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Baudelaire Aur Unki Kavita
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
बांदलेयर, अनुवाद : मदनपाल सिंह
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
बांदलेयर, अनुवाद : मदनपाल सिंह
Language:
Hindi
Format:
Paperback
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ISBN:
SKU
9789350729694
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
126
बॉदलेयर और उनकी कविता –
‘प्रतीकों की पहेली’ बुनने वाले बॉदलेयर की कविता ऐसे स्थान पर अवस्थित है जहाँ कविता को अनेक तरह से एक-दूसरे से जुड़ी गलियों के रूप में देखा जा सकता है, जैसे रोज़मर्रा के छोटे या बड़े कटु अनुभव की कविता, रोमाटिज़्म, कला के लिए कला और प्रतीकवादी कविता। इस तरह कविता का वह ताना-बना वह चौराहा है जिसमें उनकी ख़ास क़िस्म की तिक्त अनुभवजन्य वास्तविकता तथा सोच की आधुनिकता ज़ाहिर होती है। देखा जाये तो वह घटनाओं और विचारों को एक बँथे यथाये रोमांटिक रूप और विश्व में न दिखाकर, सत्यता को वीभत्स और जघन्यता के साथ सामने लाते हैं – ‘एक अघोरी कविता’ की तरह।
अनेक कलात्मक वादों के इस वाद को इस तरह भी समझा जा सकता है कि हर काल में समय और अवस्था परिवर्तन को देखने वाला और उसे सम्प्रेषित करने वाला एक व्यक्ति होता है। यद्यपि यहाँ बॉदलेयर को न तो सन्त की तरह दिखाया गया है और न ही उनकी वैचारिक और सम्प्रेषण की आधुनिकता की एक पैगम्बर की अग्रगामी आदर्शता के ढाँचे में रखने की चेष्टा की गयी है। यहाँ हम बॉदलेयर को उनकी कविताओं में एक ऐसे सृजनकर्ता के रूप में पाते हैं जो विचारों को बेलौस होकर शब्द और प्रतीक देता है। यदि धर्म में भय, मृत्यु, दंड, नफ़रत, व्यभिचार, तड़प, शैतान इत्यादि का समावेश है तो बॉदलेयर को धार्मिक भी कहा जाना चाहिए। इसका कारण यह है कि ये अनुभव उनकी कविताओं में बार-बार आते हैं। इससे इतर बॉदलेयर की कविता न तो पाप की कविता है और न ही पुण्य की… यह तो इन भावों के द्वन्द्व से उपजे त्रास और द्वन्द्व की कविता है। इन दोनों जुड़वाँ प्रारब्ध के मध्य विचलन की कविता है। इसीलिए उनकी कविता के बारे में विचारक सार्त्र ने कहा था कि बॉदलेयर की कविता, जीवन के बुरे अनुभव का अक्स या उस अक्स से छुटकारा पाने के साधन के रूप में दिखाई देती है, और एक भ्रम के रूप में भी, जो जीवन से कविता में और कविता से जीवन में आ गये थे। इसमें कुछ असत्य भी तो नहीं है। कवि के लिए जीवन और कविता एक-दूसरे का पर्याय ही तो थे।
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Description
बॉदलेयर और उनकी कविता –
‘प्रतीकों की पहेली’ बुनने वाले बॉदलेयर की कविता ऐसे स्थान पर अवस्थित है जहाँ कविता को अनेक तरह से एक-दूसरे से जुड़ी गलियों के रूप में देखा जा सकता है, जैसे रोज़मर्रा के छोटे या बड़े कटु अनुभव की कविता, रोमाटिज़्म, कला के लिए कला और प्रतीकवादी कविता। इस तरह कविता का वह ताना-बना वह चौराहा है जिसमें उनकी ख़ास क़िस्म की तिक्त अनुभवजन्य वास्तविकता तथा सोच की आधुनिकता ज़ाहिर होती है। देखा जाये तो वह घटनाओं और विचारों को एक बँथे यथाये रोमांटिक रूप और विश्व में न दिखाकर, सत्यता को वीभत्स और जघन्यता के साथ सामने लाते हैं – ‘एक अघोरी कविता’ की तरह।
अनेक कलात्मक वादों के इस वाद को इस तरह भी समझा जा सकता है कि हर काल में समय और अवस्था परिवर्तन को देखने वाला और उसे सम्प्रेषित करने वाला एक व्यक्ति होता है। यद्यपि यहाँ बॉदलेयर को न तो सन्त की तरह दिखाया गया है और न ही उनकी वैचारिक और सम्प्रेषण की आधुनिकता की एक पैगम्बर की अग्रगामी आदर्शता के ढाँचे में रखने की चेष्टा की गयी है। यहाँ हम बॉदलेयर को उनकी कविताओं में एक ऐसे सृजनकर्ता के रूप में पाते हैं जो विचारों को बेलौस होकर शब्द और प्रतीक देता है। यदि धर्म में भय, मृत्यु, दंड, नफ़रत, व्यभिचार, तड़प, शैतान इत्यादि का समावेश है तो बॉदलेयर को धार्मिक भी कहा जाना चाहिए। इसका कारण यह है कि ये अनुभव उनकी कविताओं में बार-बार आते हैं। इससे इतर बॉदलेयर की कविता न तो पाप की कविता है और न ही पुण्य की… यह तो इन भावों के द्वन्द्व से उपजे त्रास और द्वन्द्व की कविता है। इन दोनों जुड़वाँ प्रारब्ध के मध्य विचलन की कविता है। इसीलिए उनकी कविता के बारे में विचारक सार्त्र ने कहा था कि बॉदलेयर की कविता, जीवन के बुरे अनुभव का अक्स या उस अक्स से छुटकारा पाने के साधन के रूप में दिखाई देती है, और एक भ्रम के रूप में भी, जो जीवन से कविता में और कविता से जीवन में आ गये थे। इसमें कुछ असत्य भी तो नहीं है। कवि के लिए जीवन और कविता एक-दूसरे का पर्याय ही तो थे।
About Author
मदन पाल सिंह -
1 जनवरी, 1975 को तहसील गढ़मुक्तेश्वर (उत्तर प्रदेश) के ग्राम लहडरा के एक किसान परिवार में जन्म। फ्रांस में शिक्षा पूरी करने के बाद कुछ साल वहीं पर कार्य अब पूर्णकालिक लेखन एवं सांस्कृतिक राजनैतिक रिपोर्टिंग में विशेष रुचि। भारत और यूरोप के बीच निरन्तर आवागमन
आने वाली पुस्तकें हैं :
गली सेंत कैथरीन (उपन्यास)
राजपथ (कविता संग्रह)
समकालीन फ्रांसीसी कविता और उसका विधान (समालोचना, दो खण्डों में)।
पर्सेपोलिस (ईरानी मूल की फ्रांसीसी लेखिका मरजानी सत्रापी की आत्मकथात्मक चित्रकथा का हिन्दी अनुवाद)।
इसके अतिरिक्त सोलह पुस्तकों में समाहित फ्रांसीसी कविता की तीसरी और चौथी पुस्तकें क्रमशः 'पॉल वरलेन और उनकी कविता' तथा 'आर्थर रैम्बो और उनकी कविता'।
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