Bolna To Hai (PB)

Publisher:
RADHA
| Author:
Sheetla Mishra
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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RADHA
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Sheetla Mishra
Language:
Hindi
Format:
Paperback

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यदि हमसे कहा जाए कि बोलिए मत, चुप रहिए तो हम कितनी देर तक चुप रह सकते हैं? और चुप होते ही हम पाएँगे कि हमारे अधिकांश काम भी ठप हो गए हैं। यानी, बोलना तो है ही। बोले बिना किसी का काम चलता नहीं। नींद के बाद बचे समय पर ज़रा ग़ौर कीजिए, पाएँगे कि ज़्यादातर वक़्त (75 प्रतिशत से भी ज़्यादा) हम, या तो, बोल रहे हैं या सुन रहे हैं। ज़रा सोचिए, कि जिस काम पर सबसे ज़्यादा समय ख़र्च कर रहे हों, यदि उसे बेहतर कर लें तो हमारे जीवन का अधिकांश भी बेहतर हो जाएगा। यानी, अपने बोलने और सुनने को बेहतर बनाना, जीवन को ठीक करने जैसा काम होगा, क्या नहीं?
दरअसल, चार मौलिक विधाएँ हैं—बोलना, सुनना, लिखना, पढ़ना। इनमें से लिखने-पढ़ने की तो हम औपचारिक शिक्षा पाते हैं, लेकिन बोलना-सुनना, आश्चर्यजनक रूप से, सिर्फ़ नक़ल और अनुकरण के हवाले हैं। बोलना-सुनना औपचारिक तरीक़े से सीखा और सुधारा जा सकता है, और इसी की पहली सीढ़ी है यह पुस्तक।

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Description

यदि हमसे कहा जाए कि बोलिए मत, चुप रहिए तो हम कितनी देर तक चुप रह सकते हैं? और चुप होते ही हम पाएँगे कि हमारे अधिकांश काम भी ठप हो गए हैं। यानी, बोलना तो है ही। बोले बिना किसी का काम चलता नहीं। नींद के बाद बचे समय पर ज़रा ग़ौर कीजिए, पाएँगे कि ज़्यादातर वक़्त (75 प्रतिशत से भी ज़्यादा) हम, या तो, बोल रहे हैं या सुन रहे हैं। ज़रा सोचिए, कि जिस काम पर सबसे ज़्यादा समय ख़र्च कर रहे हों, यदि उसे बेहतर कर लें तो हमारे जीवन का अधिकांश भी बेहतर हो जाएगा। यानी, अपने बोलने और सुनने को बेहतर बनाना, जीवन को ठीक करने जैसा काम होगा, क्या नहीं?
दरअसल, चार मौलिक विधाएँ हैं—बोलना, सुनना, लिखना, पढ़ना। इनमें से लिखने-पढ़ने की तो हम औपचारिक शिक्षा पाते हैं, लेकिन बोलना-सुनना, आश्चर्यजनक रूप से, सिर्फ़ नक़ल और अनुकरण के हवाले हैं। बोलना-सुनना औपचारिक तरीक़े से सीखा और सुधारा जा सकता है, और इसी की पहली सीढ़ी है यह पुस्तक।

About Author

शीतला मिश्र

पूरा नाम शीतला प्रसाद मिश्र। उपनाम शील अवधेय। जन्म अयोध्या के निकट रसूलाबाद गाँव में।

श्री गजानन माधव मुक्तिबोध के कृतित्व पर पीएच.डी.। उन पर पहला शोधकार्य। स्कूल-कॉलेज-विश्वविद्यालय में शिक्षण-कार्य। सन् 1978 में इन्दौर में वाग्मिता संस्थान की स्थापना। उसके मानद प्राचार्य और प्रमुख शिक्षक। कामकाजी जीवन के विविध क्षेत्रों के हज़ारों युवा-प्रौढ़ जनों को वाग्मिता (मौखिक सम्प्रेषण) के बेसिक कोर्स का शिक्षण दिया।

प्रमुख कृतियाँ : ‘आधुनिक भाषण-कला’, ‘बोलने-सुनने की कला’, ‘सार्वजनिक भाषण-कला’, ‘वाचन-कला तथा वाग्मिता’, ‘बोलना तो है!’

भारतीय भाषाओं में वाणी-शिक्षा की प्रथम मासिक पत्रिका ‘बोल-व्यवहार’ का चार वर्षों तक सम्पादन-प्रकाशन।

सामाजिक गूँगेपन, सामाजिक बहरेपन, सामाजिक अपर्याप्तता, सामाजिक प्रलाप और आन्तरिक प्रलाप के वाणी-रोगों से मुक्ति में लोगों की सहायता।

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