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Bedakhal
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
कमला कांत त्रिपाठी
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
कमला कांत त्रिपाठी
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹495 ₹347
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In stock
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10-12 Days
In stock
ISBN:
SKU
9788170555049
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
216
सन् अठारह सौ सत्तावन के विप्लव और उसके दमन के बीच से ही अवध में वह क्रूर तालुकेदारी व्यवस्था पनपी थी जिसमें पिसती रिआया की छटपटाहट इस शती के दूसरे दशक तक आते-आते एक तूफान के रूप में फूट पड़ी, जिसने एक बार तो सत्ता की तमाम चूलें हिला दीं। कमला कान्त त्रिपाठी का दूसरा उपन्यास ‘बेदखल’ उसी तूफान के घिरने, घुमड़ने और फिर एक कसक-सी छोड़ते हुए बिखर जाने की कथा है और इस दृष्टि से अठारह सौ सत्तावन की पृष्ठभूमि में लिखे उनके पहले उपन्यास ‘पाहीघर’ की अगली कड़ी भी। अवध का किसान आन्दोलन ऊपर से राष्ट्रीय आन्दोलन की मुख्य धारा का अंग भले लगे लेकिन दोनों की तासीर में बुनियादी फर्क था। जहाँ मुख्य धारा सत्ता में महज़ ऊपरी परिवर्तन और उसमें भागीदारी के लिए उन्मुख होने से देशी तालुकेदारी के कुचक्रों के प्रति आँखें मुँदे रही, वहाँ किसान आन्दोलन ने भू-व्यवस्था और उससे जुड़ी उस विषम सामाजिक संरचना को चुनौती दी जिसके केन्द्र में यही तालुकेदार मौजूद थे। इसकी प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है। शायद इस अन्तर्विरोध को रेखांकित करने के लिए ही लेखक ने इतिहास की इस विडम्बना को अपने उपन्यास का विषय बनाया है। कमला कान्त त्रिपाठी अपने पात्रों को कुछ इस तरह छूते हैं कि उनके और पाठकों के बीच न काल का व्यवधान रह जाता है, न लोगों को अतिमानव बनाने वाली इतिहास की प्रवृत्ति का। यह जन-शक्ति के उस स्वतःस्फूर्त उभार की कथा है जो बाबा रामचन्द्र जैसे जन-नायक पैदा करती है, जिन्होंने रामचरितमानस की चौपाइयों को आग फूंकने के औजार की तरह इस्तेमाल किया और जिनकी ‘सीताराम’ की टेर पर हिन्दूमुसलमान दोनों अपने धार्मिक भेद भुलाकर दौड़ते चले आये। उपन्यास में ‘साधू’ और ‘सुचित’ जैसे कुछ सामान्य चरित्र भी हैं जिनकी आम भारतीय तटस्थता और दार्शनिकता के बरअक्स ही अवध के किसान आन्दोलन को उसके व्यापक परिप्रेक्ष्य मंत देखा जा सकता है।
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Description
सन् अठारह सौ सत्तावन के विप्लव और उसके दमन के बीच से ही अवध में वह क्रूर तालुकेदारी व्यवस्था पनपी थी जिसमें पिसती रिआया की छटपटाहट इस शती के दूसरे दशक तक आते-आते एक तूफान के रूप में फूट पड़ी, जिसने एक बार तो सत्ता की तमाम चूलें हिला दीं। कमला कान्त त्रिपाठी का दूसरा उपन्यास ‘बेदखल’ उसी तूफान के घिरने, घुमड़ने और फिर एक कसक-सी छोड़ते हुए बिखर जाने की कथा है और इस दृष्टि से अठारह सौ सत्तावन की पृष्ठभूमि में लिखे उनके पहले उपन्यास ‘पाहीघर’ की अगली कड़ी भी। अवध का किसान आन्दोलन ऊपर से राष्ट्रीय आन्दोलन की मुख्य धारा का अंग भले लगे लेकिन दोनों की तासीर में बुनियादी फर्क था। जहाँ मुख्य धारा सत्ता में महज़ ऊपरी परिवर्तन और उसमें भागीदारी के लिए उन्मुख होने से देशी तालुकेदारी के कुचक्रों के प्रति आँखें मुँदे रही, वहाँ किसान आन्दोलन ने भू-व्यवस्था और उससे जुड़ी उस विषम सामाजिक संरचना को चुनौती दी जिसके केन्द्र में यही तालुकेदार मौजूद थे। इसकी प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है। शायद इस अन्तर्विरोध को रेखांकित करने के लिए ही लेखक ने इतिहास की इस विडम्बना को अपने उपन्यास का विषय बनाया है। कमला कान्त त्रिपाठी अपने पात्रों को कुछ इस तरह छूते हैं कि उनके और पाठकों के बीच न काल का व्यवधान रह जाता है, न लोगों को अतिमानव बनाने वाली इतिहास की प्रवृत्ति का। यह जन-शक्ति के उस स्वतःस्फूर्त उभार की कथा है जो बाबा रामचन्द्र जैसे जन-नायक पैदा करती है, जिन्होंने रामचरितमानस की चौपाइयों को आग फूंकने के औजार की तरह इस्तेमाल किया और जिनकी ‘सीताराम’ की टेर पर हिन्दूमुसलमान दोनों अपने धार्मिक भेद भुलाकर दौड़ते चले आये। उपन्यास में ‘साधू’ और ‘सुचित’ जैसे कुछ सामान्य चरित्र भी हैं जिनकी आम भारतीय तटस्थता और दार्शनिकता के बरअक्स ही अवध के किसान आन्दोलन को उसके व्यापक परिप्रेक्ष्य मंत देखा जा सकता है।
About Author
कमला कान्त त्रिपाठी जन्म : 25 फरवरी, 1950, बसौली, प्रतापगढ़ (उ.प्र.) शिक्षा : इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद से राजनीतिशास्त्र में एम. ए.; पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से एम. फिल. कार्यक्षेत्र : 1972 से 1975 तक राजनीतिशास्त्र विभाग, गोरखपुर विश्वविद्यालय में प्राध्यापन। 1975 से 2012 तक भारतीय राजस्व सेवा में। 2012 में आयकर लोकपाल पद से सेवानिवृत्त। प्रकाशित कृतियाँ : उपन्यास-पाहीघर, बेदखल, सरयू से गंगा, तरंग (शीघ्र प्रकाश्य); कहानी-संग्रहजानकी बुआ, अन्तराल, मृत्युराग। प्रबन्धन पर शोध पुस्तक-Road to Excellence. सम्मान : श्रीकान्त वर्मा स्मृति पुरस्कार (1991), हिन्दी अकादमी, दिल्ली का साहित्यिक कृति पुरस्कार (1991), कथाक्रम सम्मान (1998), सांगाती साहित्य अकादमी, बेलगाम (कर्नाटक) का भारतीय भाषा पुरस्कार (2003), इफको का हिन्दी सेवी सम्मान (2007), श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको साहित्य सम्मान, 2016
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