Cheeron Par Chandni

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
निर्मल वर्मा
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Vani Prakashan
Author:
निर्मल वर्मा
Language:
Hindi
Format:
Paperback

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निर्मल वर्मा के गद्य में कहानी, निबन्ध, यात्रा-वृत्त और डायरी की समस्त विधाएँ अपना अलगाव छोड़कर अपनी चिन्तन- क्षमता और सृजन-प्रक्रिया में समरस हो जाती हैं … आधुनिक समाज में गद्य से जो विविध अपेक्षाएँ की जाती हैं, वे यहाँ सब एकबारगी पूरी हो जाती हैं।

– डॉ. रामस्वरूप चतुर्वेदी

निर्मल वर्मा के यहाँ संसार का आशय सम्बन्धों की छाया या प्रकाश में ही खुलता है, अन्यथा नहीं । सम्बन्धों के प्रति यह उद्दीप्त संवेदनशीलता उन्हें अनेक अप्रत्याशित सूक्ष्मताओं में भले ले जाती हो, उनको ऐसा चिन्तक-कथाकार नहीं बनाती जिसका चिन्तन अलग से हस्तक्षेप करता चलता हो। वे अर्थों के बखान के नहीं, अर्थों की गूँजों और अनुगूँजों के कथाकार हैं।

– अशोक वाजपेयी

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Description

निर्मल वर्मा के गद्य में कहानी, निबन्ध, यात्रा-वृत्त और डायरी की समस्त विधाएँ अपना अलगाव छोड़कर अपनी चिन्तन- क्षमता और सृजन-प्रक्रिया में समरस हो जाती हैं … आधुनिक समाज में गद्य से जो विविध अपेक्षाएँ की जाती हैं, वे यहाँ सब एकबारगी पूरी हो जाती हैं।

– डॉ. रामस्वरूप चतुर्वेदी

निर्मल वर्मा के यहाँ संसार का आशय सम्बन्धों की छाया या प्रकाश में ही खुलता है, अन्यथा नहीं । सम्बन्धों के प्रति यह उद्दीप्त संवेदनशीलता उन्हें अनेक अप्रत्याशित सूक्ष्मताओं में भले ले जाती हो, उनको ऐसा चिन्तक-कथाकार नहीं बनाती जिसका चिन्तन अलग से हस्तक्षेप करता चलता हो। वे अर्थों के बखान के नहीं, अर्थों की गूँजों और अनुगूँजों के कथाकार हैं।

– अशोक वाजपेयी

About Author

जन्म : 3 अप्रैल, 1929। जन्म-स्थान : शिमला बचपन पहाड़ों पर बीता। शिक्षा : सेंट स्टीफेंस कॉलेज, दिल्ली से इतिहास में एम.ए.। कुछ वर्ष अध्यापन । 1959 में प्राग, चेकोस्लोवाकिया के प्राच्य विद्या संस्थान और चेकोस्लोवाक लेखक संघ द्वारा आमन्त्रित । सात वर्ष चेकोस्लोवाकिया में रहे और कई चेक कथाकृतियों के अनुवाद किये। कुछ वर्ष लन्दन में यूरोप-प्रवास के दौरान टाइम्स ऑफ़ इंडिया के लिए वहाँ की सांस्कृतिक-राजनीतिक समस्याओं पर लेख और रिपोर्ताज लिखे । 'माया दर्पण' कहानी पर फ़िल्म बनी, जिसे 1973 का सर्वश्रेष्ठ हिन्दी फ़िल्म पुरस्कार प्राप्त हुआ । निराला सृजनपीठ, भोपाल (1981-83) और यशपाल सृजनपीठ, शिमला (1989) के अध्यक्ष । 1988 में इंग्लैंड के प्रकाशक रीडर्स इंटरनेशनल द्वारा कहानियों का संग्रह द वर्ल्ड एल्सव्हेयर प्रकाशित । 'कव्वे और काली पानी' के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार (1985), सम्पूर्ण कृतित्व के लिए साधना सम्मान (1993), उ.प्र. हिन्दी संस्थान का सर्वोच्च राममनोहर लोहिया अतिविशिष्ट सम्मान (1995), ज्ञानपीठ का मूर्तिदेवी पुरस्कार (1995), ज्ञानपीठ पुरस्कार (1999) तथा मैथिलीशरण गुप्त सम्मान (2005)। सन् 1996 में यूनिवर्सिटी ऑफ़ ओकलाहोमा, अमेरिका की पत्रिका 'द वर्ल्ड लिटरेचर' के बहुसम्मानित पुरस्कार न्यूश्ताद् अवार्ड के लिए भारत से मनोनीत किये गये। साहित्य अकादेमी के महत्तर सदस्य ।

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