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भारत का स्वधर्म औपनिवेशिक शासन और मानसिकता के कारण भारतीय समाज में आ गई विकृतियों को रेखांकित करता है
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भारत का स्वधर्म औपनिवेशिक शासन और मानसिकता के कारण भारतीय समाज में आ गई विकृतियों को रेखांकित करता है
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धर्मपाल 19 फरवरी, 1922-24 अक्टूबर, 2006 मेरठ में जन्में धर्मपाल ने डी ए वी कॉलेज, लाहौर में शिक्षा पाने के साथ स्वाधीनता आन्दोलन में भाग लिया। मीरा बेन द्वारा ऋषिकेश के पास स्थापित एक ग्राम विकास संस्था से सम्बद्ध रहने के बाद असोसिएशन ऑव वालण्टरी आर्गनाइज़ेशन्स ऑव् रूरल डिवेलपमेण्ट के महासचिव और निदेशक (19551963) रहे। फिर अखिल भारतीय पंचायत परिषद् के शोध विभाग का कार्य (1963-65) देखते रहे। धर्मपाल ने जीवन के अंतिम पचास वर्ष अठारहवींउन्नीसवीं शती में इतिहास द्वारा उपेक्षित भारतीय समाज की शक्तियों-कमियों की खोज करने में लगाये हैं और देश-विदेश के अभिलेखागारों-ग्रन्थागारों से प्रभूत प्रमाण एकत्र किये हैं जिन से अंग्रेज शासन से पूर्व भारतीय समाज की एक ऐसी तस्वीर का पता चलता है जो आज के भारतीय मन में अंकित तस्वीर के सर्वथा विपरीत है। श्री धर्मपाल के प्रकाशित ग्रन्थ है—सिविल डिसओबिडिएन्स एण्ड इण्डियन ट्रेडीशन (बिबलिया इम्पेक्स, 1971), इण्डियन साइन्स एण्ड टेकनॉलॉजी इन द एटीन्थ सेन्चुरी, सम कण्टेम्पररी इण्डियन अकाउण्ट्स (बिबलिया इम्पेक्स, 1971) द मद्रास पंचायत सिस्टम, ए जनरल असेसमेण्ट (अवार्ड, 1973), द ब्यूटीफुल ट्री, इण्डिजिनस इण्डियन एजुकेशन इन द एटीन्थ सेन्चुरी (बिबलिया इम्पेक्स, 1983) अंग्रेजों से पहले का भारत, भारतीय चित्त, मानस व काल।
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