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Bhartiya Musalman : Etihas Ka Sandarbh–(Part-2)
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
कर्मेन्दु शिशिर
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
कर्मेन्दु शिशिर
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹700 ₹490
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ISBN:
SKU
9789326355773
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
416
भारतीय मुसलमान इतिहास का सन्दर्भ 2 – भारत और पाक का विभाजन हमारे लिए हिन्दू और मुसलमान का विभाजन नहीं था, पाकिस्तान के लिए भले ही यह हिन्दू-मुसलमान का विभाजन था। बाद में पाकिस्तान के मेंटर बने मौलाना मौदूदी के लिए और उन जैसों के लिए बेशक यह हिन्दू-मुसलमान का बँटवारा रहा हो मगर भारत के लिये यह सह-अस्तित्व था, सहजीवन और मुस्लिम कौम की कट्टरता का विभाजन था। मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी हमेशा हठीले अन्दाज़ में चीख़-चीख़ कर कह रहे थे कि मुसलमान किसी दूसरी कौम के साथ रह ही नहीं सकता। अल्लामा इक़बाल ऐसा ही सोचते थे। मुस्लिम कौम का एक बड़ा तबका बिल्कुल ऐसा ही सोचता था। इस हठीली मुस्लिम कौम की एकरेखीय सोच के समानान्तर विकसित हुई सहजीवन शैली वाली साझी संस्कृति की गंगा-जमुनी धारा भी बहती चली आ रही थी—हज़ारों साल वाली सोच। वह हठीली धारा के प्रतिपक्ष में अपने हिस्से का वारिस होने वाली थी। एक विशाल मुस्लिम आबादी ने महान विरासत वाली साझी संस्कृति की सोच का चयन किया। पाकिस्तान ने सोचा, उसने हिन्दू-मुसलमान का बँटवारा कर लिया। भारत ने कहा, यह तो साझी संस्कृति की सोचवाले मुसलमानों से कट्टर और हठीली सोचवाले मुसलमानों का बँटवारा हुआ। भारत-पाकिस्तान का विभाजन तात्त्विक और मूल्यगत स्तर पर मुसलमानों का मुसलमानों के बीच बँटवारा बन गया। इस तात्त्विक और मूल्यगत विभाजन ने पाकिस्तान को एकदम से बौना कर दिया। कायदे आज़म जिन्ना के मरते ही वह झीना आदर्श भी फट-फूट गया जिसमें वे कहते थे कि हिन्दू शासित धर्मनिरपेक्ष और साझी संस्कृति की विरासतवाला भारत एक ओर और मुस्लिम शासित धर्मनिरपेक्ष साझी संस्कृतिवाला पाकिस्तान दूसरी तरफ़। जिन्ना के जाते ही दशक भी न लगा बल्कि उनके जीते-जी ही पाकिस्तान मौलाना अबुल आला मौदूदी वाली आकांक्षा के अनुरूप संकीर्णता में पूरी तरह ढल गया। एकरंगी, संकीर्ण और पिछड़ी सोचवाला पाकिस्तान। आज स्थिति सामने है। इसका मनोविश्लेषणात्मक अध्ययन इस भाग में प्रस्तुत है।
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भारतीय मुसलमान इतिहास का सन्दर्भ 2 – भारत और पाक का विभाजन हमारे लिए हिन्दू और मुसलमान का विभाजन नहीं था, पाकिस्तान के लिए भले ही यह हिन्दू-मुसलमान का विभाजन था। बाद में पाकिस्तान के मेंटर बने मौलाना मौदूदी के लिए और उन जैसों के लिए बेशक यह हिन्दू-मुसलमान का बँटवारा रहा हो मगर भारत के लिये यह सह-अस्तित्व था, सहजीवन और मुस्लिम कौम की कट्टरता का विभाजन था। मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी हमेशा हठीले अन्दाज़ में चीख़-चीख़ कर कह रहे थे कि मुसलमान किसी दूसरी कौम के साथ रह ही नहीं सकता। अल्लामा इक़बाल ऐसा ही सोचते थे। मुस्लिम कौम का एक बड़ा तबका बिल्कुल ऐसा ही सोचता था। इस हठीली मुस्लिम कौम की एकरेखीय सोच के समानान्तर विकसित हुई सहजीवन शैली वाली साझी संस्कृति की गंगा-जमुनी धारा भी बहती चली आ रही थी—हज़ारों साल वाली सोच। वह हठीली धारा के प्रतिपक्ष में अपने हिस्से का वारिस होने वाली थी। एक विशाल मुस्लिम आबादी ने महान विरासत वाली साझी संस्कृति की सोच का चयन किया। पाकिस्तान ने सोचा, उसने हिन्दू-मुसलमान का बँटवारा कर लिया। भारत ने कहा, यह तो साझी संस्कृति की सोचवाले मुसलमानों से कट्टर और हठीली सोचवाले मुसलमानों का बँटवारा हुआ। भारत-पाकिस्तान का विभाजन तात्त्विक और मूल्यगत स्तर पर मुसलमानों का मुसलमानों के बीच बँटवारा बन गया। इस तात्त्विक और मूल्यगत विभाजन ने पाकिस्तान को एकदम से बौना कर दिया। कायदे आज़म जिन्ना के मरते ही वह झीना आदर्श भी फट-फूट गया जिसमें वे कहते थे कि हिन्दू शासित धर्मनिरपेक्ष और साझी संस्कृति की विरासतवाला भारत एक ओर और मुस्लिम शासित धर्मनिरपेक्ष साझी संस्कृतिवाला पाकिस्तान दूसरी तरफ़। जिन्ना के जाते ही दशक भी न लगा बल्कि उनके जीते-जी ही पाकिस्तान मौलाना अबुल आला मौदूदी वाली आकांक्षा के अनुरूप संकीर्णता में पूरी तरह ढल गया। एकरंगी, संकीर्ण और पिछड़ी सोचवाला पाकिस्तान। आज स्थिति सामने है। इसका मनोविश्लेषणात्मक अध्ययन इस भाग में प्रस्तुत है।
About Author
कर्मेन्दु शिशिर
जन्म : 26 अगस्त, 1953; उनवाँस, बक्सर (बिहार)
शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी)
सम्प्रति : बी.डी. कॉलेज, मीठापुर, पटना में प्राध्यापक छात्र जीवन से वामपन्थी राजनीति में सक्रिय । फिर साहित्य लेखन में एकाग्र।
प्रकाशित कृतियाँ : बहुत लम्बी राह (उपन्यास), कितने दिन अपने, बची रहेगी जिन्दगी, लौटेगा नहीं जीवन (कहानी-संग्रह), नवजागरण और संस्कृति, राधामोहन गोकुल और हिन्दी नवजागरण, हिन्दी नवजागरण और जातीय गद्य परम्परा, 1857 की राजक्रान्ति : विचार और विश्लेषण, भारतीय नवजागरण और समकालीन सन्दर्भ, निराला और राम की शक्ति- पूजा (शोध-समीक्षात्मक लेख, आलोचना)।
सम्पादन : भोजपुरी होरी गीत (दो भाग), सोमदत्त की गद्य रचनाएँ, ज्ञानरंजन और पहल, राधामोहन गोकुल- समग्र (दो भाग), राधाचरण गोस्वामी की रचनाएँ, सत्यभक्त और साम्यवादी पार्टी, नवजागरण पत्रकारिता और सारसुधानिधि (दो खंड), नवजागरण पत्रकारिता और मतवाला (तीन खंड), नवजागरण पत्रकारिता और मर्यादा (छह खंड), पहल की मुख्य कविताएँ और वैचारिक लेखों का संकलन (दो भाग)। 8 पुस्तिकाएँ और समकालीन कविता, कहानी पर आलोचना लेख ।
यात्रा : हाईडलबर्ग, बर्लिन, स्टुटगार्ड, पेरिस, प्राग, तुइविंगन |
मो. : 09431221073
email : shishirkarmendu@gmail.com , karmendushishir@yahoo.com.in
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