Chamatkari Ladki

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Aabid Surti
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Prabhat Prakashan
Author:
Aabid Surti
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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168

‘‘सलमा!’’ दूध पीकर अभी-अभी पालने में लेटे हुए बच्चे पर नजर बिछाते हुए रमजानी ने पत्नी से कहा, ‘‘अगर br>तेरे को बाप और बेटा, दोनों में से किसी एक को चुनना हो, तो किसे पसंद करेगी तू?’’ ‘‘सुहाग है तो संसार है,’’ तुरंत उत्तर देते हुए पत्नी सँभल गई, ‘‘मियाँ, यह खयाल br>तेरे को आया कैसे?’’ तुम्हारी मृत्यु का कारण तुम्हारी संतान होगी। रमजानी ने अपने दिल के तहखाने में छिपाकर रखी कनफटे कापालिक की भविष्यवाणी जाहिर की और बीवी भहराकर रो दी। बुझाने को उसके मरद ने एक ऐसी पहेली उसके आगे रख दी थी, जिसका कोई सुखकर हल नहीं था। वह जार-जार रोती रही। बार-बार बच्चे को उठाकर उसके चुम्मे लेती रही। रमजानी पत्नी को अपनी बाँहों में लेकर सांत्वना देता रहा। × × × कोई शख्स किराए पर अपना मन देता है तो कोई अपनी दुकान। बात साधारण सी है। पर अब कोई स्त्री अपनी कोख किराए पर देने लगे तो? एक साथ कई प्रश्न हमारे सामने खड़े हो जाते हैं—क्यों? तह-दर-तह एक स्त्री के मानस का विश्लेषण करता है उपन्यास ‘पेशा’|

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Description

‘‘सलमा!’’ दूध पीकर अभी-अभी पालने में लेटे हुए बच्चे पर नजर बिछाते हुए रमजानी ने पत्नी से कहा, ‘‘अगर br>तेरे को बाप और बेटा, दोनों में से किसी एक को चुनना हो, तो किसे पसंद करेगी तू?’’ ‘‘सुहाग है तो संसार है,’’ तुरंत उत्तर देते हुए पत्नी सँभल गई, ‘‘मियाँ, यह खयाल br>तेरे को आया कैसे?’’ तुम्हारी मृत्यु का कारण तुम्हारी संतान होगी। रमजानी ने अपने दिल के तहखाने में छिपाकर रखी कनफटे कापालिक की भविष्यवाणी जाहिर की और बीवी भहराकर रो दी। बुझाने को उसके मरद ने एक ऐसी पहेली उसके आगे रख दी थी, जिसका कोई सुखकर हल नहीं था। वह जार-जार रोती रही। बार-बार बच्चे को उठाकर उसके चुम्मे लेती रही। रमजानी पत्नी को अपनी बाँहों में लेकर सांत्वना देता रहा। × × × कोई शख्स किराए पर अपना मन देता है तो कोई अपनी दुकान। बात साधारण सी है। पर अब कोई स्त्री अपनी कोख किराए पर देने लगे तो? एक साथ कई प्रश्न हमारे सामने खड़े हो जाते हैं—क्यों? तह-दर-तह एक स्त्री के मानस का विश्लेषण करता है उपन्यास ‘पेशा’|

About Author

जन्म: 1935, राजुला (गुजरात)। शिक्षा: एस.एस.सी., जी.डी. आर्ट्स (ललित कला)। प्रकाशन: अब तक अस्सी पुस्तकें प्रकाशित, जिनमें पचास उपन्यास, दस कहानी-संकलन, सात नाटक, पच्चीस बच्चों की पुस्तकें, एक यात्रा-वृत्तांत, दो कविता-संकलन, एक संस्मरण और कॉमिक्स। पचास साल से गुजराती तथा हिंदी की विभिन्न पत्रिकाओं और अखबारों में लेखन। उपन्यासों का कन्नड़, मलयालम, मराठी, उर्दू, पंजाबी, बांग्ला और अंग्रेजी में अनुवाद। ‘ढब्बूजी’ व्यंग्य चित्रपट्टी निरंतर तीस साल तक साप्ताहिक ‘धर्मयुग’ में प्रकाशित। दूरदर्शन, जी तथा अन्य चैनलों के लिए कथा, पटकथा, संवाद-लेखन। अब तक देश-विदेशों में सोलह चित्र-प्रदर्शनियाँ आयोजित। फिल्म लेखक संघ, प्रेस क्लब (मुंबई) के सदस्य। जल संरक्षण को लेकर सामाजिक चेतना जाग्रत् कर रहे हैं। पुरस्कार: अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कारों से अलंकृत|

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