Bhasha Samvedna Aur Surjan Hard Cover

Publisher:
Lokbharti
| Author:
Ram Savaruap Chturvide
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Lokbharti
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Ram Savaruap Chturvide
Language:
Hindi
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Hardback

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‘भाषा और संवेदना’ (१८६४) रामस्वरूप चतुर्वेदी के आलोचनात्मक लेखन की ध्वजवाही कृति कही जा सकती है। गत तीन दशकों में भाषिक रचना-प्रक्रिया साहित्यिक सर्जन और साहित्य-चिंतन के केन्द्र में क्रमशः आती गई है। तो इसके पीछे ‘भाषा और संवेदना’ का सघन होता संस्कार एक महत्त्वपूर्ण कारक माना जाएगा। ‘सर्जन और भाषिक संरचना’ (१६८०) ‘भाषा और संवेदना’ की
उत्तर-कृति है। दोनों मिलकर सर्जन के सूक्ष्म क्षेत्र में भाषा और संवेदना की अंतरक्रिया को बड़े दक्ष ढंग से रूपायित करती हैं। इस दृष्टि से दोनों कृतियों को वर्तमान संयुक्त संस्करण में प्रस्तुत किया जा रहा है, ताकि पुराने और नये सभी पाठकों को वैचारिक उत्तेजन और तृप्ति की मिली-जुली अनुभूति हो।

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Description

‘भाषा और संवेदना’ (१८६४) रामस्वरूप चतुर्वेदी के आलोचनात्मक लेखन की ध्वजवाही कृति कही जा सकती है। गत तीन दशकों में भाषिक रचना-प्रक्रिया साहित्यिक सर्जन और साहित्य-चिंतन के केन्द्र में क्रमशः आती गई है। तो इसके पीछे ‘भाषा और संवेदना’ का सघन होता संस्कार एक महत्त्वपूर्ण कारक माना जाएगा। ‘सर्जन और भाषिक संरचना’ (१६८०) ‘भाषा और संवेदना’ की
उत्तर-कृति है। दोनों मिलकर सर्जन के सूक्ष्म क्षेत्र में भाषा और संवेदना की अंतरक्रिया को बड़े दक्ष ढंग से रूपायित करती हैं। इस दृष्टि से दोनों कृतियों को वर्तमान संयुक्त संस्करण में प्रस्तुत किया जा रहा है, ताकि पुराने और नये सभी पाठकों को वैचारिक उत्तेजन और तृप्ति की मिली-जुली अनुभूति हो।

About Author

रामस्वरूप चतुर्वेदी

जन्म : 1931 में कानपुर में। आरम्भिक शिक्षा पैतृक गाँव कछपुरा (आगरा) में हुई। बी.ए. क्राइस्ट चर्च, कानपुर से। एम.ए. की उपाधि इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 1952 में। वहीं हिन्दी विभाग में अध्यापन (1954-1991)। डी.फ़िल की उपाधि 1958 में मिली, डी.लिट. की 1972 में।

आरम्भिक समीक्षापरक निबन्ध 1950 में प्रकाशित हुए। नई प्रवृत्तियों से सम्‍बद्ध पत्रिकाओं का सम्पादन किया : ‘नए पत्ते’ (1952), ‘नई कविता’ (1954), ‘क ख ग’ (1963)। शोध-त्रैमासिक ‘हिन्दी अनुशीलन’ का सम्पादन (1960-1984)।

प्रकाशन : ‘शरत् के नारी पात्र’ (1955), ‘हिन्दी साहित्य कोश’ (सहयोग में सम्‍पादित—प्रथम भाग 1958, द्वितीय भाग 1963), ‘हिन्दी नवलेखन’ (1960), ‘आगरा ज़िले की बोली’ (1961), ‘भाषा और संवेदना’ (1964), ‘अज्ञेय और आधुनिक रचना की समस्या’ (1968), ‘हिन्दी साहित्य की अधुनातन प्रवृत्तियाँ’ (1969), ‘कामायनी का पुनर्मूल्यांकन’ (1970), ‘मध्यकालीन हिन्दी काव्यभाषा’ (1974), ‘नई कविताएँ : एक साक्ष्य’ (1976), ‘कविता-यात्रा’ (1976), ‘गद्य की सत्ता’ (1977), ‘सर्जन और भाषिक संरचना’ (1980), ‘इतिहास और आलोचक-दृष्टि’ (1982), ‘हिन्दी साहित्य और संवेदना का विकास’ (1986), ‘काव्यभाषा पर तीन निबन्ध’ (1989), ‘प्रसाद-निराला-अज्ञेय’ (1989), ‘साहित्य के नए दायित्व’ (1991), ‘कविता का पक्ष’ (1994), ‘समकालीन हिन्दी साहित्य : विविध परिदृश्य’ (1995), ‘हिन्दी गद्य : विन्यास और विकास’ (1996), ‘तारसप्तक से गद्यकविता’ (1997), ‘भारत और पश्चिम : संस्कृति के अस्थिर सन्दर्भ’ (1999), ‘आचार्य रामचन्‍द्र शुक्ल—आलोचना का अर्थ : अर्थ की आलोचना’ (2001), ‘भक्ति काव्य-यात्रा’ (2003)।

संयुक्त संस्करण : ‘भाषा-संवेदना और सर्जन’ (1996), ‘आधुनिक कविता-यात्रा’ (1998)।

सन् 1996 में ‘व्यास सम्मान’ से सम्‍मानित।

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