Bandhan (PB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Manoj Singh
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Rajkamal
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Manoj Singh
Language:
Hindi
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Hardback

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पारिवारिक विघटन, अकेलापन, आधुनिक जीवन की चुनौतियाँ और अनवरत तनाव—वर्तमान जीवन के यही घटक आज हमारी मनोरचना का निर्माण करते हैं, जिसका स्वाभाविक नतीजा होता है विभिन्न मनोविकारों का जन्म और दिन-प्रतिदिन मनोरोगों और मनोरोगियों की संख्या में बढ़ोतरी। समाज का सामूहिक अनुभव प्रमाण है कि मनोरोग अन्य किसी भी शारीरिक रोग से न सिर्फ़ ज़्यादा गम्भीर होते हैं, बल्कि पीड़ादायक भी।
मनोरोगी स्वयं तो उस अवस्था में होता है कि उसे अपनी पीड़ा का अनुभव नहीं होता, उसकी पीड़ा दरअसल उन लोगों के हिस्से में आ जाती है जो उसके आसपास रहते हैं, उसके सम्बन्धी, रिश्तेदार, मित्र-परिजन। उन्हें न सिर्फ़ उसकी परिचर्या और उपचार आदि के लिए अपने सुख-चैन की बलि देनी होती है, बल्कि उस सामाजिक लांछन को भी झेलना पड़ता है जो हमारे समाज में मनोरोगों के साथ जुड़ा हुआ है।
यह उपन्यास मनोरोग और उसके सामाजिक, वैयक्तिक पहलुओं का अन्वेषण करते हुए स्नेह और प्रेम के उस बन्धन को रेखांकित करता है जो भारतीय समाज के ताने-बाने का आधार है। यही वह तत्त्व है जिसके चलते भारत में मनोरोगियों को परिवार का अंग बनाकर रखने की परम्परा चली आई है और जो विदेशों में देखने को नहीं मिलती।

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Description

पारिवारिक विघटन, अकेलापन, आधुनिक जीवन की चुनौतियाँ और अनवरत तनाव—वर्तमान जीवन के यही घटक आज हमारी मनोरचना का निर्माण करते हैं, जिसका स्वाभाविक नतीजा होता है विभिन्न मनोविकारों का जन्म और दिन-प्रतिदिन मनोरोगों और मनोरोगियों की संख्या में बढ़ोतरी। समाज का सामूहिक अनुभव प्रमाण है कि मनोरोग अन्य किसी भी शारीरिक रोग से न सिर्फ़ ज़्यादा गम्भीर होते हैं, बल्कि पीड़ादायक भी।
मनोरोगी स्वयं तो उस अवस्था में होता है कि उसे अपनी पीड़ा का अनुभव नहीं होता, उसकी पीड़ा दरअसल उन लोगों के हिस्से में आ जाती है जो उसके आसपास रहते हैं, उसके सम्बन्धी, रिश्तेदार, मित्र-परिजन। उन्हें न सिर्फ़ उसकी परिचर्या और उपचार आदि के लिए अपने सुख-चैन की बलि देनी होती है, बल्कि उस सामाजिक लांछन को भी झेलना पड़ता है जो हमारे समाज में मनोरोगों के साथ जुड़ा हुआ है।
यह उपन्यास मनोरोग और उसके सामाजिक, वैयक्तिक पहलुओं का अन्वेषण करते हुए स्नेह और प्रेम के उस बन्धन को रेखांकित करता है जो भारतीय समाज के ताने-बाने का आधार है। यही वह तत्त्व है जिसके चलते भारत में मनोरोगियों को परिवार का अंग बनाकर रखने की परम्परा चली आई है और जो विदेशों में देखने को नहीं मिलती।

About Author

मनोज सिंह

जन्म : 1 सितम्बर, 1964; आगरा (उ.प्र.)

शिक्षा : बी.ई. इलेक्ट्रॉनिक्स, एम.बी.ए. (मानव संसाधन विकास)।

प्रमुख कृतियाँ : ‘चन्द्रिकोत्सव’ (खंड काव्य); ’बन्धन’, ‘कशमकश’, ‘हॉस्टल के पन्नों से’ (उपन्यास); ‘मेरी पहचान’ (कहानी-संग्रह); ‘व्यक्तित्व का प्रभाव’ (आलेख संकलन); ‘स्वर्ग-यात्रा’।

अन्य : कई समाचार-पत्रों व पत्रिकाओं में लेखों का नियमित प्रकाशन। पत्रिकाओं का सम्पादन।

www.manojsingh.com एवं कई अन्य हिन्दी वेबसाइटों पर नियमित साप्ताहिक कॉलम का लेखन। विभिन्न विश्वविद्यालयों, इंजीनियरिंग कॉलेज, मैनेजमेंट कोर्स एवं मास-कम्युनिकेशन से सम्बन्धित शिक्षण संस्थानों में विशेषज्ञ व्याख्यान। ‘चन्द्रिकोत्सव’ पर आधारित नृत्यनाटिका का दूरदर्शन पर प्रसारण। ‘बंधन’ उपन्यास पंजाबी भाषा में प्रकाशित और बांग्ला तथा तमिल में शीघ्र प्रकाश्य।

सम्प्रति : उप महानिदेशक विजिलेंस एवं टेलीकॉम मॉनिटरिंग (पंजाब व चंडीगढ़), दूरसंचार मंत्रालय, भारत सरकार।

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