Breaking News

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
अनन्त कुमार सिंह
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
अनन्त कुमार सिंह
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Hindi
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Hardback

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ब्रेकिंग न्यूज़ –
बीसवीं सदी के नौवें दशक से अपनी कथा-यात्रा प्रारम्भ करनेवाले अनन्त कुमार सिंह की कहानियों का प्रमुख विषय उनका समसामयिक जीवन है, वह वातावरण है जहाँ अधिकांश लोग भूखे और फटेहाल हैं। उनकी कहानियाँ हमारे समय और समाज के त्रासद सच से रू-ब-रू कराती हैं। इनमें जटिल होते जा रहे सामाजिक जीवन की कई आन्तरिक परतें उजागर हुई हैं।
अनन्त कुमार सिंह अपने पाठकों को प्रत्यक्ष रूप से किसी आदर्श के लिए निर्देश नहीं करते, बल्कि कहानियों की विषयवस्तु ही यह इंगित करती है कि आज भारतीय समाज इतना अनैतिक, अमानवीय और संवेदनहीन क्यों होता जा रहा है, यहाँ तक कि सहज समझा जानेवाला ग्रामीण समाज भी।
लेखक ने ग्रामीण और शहरी जीवन पर पूँजी के बढ़ते विनाशकारी प्रभाव को इस अन्तर्भेदी दृष्टि और व्यापकता के साथ प्रस्तुत किया है कि वह हमारे समाजशास्त्रीय ग्रन्थों में भी दुर्लभ है। उन्होंने अपनी कहानियों में यह भी दिखलाया है कि पूँजी और बाज़ार के प्रलोभन ने पारिवारिक आत्मीय सम्बन्धों को भी बिगाड़कर आज के मनुष्य को ‘आना-पाई के स्वार्थी हिसाब-किताब’ में बदल डाला है। लेखक की कहानियों में अन्तर्निहित विचार शास्त्रीय चौहदियों में पंखहीन होकर नहीं रह गये हैं बल्कि समय और समाज की अनन्त सम्भावनाओं वाले आकाश में उड़ सकने का हौसला रखते हैं।
बावजूद इसके, लेखक का महत्त्व इस बात में निहित है कि उन्होंने अपने पात्रों को सामाजिक रूप से अमानवीय विकृतियों के विरुद्ध जूझते हुए दिखलाया है।—डॉ. रवीन्द्रनाथ राय

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ब्रेकिंग न्यूज़ –
बीसवीं सदी के नौवें दशक से अपनी कथा-यात्रा प्रारम्भ करनेवाले अनन्त कुमार सिंह की कहानियों का प्रमुख विषय उनका समसामयिक जीवन है, वह वातावरण है जहाँ अधिकांश लोग भूखे और फटेहाल हैं। उनकी कहानियाँ हमारे समय और समाज के त्रासद सच से रू-ब-रू कराती हैं। इनमें जटिल होते जा रहे सामाजिक जीवन की कई आन्तरिक परतें उजागर हुई हैं।
अनन्त कुमार सिंह अपने पाठकों को प्रत्यक्ष रूप से किसी आदर्श के लिए निर्देश नहीं करते, बल्कि कहानियों की विषयवस्तु ही यह इंगित करती है कि आज भारतीय समाज इतना अनैतिक, अमानवीय और संवेदनहीन क्यों होता जा रहा है, यहाँ तक कि सहज समझा जानेवाला ग्रामीण समाज भी।
लेखक ने ग्रामीण और शहरी जीवन पर पूँजी के बढ़ते विनाशकारी प्रभाव को इस अन्तर्भेदी दृष्टि और व्यापकता के साथ प्रस्तुत किया है कि वह हमारे समाजशास्त्रीय ग्रन्थों में भी दुर्लभ है। उन्होंने अपनी कहानियों में यह भी दिखलाया है कि पूँजी और बाज़ार के प्रलोभन ने पारिवारिक आत्मीय सम्बन्धों को भी बिगाड़कर आज के मनुष्य को ‘आना-पाई के स्वार्थी हिसाब-किताब’ में बदल डाला है। लेखक की कहानियों में अन्तर्निहित विचार शास्त्रीय चौहदियों में पंखहीन होकर नहीं रह गये हैं बल्कि समय और समाज की अनन्त सम्भावनाओं वाले आकाश में उड़ सकने का हौसला रखते हैं।
बावजूद इसके, लेखक का महत्त्व इस बात में निहित है कि उन्होंने अपने पात्रों को सामाजिक रूप से अमानवीय विकृतियों के विरुद्ध जूझते हुए दिखलाया है।—डॉ. रवीन्द्रनाथ राय

About Author

अनन्त कुमार सिंह - जन्म: 7 जनवरी, 1955। शिक्षा: एम.ए. (अर्थशास्त्र)। कृतियाँ: 'चौराहे पर', 'और लातूर गुम हो गया', 'राग भैरवी', 'तुम्हारी तस्वीर नहीं है यह', 'कठफोड़वा तथा अन्य कहानियाँ', 'प्रतिनिधि कहानियाँ' (कहानी संग्रह)। 'आज़ादी की कहानी' (बाल कथा संग्रह)। 'कुँअर सिंह और 1857 की क्रान्ति' (इतिहास पुस्तक)। अनेक रचनाएँ तेलुगु, मलयालम, बांग्ला, उर्दू में अनूदित। हिन्दी एवं मगही में कहानियाँ, नाटक व रूपक आकाशवाणी से प्रसारित। सम्मान: 'और लातूर गुम हो गया' के लिए 'परिमल' द्वारा 'राजेश्वर प्रसाद सिंह कथा-सम्मान'। बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् द्वारा सम्मानित।

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