Chaitya

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
नरेश मेहता
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
नरेश मेहता
Language:
Hindi
Format:
Paperback

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SKU 9789326354448 Category Tag
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228

चैत्या –
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित हिन्दी के वरिष्ठ यशस्वी कवि श्री नरेश मेहता उन शीर्षस्थ लेखकों में हैं जो भारतीयता की अपनी गहरी दृष्टि और समझ के लिए जाने जाते हैं।
‘चैत्या’ उनकी सम्पूर्ण रचनाओं से चुनी हुई कविताओं का प्रतिनिधि संकलन है।
नरेश मेहता ने आधुनिक कविता को नयी व्यंजना के साथ नवीन आयाम दिया है। रागात्मकता, संवेदना और उदात्तता उनकी सर्जना के मूल और सत्य तत्त्व हैं जो उन्हें प्रकृति और समूची सृष्टि के प्रति दृष्टा और साक्षी बनाते हैं।
शिल्प और अभिव्यंजना के स्तर पर ‘चैत्या’ संग्रह की कविताओं में ताज़गी और नयापन है। उन्होंने सीधे, सरल बिम्बों का प्रयोग भी किया है। मेहता जी की भाषा विषयानुकूल, भावपूर्ण तथा प्रवाहमयी है।
प्रस्तुत संग्रह में नरेश मेहता की काव्य-शैली और औदात्य से सम्पृक्त ये रचनाएँ पाठकों को काव्य का नया और उदात्त आस्वाद प्रदान करेंगी।

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Description

चैत्या –
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित हिन्दी के वरिष्ठ यशस्वी कवि श्री नरेश मेहता उन शीर्षस्थ लेखकों में हैं जो भारतीयता की अपनी गहरी दृष्टि और समझ के लिए जाने जाते हैं।
‘चैत्या’ उनकी सम्पूर्ण रचनाओं से चुनी हुई कविताओं का प्रतिनिधि संकलन है।
नरेश मेहता ने आधुनिक कविता को नयी व्यंजना के साथ नवीन आयाम दिया है। रागात्मकता, संवेदना और उदात्तता उनकी सर्जना के मूल और सत्य तत्त्व हैं जो उन्हें प्रकृति और समूची सृष्टि के प्रति दृष्टा और साक्षी बनाते हैं।
शिल्प और अभिव्यंजना के स्तर पर ‘चैत्या’ संग्रह की कविताओं में ताज़गी और नयापन है। उन्होंने सीधे, सरल बिम्बों का प्रयोग भी किया है। मेहता जी की भाषा विषयानुकूल, भावपूर्ण तथा प्रवाहमयी है।
प्रस्तुत संग्रह में नरेश मेहता की काव्य-शैली और औदात्य से सम्पृक्त ये रचनाएँ पाठकों को काव्य का नया और उदात्त आस्वाद प्रदान करेंगी।

About Author

श्रीनरेश मेहता - 15 फ़रवरी, 1922 को शाजापुर, मालवा में जन्मे श्रीनरेश मेहता आधुनिक भारतीय साहित्य के शीर्षस्थ कवि, कथाकार और चिन्तक है। शिप्रा नर्मदा से लेकर गंगा तक फैले हुए उनके जीवन का फलक काफ़ी विस्तृत है। काशी विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए. के बाद कुछेक दैनिक पत्रों और फिर आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों में सेवा कार्य किया। सन् 1942 के स्वाधीनता आन्दोलन में छात्रनेता के रूप में सक्रिय भूमिका निभायी, और द्वितीय विश्वयुद्ध के समय सेना में सेकेंड लेफ्टिनेंट का पद भार भी ग्रहण किया। इन सबके बावजूद काँकर-कंटकों से भरे जीवन पथ को बन्धु मानने की उनकी बुनियादी आस्था ने उन्हें रचनाकर्म की ओर मोड़ दिया। सौभाग्य से काशी के सारस्वत परिवेश और ऋषितुल्य आचार्य केशव प्रसाद मिश्र, पं. गोपीनाथ कविराज जैसे मनीषी पुरुषों के सान्निध्य ने उनके भीतर के रचनाकार को वैदिक एवं औपनिषदिक चिन्तन को भूमिका में ला दिया। उनकी अब तक प्रकाशित रचनाओं में 15 काव्य संकलन, 7 उपन्यास, 3 कहानी संग्रह, 4 नाटक, 4 चिन्तनपरक ग्रन्थ और एक यात्रावृत्त विशेष उल्लेखनीय हैं। मध्य प्रदेश शासन के 'राजकीय सम्मान', 'सारस्वत सम्मान', 'शिखर सम्मान', उ. प्र. के 'संस्थान सम्मान', हिन्दी साहित्य सम्मेलन के 'मंगलाप्रसाद पारितोषिक', साहित्य अकादेमी पुरस्कार, उत्तरप्रदेश साहित्य संस्थान के 'भारतभारती' सम्मान तथा 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' आदि से सम्मानित।

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