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Chhabbees Kahaniyan (Shivani)
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Chhabbees Kahaniyan (Vijaydan Detha)
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Chhabbees Kahaniyan (Vijaydan Detha)
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
विजयदान देथा
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
विजयदान देथा
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹695 ₹487
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In stock
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10-12 Days
In stock
ISBN:
SKU
9789350008133
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
388
विश्वविख्यात कथाकार चेखव की तरह विजयदान देथा ने भी शायद ही कोई उपन्यास लिखा हो। चेखव को यद्यपि आधनिक कहानी का जनक माना जाता है। एक-दो लघु उपन्यासों के अलावा कोई उपन्यास नहीं लिखा, हाँ तीन-चार नाटक जरूर लिखे थे और उनके नाटकों ने भी नाटकों के क्षेत्र में एक नयी प्रवृत्ति तथा प्रविधि का प्रारम्भ किया था।
विजयदान देथा के बारे में यह तथ्य भी जानना कम महत्त्वपूर्ण नहीं है कि अधिकांश कहानियाँ मूलतः राजस्थानी में लिखी गयी थीं, सबसे पहले-‘बातारी फलवारी’ नाम से उनका विशाल कथा ग्रंथ प्रकाशित हुआ था (तेरह खंडों में)। बाद में जब उनकी कहानियों के दो संग्रह हिन्दी में प्रकाशित हुए तो पूरा हिन्दी संसार चौंक पड़ा क्योंकि इस शैली और भाषा में कहानी लिखने की कोई परम्परा तथा पद्धति न केवल हिन्दी में नहीं थी बल्कि किसी भी भारतीय भाषा में नहीं थी। उनकी कहानियाँ पढ़कर विख्यात फ़िल्मकार मणिकौल इतने अभिभूत हुए कि उन्होंने तत्काल उन्हें लिखा–
“तुम तो छुपे हुए ही ठीक हो। …तुम्हारी कहानियाँ शहरी जानवरों तक पहुँच गयीं तो वे कुत्तों की तरह उन पर टूट पड़ेंगे। …गिद्ध हैं नोच खाएँगे। तुम्हारी नम्रता है कि तुमने अपने रत्नों को गाँव की झीनी धूल से ढंक रखा है।” हुआ भी यही, अपनी ही एक कहानी के दलित पात्र की तरह-जिसने जब देखा कि उसके द्वारा उपजाये खीरे में बीज की जगह ‘कंकड़-पत्थर’ भरे हैं तो उसने उन्हें घर के एक कोने में फेंक दिया, किन्तु बाद में एक व्यापारी की निगाह उन पर पड़ी तो उसकी आँखें चौंधियाँ गयीं, क्योंकि वे कंकड़-पत्थर नहीं हीरे थे। विजयदान देथा के साथ भी यही हुआ। उनकी कहानियाँ अनूदित होकर जब हिन्दी में आयीं तो हिन्दी संसार की आँखें चौंधियाँ गयीं। स्वयं मणिकौल ने उनकी एक कहानी ‘दुविधा’ पर फ़िल्म बनाई।
– विजयमोहन सिंह
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Description
विश्वविख्यात कथाकार चेखव की तरह विजयदान देथा ने भी शायद ही कोई उपन्यास लिखा हो। चेखव को यद्यपि आधनिक कहानी का जनक माना जाता है। एक-दो लघु उपन्यासों के अलावा कोई उपन्यास नहीं लिखा, हाँ तीन-चार नाटक जरूर लिखे थे और उनके नाटकों ने भी नाटकों के क्षेत्र में एक नयी प्रवृत्ति तथा प्रविधि का प्रारम्भ किया था।
विजयदान देथा के बारे में यह तथ्य भी जानना कम महत्त्वपूर्ण नहीं है कि अधिकांश कहानियाँ मूलतः राजस्थानी में लिखी गयी थीं, सबसे पहले-‘बातारी फलवारी’ नाम से उनका विशाल कथा ग्रंथ प्रकाशित हुआ था (तेरह खंडों में)। बाद में जब उनकी कहानियों के दो संग्रह हिन्दी में प्रकाशित हुए तो पूरा हिन्दी संसार चौंक पड़ा क्योंकि इस शैली और भाषा में कहानी लिखने की कोई परम्परा तथा पद्धति न केवल हिन्दी में नहीं थी बल्कि किसी भी भारतीय भाषा में नहीं थी। उनकी कहानियाँ पढ़कर विख्यात फ़िल्मकार मणिकौल इतने अभिभूत हुए कि उन्होंने तत्काल उन्हें लिखा–
“तुम तो छुपे हुए ही ठीक हो। …तुम्हारी कहानियाँ शहरी जानवरों तक पहुँच गयीं तो वे कुत्तों की तरह उन पर टूट पड़ेंगे। …गिद्ध हैं नोच खाएँगे। तुम्हारी नम्रता है कि तुमने अपने रत्नों को गाँव की झीनी धूल से ढंक रखा है।” हुआ भी यही, अपनी ही एक कहानी के दलित पात्र की तरह-जिसने जब देखा कि उसके द्वारा उपजाये खीरे में बीज की जगह ‘कंकड़-पत्थर’ भरे हैं तो उसने उन्हें घर के एक कोने में फेंक दिया, किन्तु बाद में एक व्यापारी की निगाह उन पर पड़ी तो उसकी आँखें चौंधियाँ गयीं, क्योंकि वे कंकड़-पत्थर नहीं हीरे थे। विजयदान देथा के साथ भी यही हुआ। उनकी कहानियाँ अनूदित होकर जब हिन्दी में आयीं तो हिन्दी संसार की आँखें चौंधियाँ गयीं। स्वयं मणिकौल ने उनकी एक कहानी ‘दुविधा’ पर फ़िल्म बनाई।
– विजयमोहन सिंह
About Author
विजयदान देथा, जिन्हें उनके मित्र प्यार से बिज्जी कहते हैं, राजस्थानी के प्रमुख लेखक हैं। वे हिन्दी में भी लिखते रहे हैं। देथा ने आठ सौ से अधिक कहानियाँ लिखी हैं, जिनमें से अनेक का अनुवाद हिन्दी, अंग्रेजी तथा अन्य भाषाओं में हो चुका है। राजस्थान की लोक कथाओं और कहावतों के संग्रह एवं पुनर्लेखन के क्षेत्रा में विजयदान देथा का योगदान विश्व स्तर पर समादृत है। उनकी कहानियों पर आधारित तीन हिन्दी फिल्में - दुविधा, पहेली और परिणीता - बन चुकी हैं और चरनदास चोर सहित अनेक नाटक लिखे और मंचित हो चुके हैं। साहित्य अकादेमी तथा अन्य अनेक पुरस्कारों से सम्मानित। कुछ प्रमुख कृतियाँ: बातारी फुलवारी (13 खण्ड), रूँख, दुविधा और अन्य कहानियाँ, उलझन, सपनप्रिया, अन्तराल तथा राजस्थानी-हिन्दी कहावत कोश। राजस्थानी लोक गीत (6 भाग) का संकलन-सम्पादन।
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