SaleHardback
Babri Masjid Tatha Anya Kavitayein
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
अनिल अनलहातु
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
अनिल अनलहातु
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹220 ₹154
Save: 30%
In stock
Ships within:
10-12 Days
In stock
ISBN:
SKU
9789326355605
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
120
बाबरी मस्जिद तथा अन्य कविताएँ –
‘बाबरी मस्जिद’ की कविताएँ प्रतिबद्ध संवेदना और अध्ययनशीलता से सम्पोषित गहरी वैचारिकता से उपजी हैं। कवि की पक्षधरता उन लोगों के साथ है, जो देश और काल के हाशिये पर पड़े या दफ़न हैं। ऐसा क्यों है— यह कवि की जिज्ञासा ही नहीं चिन्ता भी है और इस क्रम में कवि के भीतर एक अनुसन्धित्सु जाग उठता है जो न सिर्फ़ देश-देशान्तर की बल्कि काल-कालान्तर की भी यात्रा करता है। इस यात्रा में कवि के सरोकार उसे सजग रखते हैं और वह देश और काल के उस हाशिये की शिनाख़्त/ पड़ताल करता है, जिस पर बुद्ध के अन्तिम शिष्य ‘सुभद्र’ और रघुवीर सहाय के ‘रामदास’ ही नहीं ‘नीग्रो जॉर्ज’ और ‘रिगोबेर्टा मेंचू’ भी दिखते हैं।
पूर्वज रचनाकारों की परछाइयाँ हर रचनाकार पर पड़ती हैं। अनिल भी अपवाद नहीं मगर कवि ने उनके रचना-संसार के बिम्बों, प्रतीकों और निहितार्थों को अपने परितः व्याप्त सामूहिक अवचेतन में अलग से चीन्हने और उन्हें अपनी चेतना में आयत्तीकृत करने का एक अलग तरह का प्रयास किया है जिससे इस संग्रह की कविताओं की गहरी और विस्तीर्ण वंशावली का भी पता चलता है और लक्ष्य का भी। कवि की स्वीकारोक्ति द्रष्टव्य है— ‘मैं मुक्तिबोध का सजल-उर शिष्य होना चाहता हूँ!’
कविता में सन्दर्भों का आना एक सामान्य बात है। किन्तु इस संग्रह की कविताओं में सभ्यतागत त्रासदी और विडम्बनाओं के कई प्रसंग नामित सन्दर्भ की तरह मौजूद हैं जो पाठकों की संवेदना के साथ-साथ उनके ज्ञान को भी सम्बोधित हैं।
‘उसकी उदास भावहीन आँखें पीछा करतीं
व्यस्ततम क्षणों में भी,
मानवीय पीड़ा का इतिहास
ज्यों फूली हुई लाश
रिगोबेर्टा मेंचू की
फैली हो ग्वाटेमाला से एंडीज़ तक,
दुमका-गोड्डा के आदिम जंगलों से
हमारे घरों के शयन-कक्ष तक।’ —डॉ. विनय कुमार
Be the first to review “Babri Masjid Tatha Anya Kavitayein” Cancel reply
Description
बाबरी मस्जिद तथा अन्य कविताएँ –
‘बाबरी मस्जिद’ की कविताएँ प्रतिबद्ध संवेदना और अध्ययनशीलता से सम्पोषित गहरी वैचारिकता से उपजी हैं। कवि की पक्षधरता उन लोगों के साथ है, जो देश और काल के हाशिये पर पड़े या दफ़न हैं। ऐसा क्यों है— यह कवि की जिज्ञासा ही नहीं चिन्ता भी है और इस क्रम में कवि के भीतर एक अनुसन्धित्सु जाग उठता है जो न सिर्फ़ देश-देशान्तर की बल्कि काल-कालान्तर की भी यात्रा करता है। इस यात्रा में कवि के सरोकार उसे सजग रखते हैं और वह देश और काल के उस हाशिये की शिनाख़्त/ पड़ताल करता है, जिस पर बुद्ध के अन्तिम शिष्य ‘सुभद्र’ और रघुवीर सहाय के ‘रामदास’ ही नहीं ‘नीग्रो जॉर्ज’ और ‘रिगोबेर्टा मेंचू’ भी दिखते हैं।
पूर्वज रचनाकारों की परछाइयाँ हर रचनाकार पर पड़ती हैं। अनिल भी अपवाद नहीं मगर कवि ने उनके रचना-संसार के बिम्बों, प्रतीकों और निहितार्थों को अपने परितः व्याप्त सामूहिक अवचेतन में अलग से चीन्हने और उन्हें अपनी चेतना में आयत्तीकृत करने का एक अलग तरह का प्रयास किया है जिससे इस संग्रह की कविताओं की गहरी और विस्तीर्ण वंशावली का भी पता चलता है और लक्ष्य का भी। कवि की स्वीकारोक्ति द्रष्टव्य है— ‘मैं मुक्तिबोध का सजल-उर शिष्य होना चाहता हूँ!’
कविता में सन्दर्भों का आना एक सामान्य बात है। किन्तु इस संग्रह की कविताओं में सभ्यतागत त्रासदी और विडम्बनाओं के कई प्रसंग नामित सन्दर्भ की तरह मौजूद हैं जो पाठकों की संवेदना के साथ-साथ उनके ज्ञान को भी सम्बोधित हैं।
‘उसकी उदास भावहीन आँखें पीछा करतीं
व्यस्ततम क्षणों में भी,
मानवीय पीड़ा का इतिहास
ज्यों फूली हुई लाश
रिगोबेर्टा मेंचू की
फैली हो ग्वाटेमाला से एंडीज़ तक,
दुमका-गोड्डा के आदिम जंगलों से
हमारे घरों के शयन-कक्ष तक।’ —डॉ. विनय कुमार
About Author
अनिल अनलहातु -
जन्म: दिसम्बर 1972, बिहार के भोजपुर (आरा) ज़िले के बड़का लौहर-फरना गाँव में।
शिक्षा: बी. टेक., खनन अभियन्त्रण (इंडियन स्कूल ऑफ़ माइंस, धनबाद), कम्प्यूटर साइंस में डिप्लोमा, प्रबन्धन में सर्टिफिकेट कोर्स।
प्रकाशन: कविताएँ, वैचारिक लेख, समीक्षाएँ एवं आलोचनात्मक लेख हंस, कथादेश, नया ज्ञानोदय, वागर्थ, तद्भव, अक्सर, समकालीन सरोकार, पब्लिक अजेंडा, परिकथा, उर्वशी, समकालीन सृजन, हमारा भारत, निष्कर्ष, मुहिम, अनलहक, माटी, आवाज़, कतार, रेवान्त, पाखी, कृति और आदि पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित।
'कविता-इंडिया', 'पोएट्री लन्दन', 'संवेदना', 'पोएट', 'कविता-नेस्ट' आदि अंग्रेज़ी की पत्रिकाओं एवं वेब पत्रिकाओं में अंग्रेज़ी कविताएँ प्रकाशित।
पुरस्कार: 'कल के लिए' द्वारा मुक्तिबोध स्मृति कविता पुरस्कार, अखिल भारतीय हिन्दी सेवी संस्थान, इलाहाबाद द्वारा 'राष्ट्रभाषा गौरव' पुरस्कार, आई.आई.टी. कानपुर द्वारा हिन्दी में वैज्ञानिक लेखन पुरस्कार, प्रतिलिपि कविता सम्मान, 2015।
अनिल अनलहातु समकालीन युवा कविता की प्रखरतम और विरलतम सृजनचेष्टा के अद्वितीय कवि हैं—आज की कविता में अपनी तरह से अलग और अकेले। उनकी कविताएँ, अपने समूचे भाषिक विन्यास में धीरे-धीरे हमें हमारी परिचित या अपरिचित, कुछ वीरान और अभिशप्त पगडण्डियों के उन मुहानों, मोड़ों और गोलम्बरों पर औचक पहुँचाकर खड़ी कर देती हैं, जहाँ एक पल की कौंध में हम अब तक की सभ्यता, इतिहास और तमाम तरह की सत्ताओं को अपने घुटने टेकते हुए पाते हैं, उनकी कविताएँ अपनी समूची संरचना में लगातार ऐसा कौतुक रचती चलती हैं, जहाँ संवेदना और प्रज्ञा, स्मृति और इतिहास, सत्ता और प्रतिरोध, बर्बरता और करुणा, पूँजी और वंचना सब एक-दूसरे के साथ किसी अनोखी अन्तःक्रिया में, एक तीव्र आँच में जलते-पिघलते बेचैन और विकल करते मानवीय सच को अचानक उघाड़ देती हैं। महत्त्वपूर्ण यह है कि यह किसी आकस्मिक स्फोट की तरह कविता के भीतर नहीं, कविता के बाहर घटित होता है। उनकी तमाम कविताओं के भाषिक-पाठ में प्रवेश करते हुए हम यह नहीं जान पाते कि यह रास्ता आज की आमफ़हम कविताओं से बहिर्गमन का वह रास्ता है, जहाँ शब्दों की सत्ता और अर्थवत्ता बाहर के यथार्थ में अपनी असन्दिग्ध अस्मिता को प्रमाणित करती है। अनिल अनलहातु एक विरल ज्ञानात्मक-ऐन्द्रिकता (cognitive sensuality) के ऐसे बौद्धिक युवा कवि (poet of intellect) हैं, जिनकी कविताएँ मुक्तिबोध की कविताओं की पंक्ति में अपनी जगह बनाती चलती हैं।
प्रस्तुत संग्रह उसी दिशा की ओर जाता हुआ ताज़ा, मज़बूत और महत्त्वपूर्ण क़दम है।—उदय प्रकाश
Reviews
There are no reviews yet.
Be the first to review “Babri Masjid Tatha Anya Kavitayein” Cancel reply
[wt-related-products product_id="test001"]
Related products
RELATED PRODUCTS
Ganeshshankar Vidyarthi – Volume 1 & 2
Save: 30%
Horaratnam of Srimanmishra Balabhadra (Vol. 2): Hindi Vyakhya
Save: 20%
Horaratnam of Srimanmishra Balbhadra (Vol. 1): Hindi Vyakhya
Save: 10%
Purn Safalta ka Lupt Gyan Bhag-1 | Dr.Virindavan Chandra Das
Save: 20%
Sacred Books of the East (50 Vols.)
Save: 10%
Reviews
There are no reviews yet.