Bharatiyata Ka Kavya Bhaktikavya

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
रसाल सिंह
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Vani Prakashan
Author:
रसाल सिंह
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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भक्ति आन्दोलन मध्यकालीन अन्धकार का सांस्कृतिक प्रतिरोध और प्रतिकार है। विदेशी आक्रान्ताओं के पददलन के प्रतिरोधस्वरूप भारतीय चिन्ताधारा नयी चेतना और नयी ऊर्जा के साथ भारतीयता का पुनराविष्कार करती है। साथ ही, समाज को चेतना के स्तर पर संगठित भी करती है। यह सांस्कृतिक जागरण और संगठन विषम परिस्थितियों में भारतीयता को बचाये रखने का जतन है। यह जतन कश्मीर से कन्याकुमारी तक और कच्छ से कामरूप तक स्पष्ट दिखायी पड़ता है। कबीरदास, सूरदास, तुलसीदास, मीराबाई, लल्लेश्वरी, नानकदेव, रैदास, श्रीमन्त शंकरदेव, माधवदेव, रसखान, जायसी, चण्डीदास, नामदेव, चैतन्य महाप्रभु, जयदेव आदि इस मध्यकालीन सांस्कृतिक क्रान्ति के सूत्रधार हैं। इन्होंने अपने-अपने ढंग से भारतीय समाज की चेतना का परिष्कार किया।

सनातनी संस्कृति का सर्वोत्तम इन सांस्कृतिक योद्धाओं का पाथेय है। धर्मान्तरण के रक्तरंजित दबावों और चमचमाते प्रलोभनों से जूझते समाज के अन्दर अपने धर्म के प्रति गौरव जाग्रत करते हुए इन्होंने भारत की सनातन संस्कृति के संरक्षण और संवर्द्धन की उल्लेखनीय परियोजना चलायी। हतभाग्य और पददलित समाज के अन्दर आत्मविश्वास और एकता पैदा करते हुए भारतीयता की प्राणरक्षा की। धर्मप्राण भारतीय समाज के मन और चिन्तन में परमात्मा की पुनः प्रतिष्ठा महनीय कार्य था। पाशविकता के बरअक्स मनुष्यता और भौतिकता के वरअक्स आध्यात्मिकता की प्रतिष्ठा इस परियोजना की मूलप्रेरणा रही है। इस काव्य में सामाजिक संशोधन और उन्नयन की चिन्ता केन्द्रीभूत है। मनुष्यभाव और भारतबोध इस काव्य की धमनियों में आद्योपान्त धड़कते पाये जाते हैं। भक्तिकाव्य में उदात्त मानव मूल्यों की सार्वजनीन और सार्वभौमिक उपस्थिति है।

भक्ति आन्दोलन भारत की सांस्कृतिक एकात्मता को भी आधार प्रदान करता है। ‘म्लेच्छाक्रान्त देशेषु’ को ‘निसिचरहीन’ करने के प्रण का परिणाम यह काव्य भारतीय समाज की सांस्कृतिक स्वाधीनता का भी संकल्प-पत्र है। इस अन्तर्धारा के अनेक आयाम और रूप होते हुए भी यह विविधताओं की एकता का काव्य है। इसी एकता और भारतीयता के सूत्रों की पहचान और पड़ताल का फलागम यह पुस्तक है।

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भक्ति आन्दोलन मध्यकालीन अन्धकार का सांस्कृतिक प्रतिरोध और प्रतिकार है। विदेशी आक्रान्ताओं के पददलन के प्रतिरोधस्वरूप भारतीय चिन्ताधारा नयी चेतना और नयी ऊर्जा के साथ भारतीयता का पुनराविष्कार करती है। साथ ही, समाज को चेतना के स्तर पर संगठित भी करती है। यह सांस्कृतिक जागरण और संगठन विषम परिस्थितियों में भारतीयता को बचाये रखने का जतन है। यह जतन कश्मीर से कन्याकुमारी तक और कच्छ से कामरूप तक स्पष्ट दिखायी पड़ता है। कबीरदास, सूरदास, तुलसीदास, मीराबाई, लल्लेश्वरी, नानकदेव, रैदास, श्रीमन्त शंकरदेव, माधवदेव, रसखान, जायसी, चण्डीदास, नामदेव, चैतन्य महाप्रभु, जयदेव आदि इस मध्यकालीन सांस्कृतिक क्रान्ति के सूत्रधार हैं। इन्होंने अपने-अपने ढंग से भारतीय समाज की चेतना का परिष्कार किया।

सनातनी संस्कृति का सर्वोत्तम इन सांस्कृतिक योद्धाओं का पाथेय है। धर्मान्तरण के रक्तरंजित दबावों और चमचमाते प्रलोभनों से जूझते समाज के अन्दर अपने धर्म के प्रति गौरव जाग्रत करते हुए इन्होंने भारत की सनातन संस्कृति के संरक्षण और संवर्द्धन की उल्लेखनीय परियोजना चलायी। हतभाग्य और पददलित समाज के अन्दर आत्मविश्वास और एकता पैदा करते हुए भारतीयता की प्राणरक्षा की। धर्मप्राण भारतीय समाज के मन और चिन्तन में परमात्मा की पुनः प्रतिष्ठा महनीय कार्य था। पाशविकता के बरअक्स मनुष्यता और भौतिकता के वरअक्स आध्यात्मिकता की प्रतिष्ठा इस परियोजना की मूलप्रेरणा रही है। इस काव्य में सामाजिक संशोधन और उन्नयन की चिन्ता केन्द्रीभूत है। मनुष्यभाव और भारतबोध इस काव्य की धमनियों में आद्योपान्त धड़कते पाये जाते हैं। भक्तिकाव्य में उदात्त मानव मूल्यों की सार्वजनीन और सार्वभौमिक उपस्थिति है।

भक्ति आन्दोलन भारत की सांस्कृतिक एकात्मता को भी आधार प्रदान करता है। ‘म्लेच्छाक्रान्त देशेषु’ को ‘निसिचरहीन’ करने के प्रण का परिणाम यह काव्य भारतीय समाज की सांस्कृतिक स्वाधीनता का भी संकल्प-पत्र है। इस अन्तर्धारा के अनेक आयाम और रूप होते हुए भी यह विविधताओं की एकता का काव्य है। इसी एकता और भारतीयता के सूत्रों की पहचान और पड़ताल का फलागम यह पुस्तक है।

About Author

रसाल सिंह जन्म : 17 फ़रवरी, 1980; मथुरा, उत्तर प्रदेश । उच्च शिक्षा : हिन्दू कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली । ● दिल्ली विश्वविद्यालय की समस्त परीक्षाओं (बी.ए. ऑनर्स, एम.ए., एम. फिल.) में स्वर्णपदक प्राप्त । विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यू.जी.सी.) द्वारा प्रदत्त कनिष्ठ शोध-वृत्ति (जे.आर.एफ.) प्राप्त । आलोचना, गगनांचल, हंस, साहित्य अमृत, बहुवचन, मधुमती, पाखी, वाक्, वर्तमान साहित्य, अन्तिम जन, गवेषणा, भाषा, ककसाड़, बनासजन, समय साखी आदि प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में 50 से अधिक आलोचनात्मक शोधलेख प्रकाशित । दैनिक जागरण, अमर उजाला, दैनिक हिन्दुस्तान, जनसत्ता, स्वदेश, स्वतन्त्र-वार्ता, पांचजन्य, सबलोग आदि पत्र- पत्रिकाओं में 100 से अधिक सामाजिक-सांस्कृतिक और राजनीतिक लेख प्रकाशित । प्रकाशित कृतियाँ : स्वातन्त्र्योत्तर परिदृश्य और राजकमल चौधरी की काव्य-चेतना, सत्ता, समाज और सर्वेश्वर की कविता, आदिवासी अस्मिता वाया कथा-साहित्य, हिन्दी का लोक: कुछ रस, कुछ रंग, हिन्दी साहित्य के इतिहास पर कुछ नोट्स नामक आलोचना पुस्तकें प्रकाशित । शैक्षणिक अनुभव : किरोड़ीमल कॉलेज और लेडी श्रीराम कॉलेज फॉर वूमेन, दिल्ली आदि प्रतिष्ठित संस्थानों में लगभग 20 वर्ष तक अध्यापन । प्रशासनिक अनुभव : अधिष्ठाता, भाषा संकाय और अधिष्ठाता, छात्र कल्याण, जम्मू केन्द्रीय विश्वविद्यालय, प्रभारी (हिन्दी विभाग) और प्रॉक्टर, किरोड़ीमल कॉलेज आदि प्रशासनिक पदों का 6 वर्ष से अधिक तक दायित्व निर्वहन । सम्प्रति : प्रोफ़ेसर और विभागाध्यक्ष, हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषा विभाग, जम्मू केन्द्रीय विश्वविद्यालय, साम्बा, जम्मू-कश्मीर- 1811431 मोबाइल : 8800886847 ई-मेल : rasal_singh@yahoo.co.in

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