाँ हुई हैं। बाल साहित्य के अलावा साहित्य की अन्य विधाओं में भी लिखते रहे हैं। पटकथा लेखन और पत्रकारिता के अध्यापन से भी थोड़ा बहुत नाता रहा है। इंडियन एक्सप्रेस समूह के राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक 'जनसत्ता' में तीस वर्ष तक पत्रकारिता के बाद फिलहाल स्वतन्त्र लेखन और पत्रकारिता । उत्तराखण्ड के गरमपानी (नैनीताल) में जन्म, कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल से शिक्षा और दिल्ली में स्थायी निवास। कृतियाँ : चिट्टी जनानियाँ के अलावा मुकुटधारी चूहा और उसने भी देखा (कहानी संग्रह), फसक (उपन्यास), पत्रकारिता की खुरदरी ज़मीन (पत्रकारिता) और एक बाल उपन्यास तोता उड़ प्रकाशित | एक बाल कथा संग्रह थोड़ा निकला भी करो शीघ्र प्रकाश्य । इसी संग्रह में शामिल कहानी मंगत की खोपड़ी में स्वप्न का विकास के लिए रमाकान्त स्मृति कहानी पुरस्कार । सम्पर्क : ए-9, इंडियन एक्सप्रेस अपार्टमेंट, मयूर कुंज, मयूर विहार-1, दिल्ली-110096 फोन : 9811807279, 011-22718406 ई-मेल : rtiwari.express@gmail.com

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