Badal Rag

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
दामोदर खड्से
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
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दामोदर खड्से
Language:
Hindi
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Hardback

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256

बादल राग –
‘स्त्रियों का मन समझने के लिए स्त्री ही होनी चाहिए’ यह धारणा दामोदर खड़से ने अपने उपन्यास ‘बादल राग’ में ग़लत सिद्ध कर दी है। स्त्री केन्द्रित अनुभवों को साहित्य-रूप देते समय केवल पारिवारिक, सामाजिक वास्तविकता का ही विश्लेषण काफ़ी नहीं है, बल्कि स्त्री-मन की अन्तर-व्यथा-वेदनाओं की दैहिक अनुभूतियों के परिणामों का भी ध्यान रखना होगा। दामोदर खड़से ने इस उपन्यास के माध्यम से इसे अभिव्यक्त किया है।
दामोदर खड़से ने इस उपन्यास में सामाजिक रूढ़ियों, नीति-संकल्पनाओं की सुविधाजनक सीमाओं के पार जाकर स्त्री-मुक्ति का स्वावलम्बी मार्ग तलाशने वाली नायिका का संघर्ष और उसकी दृढ़ता का यशस्वी चित्रण किया है। उन्होंने स्त्री मुक्ति के सामाजिक-सांस्कृतिक पहलुओं के साथ शारीरिक व मानसिक आयामों का भी विचार किया है। शिक्षित स्त्री-पुरुषों का साथ आना केवल काम-वासना के लिए है तो वह पाप ही होगा। लेकिन, आत्म-भान जागृत स्त्री-पुरुष आपसी वैचारिक समानता आधारित एक-दूसरे के व्यक्तित्व को आदरपूर्वक स्वीकार करते हैं तो यह स्त्रीत्व का सम्मान ही है। स्त्री-पुरुष समानता की पैरवी, स्त्रीवादी जीवनदृष्टि इस उपन्यास में बख़ूबी अभिव्यक्त हुई है।

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Description

बादल राग –
‘स्त्रियों का मन समझने के लिए स्त्री ही होनी चाहिए’ यह धारणा दामोदर खड़से ने अपने उपन्यास ‘बादल राग’ में ग़लत सिद्ध कर दी है। स्त्री केन्द्रित अनुभवों को साहित्य-रूप देते समय केवल पारिवारिक, सामाजिक वास्तविकता का ही विश्लेषण काफ़ी नहीं है, बल्कि स्त्री-मन की अन्तर-व्यथा-वेदनाओं की दैहिक अनुभूतियों के परिणामों का भी ध्यान रखना होगा। दामोदर खड़से ने इस उपन्यास के माध्यम से इसे अभिव्यक्त किया है।
दामोदर खड़से ने इस उपन्यास में सामाजिक रूढ़ियों, नीति-संकल्पनाओं की सुविधाजनक सीमाओं के पार जाकर स्त्री-मुक्ति का स्वावलम्बी मार्ग तलाशने वाली नायिका का संघर्ष और उसकी दृढ़ता का यशस्वी चित्रण किया है। उन्होंने स्त्री मुक्ति के सामाजिक-सांस्कृतिक पहलुओं के साथ शारीरिक व मानसिक आयामों का भी विचार किया है। शिक्षित स्त्री-पुरुषों का साथ आना केवल काम-वासना के लिए है तो वह पाप ही होगा। लेकिन, आत्म-भान जागृत स्त्री-पुरुष आपसी वैचारिक समानता आधारित एक-दूसरे के व्यक्तित्व को आदरपूर्वक स्वीकार करते हैं तो यह स्त्रीत्व का सम्मान ही है। स्त्री-पुरुष समानता की पैरवी, स्त्रीवादी जीवनदृष्टि इस उपन्यास में बख़ूबी अभिव्यक्त हुई है।

About Author

दामोदर खड़से - कवि-कथाकार और अनुवादक। प्रकाशित कृतियाँ: अब वहाँ घाँसले हैं, सन्नाटे में रोशनी, तुम लिखो कविता, अतीत नहीं होती नदी, रात, नदी कभी नहीं सूखती, पेड़ को सब याद है, जीना चाहता है मेरा समय (कविता संग्रह); भटकते कोलम्बस, आख़िर वह एक नदी थी, जन्मान्तर गाथा, इस जंगल में, गौरैया को तो ग़ुस्सा नहीं आता, सम्पूर्ण कहानियाँ (कहानी-संग्रह); काला सूरज, भगदड़, बादल राग, खिड़कियाँ (उपन्यास); जीवित सपनों का यात्री, एक सागर और, संवादों के बीच (यात्रा व भेंट वार्ता)। राजभाषा विषयक आठ पुस्तकें और मराठी से बीस तथा अंग्रेज़ी से हिन्दी में एक पुस्तक का अनुवाद। रचनाओं का मराठी, अंग्रेज़ी, कन्नड़, गुजराती, पंजाबी आदि भाषा में अनुवाद। सम्मान: पुस्तक 'बारोमास' के लिए साहित्य अकादेमी अनुवाद पुरस्कार (2015), महाराष्ट्र भारती अखिल भारतीय हिन्दी सेवा सम्मान (2016)। साथ ही केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, उ.प्र., हिन्दी संस्थान, म.प्र. साहित्य परिषद, महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादेमी, प्रियदर्शनी, मुम्बई, नयी धारा, अपनी भाषा, गुरुकुल, केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय आदि संस्थानों द्वारा सम्मानित।

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