Bharatiya Lok Kathaon Par Aadharit Urdu Masnaviyan

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
गोपीचन्द नारंग
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
गोपीचन्द नारंग
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Hindi
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Hardback

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भारतीय लोक कथाओं पर आधारित उर्दू मसनवियाँ –
ग़ज़ल के बाद हमारे शायरों ने जिस विधा पर सबसे ज़्यादा अभ्यास किया, वह मसनवी ही है। उर्दू की दूसरी विधाओं की तरह हमारी मसनवियाँ भी उस ग्रहण व स्वीकार, मेल-जोल और साझेदारी का पता देती हैं जो हिन्दुओं और मुसलमानों के आपसी मेल-जोल के बाद यहाँ सांस्कृतिक और सामाजिक स्तर पर भी सक्रिय रहीं।
संयोग की बात है कि उस ज़माने में जब उर्दू शायरी अभी अपने विकास की मंज़िलें, मज़हब व तसव्वुफ़ के सहारे तय कर रही थी, उर्दू की सर्वप्रथम मसनवी में एक भारतीय क़िस्से को विषयवस्तु बनाया गया। यह मसनवी बह्मनी दौर के एक शायर निज़ामी से सम्बद्ध की जाती है। और उसमें क़दमराव पदमराव का स्थानीय क़िस्से का वर्णन है। यह मसनवी सम्भवतः अहमद शाह सालिस बह्मनी (865-867 हि.) के ज़माने में लिखी गयी।
प्राचीन मसनवियों में साधारणत: क़िस्से कहानियाँ बयान की जाती थीं, जिनका गहरा सम्बन्ध राष्ट्रीय परम्पराओं, धर्म और सामाजिक जीवन से होता था। हमारी मसनवियाँ चूँकि साझा संस्कृति और मिले-जुले सामाजिक जीवन के प्रभाव में लिखी गयीं, इसलिए उनमें इस्लामी क़िस्से कहानियों के अलावा भारतीय लोक कथाओं और लोक परम्पराओं से प्रभावित होने का रुझान भी पाया जाता है। इसी रुझान का वस्तुपरक और शोधपरक दृष्टि से जाँच परख करना प्रस्तुत पुस्तक का विषय है।

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Description

भारतीय लोक कथाओं पर आधारित उर्दू मसनवियाँ –
ग़ज़ल के बाद हमारे शायरों ने जिस विधा पर सबसे ज़्यादा अभ्यास किया, वह मसनवी ही है। उर्दू की दूसरी विधाओं की तरह हमारी मसनवियाँ भी उस ग्रहण व स्वीकार, मेल-जोल और साझेदारी का पता देती हैं जो हिन्दुओं और मुसलमानों के आपसी मेल-जोल के बाद यहाँ सांस्कृतिक और सामाजिक स्तर पर भी सक्रिय रहीं।
संयोग की बात है कि उस ज़माने में जब उर्दू शायरी अभी अपने विकास की मंज़िलें, मज़हब व तसव्वुफ़ के सहारे तय कर रही थी, उर्दू की सर्वप्रथम मसनवी में एक भारतीय क़िस्से को विषयवस्तु बनाया गया। यह मसनवी बह्मनी दौर के एक शायर निज़ामी से सम्बद्ध की जाती है। और उसमें क़दमराव पदमराव का स्थानीय क़िस्से का वर्णन है। यह मसनवी सम्भवतः अहमद शाह सालिस बह्मनी (865-867 हि.) के ज़माने में लिखी गयी।
प्राचीन मसनवियों में साधारणत: क़िस्से कहानियाँ बयान की जाती थीं, जिनका गहरा सम्बन्ध राष्ट्रीय परम्पराओं, धर्म और सामाजिक जीवन से होता था। हमारी मसनवियाँ चूँकि साझा संस्कृति और मिले-जुले सामाजिक जीवन के प्रभाव में लिखी गयीं, इसलिए उनमें इस्लामी क़िस्से कहानियों के अलावा भारतीय लोक कथाओं और लोक परम्पराओं से प्रभावित होने का रुझान भी पाया जाता है। इसी रुझान का वस्तुपरक और शोधपरक दृष्टि से जाँच परख करना प्रस्तुत पुस्तक का विषय है।

About Author

गोपीचन्द नारंग - जन्म: 11 फ़रवरी, 1931 को टुक्की, बलूचिस्तान में। शिक्षा: 1958 में दिल्ली विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट तथा इंडियाना यूनिवर्सिटी से भाषा-विज्ञान मंस उच्च शिक्षा। 80 पुस्तकों के लेखक-आलोचक, शोध, भाषा-विज्ञान में निष्णात प्रो. नारंग ने सेंट स्टीफेन्स कॉलेज, दिल्ली में अध्यापन की शुरुआत की, तदुपरान्त दिल्ली विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग में स्थानान्तरित हो गये। 1974 से 1985 तक जामिया मिल्लिया इस्लामिया में प्रोफ़ेसर और कार्यवाहक उपकुलपति रहे। विसकॉन्सिन यूनिवर्सिटी (1963-65, 1968-70) में और कुछ समय मिनीसोटा यूनिवर्सिटी और ओसलो यूनिवर्सिटी, नॉर्वे में विज़िटिंग प्रोफ़ेसर रहे। साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष और नेशनल काउंसिल फॉर प्रमोशन ऑफ़ उर्दू एवं उर्दू अकादमी, दिल्ली के वाइस चेयरमैन भी रहे हैं। पुरस्कार-सम्मान: पद्मश्री एवं पद्म भूषण से अलंकृत। साथ ही पाकिस्तान के राष्ट्रपति द्वारा प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान 'तमग़-ए-इम्तियाज़' से विभूषित। लखनऊ का 'उर्दू हिन्दी साहित्य कमेटी पुरस्कार' (1984) और 'ग़ालिब पुरस्कार', 'अमीर ख़ुसरो सम्मान' (शिकागो), 'कनाडा उर्दू पुरस्कार' (टोरंटो), उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी का 'अखिल भारतीय मौलाना अबुल कलाम आज़ाद पुरस्कार' और महाराष्ट्र उर्दू एकेडमी का 'सन्त ज्ञानेश्वर पुरस्कार', साहित्य अकादेमी पुरस्कार तथा भारतीय ज्ञानपीठ के मूर्तिदेवी सम्मान से भी सम्मानित हैं। सेंट्रल यूनिवर्सिटी हैदराबाद, मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी, हैदराबाद और जामिया मिल्लिया इस्लामिया द्वारा डी.लिट्. की मानद उपाधि। दिल्ली विश्वविद्यालय एवं जामिया मिल्लिया इस्लामिया में प्रोफ़ेसर एमेरिटस। डॉ. ख़ुर्शीद आलम (अनुवादक) उर्दू कहानियों के एक सशक्त हस्ताक्षर, हिन्दी पर भी समान अधिकार। तीस से अधिक पुस्तकों के लेखक, सम्पादक एवं अनुवादक। कई कहानियों का हिन्दी के अतिरिक्त, मराठी, गुजराती, तमिल, कन्नड़ और अंग्रेज़ी में अनुवाद प्रकाशित। हिन्दी और उर्दू को अनुवाद के माध्यम से जोड़ने में सक्रियता से संलग्न। उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी, लखनऊ द्वारा पुरस्कृत। उर्दू साहित्य की सेवा के लिए ऑल इंडिया मीर एकेडमी, लखनऊ द्वारा 'इम्तियाज़-ए-मीर' सम्मान तथा हिन्दी साहित्य की सेवा के लिए भारत सरकार द्वारा हिन्दीतर लेखक भाषी पुरस्कार।

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