Basaveshwara : Samata Ki Dhwani-(HB)

Publisher:
Lokbharti
| Author:
KASHINATH AMBALGE
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Lokbharti
Author:
KASHINATH AMBALGE
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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निर्बलों की सहायता करना ही सबलों का कर्तव्य है। उसी से सुखी समाज की स्थापना हो सकती है। सभी धर्मों के मूल में दया की भावना ही प्रमुख है। बसवेश्वर के एक वचन का यही भाव है—
 
दया के बिना धर्म कहाँ?
सभी प्राणियों के प्रति दया चाहिए
दया ही धर्म का मूल है
दया धर्म के पथ पर जो न चलता
कूडलसंगमदेव को वह नहीं भाता।
 
बसवेश्वर की वचन रचना का उद्देश्य ही सुखी समाज की स्थापना करना था। चोरी, असत्य, अप्रामाणिकता, दिखावा, आडम्बर एवं अहंरहित समाज की स्थापना बसव का परम उद्देश्य था, जो निम्न एक वचन से स्पष्ट होता है—
 
चोरी न करो, हत्या न करो, झूठ मत बोलो
क्रोध न करो, दूसरों से घृणा न करो,
स्वप्रशंसा न करो, सम्मुख ताड़ना न करो,
यही भीतरी शुद्धि है और यही बाहरी शुद्धि है,
यही मात्र हमारे कूडलसंगमदेव को प्रसन्न करने का सही मार्ग है।
 
हठ चाहिए शरण को पर-धन नहीं चाहने का, हठ चाहिए शरण को पर-सती नहीं चाहने का, हठ चाहिए शरण को अन्य देव को नहीं चाहने का, हठ चाहिए शरण को लिंग-जंगम को एक कहने का, हठ चाहिए शरण को प्रसाद को सत्य कहने का, हठहीन जनों से कूडलसंगमदेव कभी प्रसन्न नहीं होंगे॥

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Description

निर्बलों की सहायता करना ही सबलों का कर्तव्य है। उसी से सुखी समाज की स्थापना हो सकती है। सभी धर्मों के मूल में दया की भावना ही प्रमुख है। बसवेश्वर के एक वचन का यही भाव है—
 
दया के बिना धर्म कहाँ?
सभी प्राणियों के प्रति दया चाहिए
दया ही धर्म का मूल है
दया धर्म के पथ पर जो न चलता
कूडलसंगमदेव को वह नहीं भाता।
 
बसवेश्वर की वचन रचना का उद्देश्य ही सुखी समाज की स्थापना करना था। चोरी, असत्य, अप्रामाणिकता, दिखावा, आडम्बर एवं अहंरहित समाज की स्थापना बसव का परम उद्देश्य था, जो निम्न एक वचन से स्पष्ट होता है—
 
चोरी न करो, हत्या न करो, झूठ मत बोलो
क्रोध न करो, दूसरों से घृणा न करो,
स्वप्रशंसा न करो, सम्मुख ताड़ना न करो,
यही भीतरी शुद्धि है और यही बाहरी शुद्धि है,
यही मात्र हमारे कूडलसंगमदेव को प्रसन्न करने का सही मार्ग है।
 
हठ चाहिए शरण को पर-धन नहीं चाहने का, हठ चाहिए शरण को पर-सती नहीं चाहने का, हठ चाहिए शरण को अन्य देव को नहीं चाहने का, हठ चाहिए शरण को लिंग-जंगम को एक कहने का, हठ चाहिए शरण को प्रसाद को सत्य कहने का, हठहीन जनों से कूडलसंगमदेव कभी प्रसन्न नहीं होंगे॥

About Author

प्रो. काशीनाथ अंबलगे

आपका जन्म 10 जुलाई, 1947 को मुचलम, बसवकल्याण तालुका, ज़ि‍ला बीदर, कर्नाटक में हुआ।

आपने एम.ए. हिन्दी और कन्नड़ से किया और पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। वर्षों गुलबर्गा विश्वविद्यालय में अध्यापन। फ़िलहाल सेवानिवृत्त।

आपकी कन्नड़ और हिन्दी में कविता, विमर्श, कन्नड़ वचन साहित्य आदि से सम्बन्धित दर्जनों पुस्तकें प्रकाशित। पंजाबी, गुजराती, बांग्ला (हिन्दी द्वारा) और हिन्दी की कई पुस्तकों का कन्नड़ में अनुवाद।

आप ‘महात्मा गांधी हिन्दी पुरस्कार’, ‘कमला गोयनका अनुवाद पुरस्कार’, ‘अम्म पुस्तक पुरस्कार’, ‘गौरव पुरस्कार’ आदि पुरस्कारों से सम्मानित किए जा चुके हैं।

 

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