SaleHardback
Band Gali Ka Aakhiri Makaan
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
धर्मवीर भारती
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
धर्मवीर भारती
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹395 ₹277
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In stock
ISBN:
SKU
9789355189486
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
118
बन्द गली का आख़िरी मकान
“यह भी बहुत दिलचस्प ढंग है। वर्षों तक साहित्य में कहानी, नयी कहानी, साठोत्तरी कहानी, अकहानी आदि-आदि को लेकर बहस चलती रहे। लिखनेवाला चुप रहे। वर्षों तक चुप रहे और फिर चुपके से एक कहानी लिखकर प्रकाशित करा दे, और वही उसका घोषणा पत्र हो, गोया उसने सारे वाद-विवाद के बीच एक रचनात्मक कीर्तिमान स्थापित कर दिया हो, कि देखो यह है कहानी!” बन्द गली का आख़िरी मकान प्रकाशित होने पर जो तमाम पत्र लेखक को मिले उनमें से एक पत्र का यह अंश भारती की कथा-यात्रा की दिलचस्प झलक पेश करता है। भारती ने वर्षों के अन्तराल पर इस संकलन की कहानियाँ लिखीं लेकिन हर कहानी अपनी जगह पर मुकम्मिल एक ‘क्लासिक’ बनती गयी।
ये कहानियाँ आप केवल पढ़कर पूरी नहीं करते, ये कहानियाँ कहीं बहुत गहरे पैठकर आपकी जीवन-दृष्टि को पूरी और गहरी बना जाती हैं। इनमें कुछ ऐसा है जो आप पढ़ने के बाद ही जान पाएँगे। प्रस्तुत है इस कृति का नवीन संस्करण ।
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Description
बन्द गली का आख़िरी मकान
“यह भी बहुत दिलचस्प ढंग है। वर्षों तक साहित्य में कहानी, नयी कहानी, साठोत्तरी कहानी, अकहानी आदि-आदि को लेकर बहस चलती रहे। लिखनेवाला चुप रहे। वर्षों तक चुप रहे और फिर चुपके से एक कहानी लिखकर प्रकाशित करा दे, और वही उसका घोषणा पत्र हो, गोया उसने सारे वाद-विवाद के बीच एक रचनात्मक कीर्तिमान स्थापित कर दिया हो, कि देखो यह है कहानी!” बन्द गली का आख़िरी मकान प्रकाशित होने पर जो तमाम पत्र लेखक को मिले उनमें से एक पत्र का यह अंश भारती की कथा-यात्रा की दिलचस्प झलक पेश करता है। भारती ने वर्षों के अन्तराल पर इस संकलन की कहानियाँ लिखीं लेकिन हर कहानी अपनी जगह पर मुकम्मिल एक ‘क्लासिक’ बनती गयी।
ये कहानियाँ आप केवल पढ़कर पूरी नहीं करते, ये कहानियाँ कहीं बहुत गहरे पैठकर आपकी जीवन-दृष्टि को पूरी और गहरी बना जाती हैं। इनमें कुछ ऐसा है जो आप पढ़ने के बाद ही जान पाएँगे। प्रस्तुत है इस कृति का नवीन संस्करण ।
About Author
धर्मवीर भारती
बहुचर्चित लेखक एवं सम्पादक डॉ. धर्मवीर भारती 25 दिसम्बर, 1926 को इलाहाबाद में जनमे और वहीं शिक्षा प्राप्त कर इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यापन-कार्य करने लगे । इसी दौरान कई पत्रिकाओं से भी जुड़े। अन्त में 'धर्मयुग' के सम्पादक के रूप में गम्भीर पत्रकारिता का एक मानक निर्धारित किया।
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