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Bhagva Ka Rajneetik Paksh Vajpayee Se Modi Tak
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
सबा नकवी, अनुवाद तृणा मुखर्जी
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
सबा नकवी, अनुवाद तृणा मुखर्जी
Language:
Hindi
Format:
Paperback
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9789389012019
Category Hindi
Category: Hindi
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264
देश की वर्तमान राजनीतिक पृष्ठभूमि में आज भाजपा की एक सुदृढ़ पहचान है। गठबन्धन की राजनीति से लेकर एक सशक्त इकाई के रूप में, उसने एक लम्बी यात्रा तय की है एवं 1998 में सत्तासीन होने से वर्तमान तक के सफर में एक स्वतन्त्र, पृथक् दल के रूप में अपनी पहचान बनायी है। अनुभवी पत्रकार सबा नक़वी ने 1980 में दल की स्थापना से लेकर उसके दो बार सत्तारूढ़ होने तक की यात्रा-कथा को यहाँ दर्ज़ किया है। भगवा का राजनीतिक पक्ष : वाजपेयी से मोदी तक न केवल देश के राजनीतिक इतिहास में घटित जीवन्त, विशिष्ट घटनाओं का आँखों देखा बयान है बल्कि भाजपा के विकास के विश्लेषणात्मक पहलुओं की बारीकियों को भी सामने रखता है। आर.एस.एस. कैडर की भूमिका, निर्वाचित नेताओं के साथ उनके समीकरण, विचारधारा के साथ-साथ दल के सामाजिक विस्तार और राजनीतिक वित्त का मुद्दा, इन सब पहलुओं के अध्ययन के अलावा, पहले अटल बिहारी और तत्पश्चात् बड़े पुरज़ोर रूप में नरेन्द्र मोदी के साथ जो व्यक्तित्व केन्द्रित सिद्धान्त उभरा, उस पर भी लेखिका तफ़सील से तवज्जो देती हैं। एक वह दौर जब सहयोगी दल भाजपा के साथ सम्बन्ध जोड़ने से झिझकते थे और आज भाजपा की कथित अजेय स्थिति, यह किताब इन ब्योरों का बड़ा दिलचस्प लेखा-जोखा प्रस्तुत करती है।
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Description
देश की वर्तमान राजनीतिक पृष्ठभूमि में आज भाजपा की एक सुदृढ़ पहचान है। गठबन्धन की राजनीति से लेकर एक सशक्त इकाई के रूप में, उसने एक लम्बी यात्रा तय की है एवं 1998 में सत्तासीन होने से वर्तमान तक के सफर में एक स्वतन्त्र, पृथक् दल के रूप में अपनी पहचान बनायी है। अनुभवी पत्रकार सबा नक़वी ने 1980 में दल की स्थापना से लेकर उसके दो बार सत्तारूढ़ होने तक की यात्रा-कथा को यहाँ दर्ज़ किया है। भगवा का राजनीतिक पक्ष : वाजपेयी से मोदी तक न केवल देश के राजनीतिक इतिहास में घटित जीवन्त, विशिष्ट घटनाओं का आँखों देखा बयान है बल्कि भाजपा के विकास के विश्लेषणात्मक पहलुओं की बारीकियों को भी सामने रखता है। आर.एस.एस. कैडर की भूमिका, निर्वाचित नेताओं के साथ उनके समीकरण, विचारधारा के साथ-साथ दल के सामाजिक विस्तार और राजनीतिक वित्त का मुद्दा, इन सब पहलुओं के अध्ययन के अलावा, पहले अटल बिहारी और तत्पश्चात् बड़े पुरज़ोर रूप में नरेन्द्र मोदी के साथ जो व्यक्तित्व केन्द्रित सिद्धान्त उभरा, उस पर भी लेखिका तफ़सील से तवज्जो देती हैं। एक वह दौर जब सहयोगी दल भाजपा के साथ सम्बन्ध जोड़ने से झिझकते थे और आज भाजपा की कथित अजेय स्थिति, यह किताब इन ब्योरों का बड़ा दिलचस्प लेखा-जोखा प्रस्तुत करती है।
About Author
सबा नक़वी
सबा नक़वी देश की जानी-मानी राजनीतिक विश्लेषक हैं, जिनकी दो किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं-इन गुड फेथ (2012; पहचान की राजनीति के दौर में भारत की बहुलवादी परम्पराओं की खोज) और कैपिटल कॉनक्वेस्ट्स (2015; आम जनता की पार्टी ‘आप’ के आकस्मिक उदय का अध्ययन)। लेखिका आउटलुक पत्रिका की पूर्व राजनीतिक सम्पादिका रह चुकी हैं और सम्प्रति स्तम्भ लेखिका हैं। वह चुनावी विश्लेषक, समीक्षक और टीकाकार के तौर पर टेलीविज़न का एक जाना-पहचाना चेहरा हैं। उनकी विशेषज्ञता का मूल क्षेत्र भाजपा है जिसे उन्होंने दो दशकों तक कवर किया है। अटल बिहारी वाजपेयी और नरेन्द्र मोदी, इन दोनों प्रधानमन्त्रियों के शपथ ग्रहण समारोह की चश्मदीद गवाह रहीं लेखिका ने भाजपा के उदय को अत्यन्त निकट से देखा है।
तृणा मुकर्जी
तृणा मुकर्जी ने लखनऊ विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र, इतिहास और अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातक उपाधि प्राप्त की है। लेखन एवं अनुवाद में लगातार सक्रिय हैं। 2015 में वी.एस. नायपॉल की द एनिग्मा ऑफ़ अराइवल का हिन्दी अनुवाद एवं स्वरचित कविताओं का एक संग्रह प्रकाशित है।
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