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Byomkesh Bakshi ki Rahasyamayi Kahaniyan
Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Saradindu Bandyopadhyay
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Prabhat Prakashan
Author:
Saradindu Bandyopadhyay
Language:
Hindi
Format:
Hardback
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In stock
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1-4 Days
In stock
Book Type |
---|
ISBN:
SKU
9789352661190
Categories Children, Hindi
Tag #P' Children's / Teenage fiction: Biographical fiction / autobiographical stories
Page Extent:
176
सारदेंदु बंद्योपाध्याय की विशिष्टता उनके जासूसी लेखन के अतिरिक्त उनकी अद्वितीय लेखन-शैली के साथ-साथ उनके चरित्रों का सूक्ष्म जीवंत चित्रण है।बीसवीं सदी के प्रारंभ के बंगाल में लेखक और पाठक समान रूप से अपराध और जासूसी साहित्य को नीची निगाहों से देखते थे। सारदेंदु बंद्योपाध्याय ने पहली बार उस लेखन को सम्मानीय स्थान दिलाया। इसका एक बड़ा कारण यह था कि उनके पूर्व के लेखक पंचकोरी दे और दिनेंद्र कुमार अंग्रेजी के जासूसी लेखक आर्थर कोनान, डोएल, एडगर एलन पो, जी.के. चेस्टरसन तथा अगाथा क्रिस्टी से प्रभावित होकर लिखते थे, जबकि सारदेंदु के चरित्र और स्थान अन्य जासूसी उपन्यासों के विपरीत, भारतीय मूल और स्थल के परिवेश में जीते हैं।उनके लेखन का विनोदी स्वभाव पाठक को अनायास कथा के दौरान गुदगुदाता रहता है। ब्योमकेश का साहित्य न केवल अभूतपूर्व जासूसी साहित्य है बल्कि सभी समय और काल में, समाज के सभी वर्गों के युवाओं और वृद्धों में समान रूप से सदैव लोकप्रिय बना रहा है। पाठक इन रहस्य भरी कहानियों को उनके जीवंत लेखन के लिए, अंत जानने के बावजूद, बार-बार पढ़ने के लिए लालायित रहता है। किसी भी लोकप्रिय साहित्य में यह एक अद्वितीय उपलब्धि मानी जाती है और यही उपलब्धि सारदेंदु के ब्योमकेश बक्शी साहित्य को सत्यजीत राय के प्रसिद्ध उपन्यास ‘फेलूदा के कारनामे’ के समान हमारे समय के ‘क्लासिक’ का स्थान दिलाती है।
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Rahasyamayi Kahaniyan” Cancel reply
Description
सारदेंदु बंद्योपाध्याय की विशिष्टता उनके जासूसी लेखन के अतिरिक्त उनकी अद्वितीय लेखन-शैली के साथ-साथ उनके चरित्रों का सूक्ष्म जीवंत चित्रण है।बीसवीं सदी के प्रारंभ के बंगाल में लेखक और पाठक समान रूप से अपराध और जासूसी साहित्य को नीची निगाहों से देखते थे। सारदेंदु बंद्योपाध्याय ने पहली बार उस लेखन को सम्मानीय स्थान दिलाया। इसका एक बड़ा कारण यह था कि उनके पूर्व के लेखक पंचकोरी दे और दिनेंद्र कुमार अंग्रेजी के जासूसी लेखक आर्थर कोनान, डोएल, एडगर एलन पो, जी.के. चेस्टरसन तथा अगाथा क्रिस्टी से प्रभावित होकर लिखते थे, जबकि सारदेंदु के चरित्र और स्थान अन्य जासूसी उपन्यासों के विपरीत, भारतीय मूल और स्थल के परिवेश में जीते हैं।उनके लेखन का विनोदी स्वभाव पाठक को अनायास कथा के दौरान गुदगुदाता रहता है। ब्योमकेश का साहित्य न केवल अभूतपूर्व जासूसी साहित्य है बल्कि सभी समय और काल में, समाज के सभी वर्गों के युवाओं और वृद्धों में समान रूप से सदैव लोकप्रिय बना रहा है। पाठक इन रहस्य भरी कहानियों को उनके जीवंत लेखन के लिए, अंत जानने के बावजूद, बार-बार पढ़ने के लिए लालायित रहता है। किसी भी लोकप्रिय साहित्य में यह एक अद्वितीय उपलब्धि मानी जाती है और यही उपलब्धि सारदेंदु के ब्योमकेश बक्शी साहित्य को सत्यजीत राय के प्रसिद्ध उपन्यास ‘फेलूदा के कारनामे’ के समान हमारे समय के ‘क्लासिक’ का स्थान दिलाती है।
About Author
सारदेंदु बंद्योपाध्याय का जन्म 30 मार्च, 1899 को उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में हुआ था। उनके साहित्यिक जीवन की शुरुआत कविता-संग्रह से हुई, जो 1919 में प्रकाशित हुआ। सन् 1938 में सारदेंदु ‘बॉम्बे टाकीज’ तथा अन्य फिल्म प्रतिष्ठानों में पटकथा लेखक के रूप में कार्य हेतु बंबई चले गए, जहाँ उन्होंने 1952 तक काम किया। इसके बाद उन्होंने फिल्मों में लिखना छोड़ दिया और पुणे आ गए तथा अपना ध्यान पुनः साहित्य-लेखन में लगाया। बाद में चलकर वे बँगला साहित्य में भूत-प्रेतों की कहानियों, ऐतिहासिक पे्रम-प्रसंगों और बाल-साहित्य के लोकप्रिय और प्रख्यात लेखक के रूप में उभरकर आए। किंतु ब्योमकेश की कहानियों का समकालीन बँगला साहित्य में आज भी योगदान माना जाता है। सारदेंदु बंद्योपाध्याय को उनके उपन्यास ‘तुंगभद्रा तीरे’ के लिए 1967 में ‘रवींद्र पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। उसी वर्ष उन्हें कलकत्ता विश्वविद्यालय की ओर से ‘शरत स्मृति पुरस्कार’ दिया गया। उनका बाद का जीवन पुणे में बीता, जहाँ 22 सितंबर, 1970 को उनका स्वर्गवास हो गया|
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